महाभारत युद्ध में कई ऐसे योद्धा भी थे जो मात्र अपने वीरत्व की प्रसिद्धि के लिए लड़ रहे थे, जिनका निशाना अक्सर अर्जुन ही थे, ताकि उन्हें निपटा कर सीधे सीधे वीरोत्तम की पदवी मिल जाये।
इसी तरह एक महापराक्रमी, असीमित मूल प्राकृतिक शक्ति के स्वामी है भगवान मकरध्वज कामदेव!
सृष्टि निर्माता ने सृष्टि के विस्तार हेतु सृजन की विधि को बलशाली बनाने के लिए कामदेव को अपरिमित बल प्रदान किया। अब अपरिमित बल होगा तो उसके दुरुपयोग की संभावना भी प्रबल होंगी क्योंकि power corrupts.
अस्तु! प्रचंड आकर्षण शक्ति के स्वामी कामदेव सभी छोटे बड़े देवों को जय करते हुए स्वयं ब्रह्मा जी के मानस को भी क्षणिक रूप से विकृत कर गए (वो कथा कभी और)। अब ‘सृजनधर्मियों’ की दुर्बलता को कामदेव विकार से युक्त करना जानते है, फिर चाहे सामान्य से कोई ‘लेखक’ हों या सृष्टि रचियता ब्रह्मा जी।
इस विजय से आंदोलित कामदेव सीधे भगवान महादेव शिव से भिड़ गए, अब देवी सती के विरह में असहज बाबा ने सक्रोध उन्हें चिलम में भरकर फूँक दिया किन्तु अनंग हुए कामदेव की पत्नी रति के विषाद को देखकर पुनः कृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न के रूप में भौतिक देह को पाने का वर भी दे दिया।
तब तक अनंग (बिना देह के) छोटे मोटे कांड करते हुए एक दिन नारद से उलझे, भक्ति एवं ब्रह्मचर्य की शक्ति से एक बार तो नारद ने भी उन्हें धरती सूंघा दी, लेकिन शीघ्र ही अभिमान को प्राप्त हुए देवर्षि विजय को स्थाई ना रख पाए (कथा फिर कभी)।
अब कृष्णावतार के समय देह पाकर फिर से फ़ॉर्म में आये कामदेव ने इस बार अपने पिता श्रीकृष्ण को ही ललकार दिया कि मुझसे लड़कर दिखाइए।
भगवान ठहरे योगेश्वर और नीति के धुरंधर, बोले ठीक है स्थान भी मेरा, समय भी मेरा लेकिन शस्त्र तुम्हारे।
भौतिक देह से युक्त परमचैतन्य को पराजित करने का स्वप्न संजोए कामदेव अपने पुष्पशरों को धार लगाने लगे।
एक दिन श्रीकृष्ण ने न्यौता भेज दिया युद्ध का, कामदेव आ पहुंचे अपनी शक्ति रति के साथ, भगवान प्रेम से पूर्ण महारास में मग्न।
सारे तीर संधान कर लिए लेकिन भगवान की मुस्कान तक विचलित ना हुई। भाई! जो स्वयं माया को मोहित कर ले भला उस मोहन के आगे कामदेव थे भी कौन अपवाद।
लुटे-पिटे कामदेव का अहंकार धराशायी हुआ तो पूछा, प्रभु ये कैसे हुआ? और ये आज ही क्यों हुआ?
तो भगवान बोले कि, “बेटेलाल! आज शरद पूर्णिमा है, आज भगवान चंद्र अपनी सोमयुक्त किरणों से पृथ्वी पर अमृत वर्षा करते हैं, जिसके सेवन से पुष्ट हुआ व्यक्ति कामादि विकारों को जीतने का सामर्थ्य प्राप्त कर लेता है।”
तो हिन्दुओं! हमारे पूर्वजों और संस्कृति के संवाहकों की यह कृपा है हम पर कि हमें ऐसे सूत्र ज्ञात हैं अब तक, किन्तु इन्हें अब अगली पीढ़ी तक पहुंचाने का दायित्व हम सबका है।
आइये इस शारदीय पूर्णिमा के महापर्व के विशेष अवसर पर प्रेम की खीर को ईश्वर के सोम से संतुष्ट करवा कर सेवन करें और अपने भौतिक विकारों पर विजय का श्रेष्ठतम प्रयास करें।
आइये! आज बैठें भगवान चंद्र की गोद में रात्रि के दूसरे पहर और रसराज चंद्र की अमृतमय किरणों से अपने जीवरसों (हार्मोन्स) को संतुलित होने का प्राकृतिक अवसर प्रदान करें।
पिरोएं जीवन की सुई में प्रीत का धागा और पाएं जीवन को देखने की एक पुष्ट दृष्टि।
आइये मनाएं हमारे महान धर्म के उन वैज्ञानिक पर्वों को, जो इस संस्कृति की आत्मा हैं, तो आज ना पानी बर्बाद होगा और ना लकड़ी, ना पटाखे और ना शोर, फिर भी जी तो जलेगा ही विधर्मियों का।
आज तो,
शांति के सेवन का पर्व है,
विकारों के शमन का पर्व है,
शक्तियों के जागरण का पर्व है,
सौम्या के अवतरण का पर्व है,
प्रेम के आरोहण का पर्व है,
श्रृंगार के निरूपण का पर्व है,
महारात्रि शरद पूर्णिमा की आप सभी को सपरिवार हार्दिक शुभकामनाएं।