जो भी थोड़ा बहुत सनातन के पूजा पाठ के विधियों के बारे में जानते होंगे, उनको मालूम होगा कि इस संस्कृति में मंदिर सिर्फ “पूजा” के लिए ही नहीं बल्कि विशेष साधना के भी स्थल होते हैं ।
और उनके भौगोलिक और क्षेत्रीय संरचना के आधार पर तथा उनमें होने वाली साधनाओं की तीक्ष्णता के आधार पर इन मंदिरों के नियम या कानून बनाए गए हैं।
चलिए दोनों पहलुओं को समझाता हूं!
1) साधना के आधार पर –
चलिए एक उदाहरण से शुरुआत करते हैं। शनि शिंगणापुर मंदिर में महिलाओं का प्रवेश वर्जित है। इसका मुख्य कारण वहां होने वाली साधना है।
शनि शिंगणापुर मंदिर में “रौद्र यंत्र और तांत्रिक साधनाएं” होती हैं, और ऐसा माना जाता है कि उसकी ऊर्जा से महिलाओं और खासकर गर्भवती महिलाओं को गंभीर नुकसान होने की संभावना रहती है। साधना सुरक्षा को मद्देनजर रखते हुए शायद ऐसे निर्णय लिए गए हों।
2) भौगोलिक स्थिति के आधार पर –
कई जगहों पर मंदिर की स्थिति कुछ ऐसी थी कि अगल बगल जंगलों का भरमार हुआ करता था। और ऐसी स्थिति में साधक पर जंगल में बसे जानवरों के हमले का खतरा ज्यादा बढ़ जाता था।
सबरीमला मंदिर खुद पेरियार टाइगर रिजर्व के भीतर आता है, जहां आस पास बाघों का होना पाया जाता है। कुछ रिसर्च में ये बात सामने आई है कि राजस्वला लड़कियों की गंध बाकी लोगों के मुकाबले बाघों को जल्दी आ जाती है और ये खतरनाक साबित हो सकता है। तो ये भी हो सकता है कि सुरक्षा के मद्देनजर भी ये निर्णय और ये नियम बनाए गए हों।
सबरीमला मंदिर में किसी मर्द को भी तीर्थ करने से पहले 41 दिन का ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करना पड़ता है। (जिसे मंडलम भी कहा जाता है!)
यहां प्रतिवर्ष विश्व की सबसे बड़ी तीर्थयात्रा होती है जिसमें दो करोड़ के आस पास की संख्या में लोग भगवान अयप्पा के दर्शन के लिए आते हैं। ये इकलौता मंदिर है जो शैव और वैष्णव मान्यताओं के बीच में एक मजबूत कड़ी का काम करता है!
खैर!
कुछ लोग इसको फेमिनिज्म का रंग देने की कोशिश कर रहें हैं और उनका कहना है कि सबरीमला मंदिर महिलाओं के साथ भेद भाव कर रहा है। उनकी जानकारी के लिए ये बता देना उचित रहेगा कि भारत में 100 से भी ज्यादा मंदिर ऐसे हैं जहां पुरुषों का प्रवेश निषेध है।
पूरे भारत में लाखों मंदिर हैं जो अक्सर खाली रहते हैं। आप बड़े आराम से उसमें जाइए और पूजा करते रहिए, खा पी के सोइए आपको कोई कुछ नहीं बोलने जा रहा है चाहे भले आप राजस्वला हों।
जो चीज़ मना है, पता नहीं क्यों हमको जान बूझ कर वही करना होता है। जहां जाने की मनाही है आखिर हम वहां जाना ही क्यूं चाहते हैं? और आखिर वो लोग क्यों जाना चाहते हैं जो न आज से पहले किसी मंदिर गए होंगे और न ही इसके बाद कभी जाएंगे?
क्या ये सचमुच अधिकारों की लड़ाई है, बराबरी की लड़ाई है या राजनैतिक हित भी साधने की कोशिश है? या धार्मिक षडयंत्र भी निहित है इनमें? या फिर मज़ारों में और मस्जिदों में एंट्री को आस्था का मामला बता कर जज करने वाले मी लॉर्ड लोग आज आखिर कैसे सबरीमला के मामले को बराबरी के हिसाब से जज करने लगे? इसके पीछे क्या हित निहित है? इसे हम लोगों को ही सोचना होगा!
खैर, अभी जो एकता हिन्दू सबरीमला के लिए दिखा रहे हैं वो काबिले तारीफ तो है। अंत में मैं इतना ही कहना चाहूंगा –
“धर्म की जय हो और प्राणियों में एकता हो.. जिससे विश्व का कल्याण हो।”