कुछ मीडियावाले और फ़ेसबुकिया बुद्धिजीवी रो रहे हैं कि उनके बाप की मिल्कियतों और बादशाही फ़रमानों को भारतीय इतिहास से हटाया जा रहा है।
ये लोग बता रहे हैं कि कैसे सारे मुसलमान शासक उतने भी क्रूर नहीं थे। अकबर ने तो ये किया था, वो किया था! अरे भाई, नहीं चाहिए आतंकियों के ‘कम क्रूर’ होने की कहानियाँ?
किसने बुलाया था कि आओ और हमारे मंदिरों को तोड़ो, अपने हरम खोलो, समाज और गाँवों को तोड़ो, बस्तियाँ उजाड़ो और बन जाओ हमारे माई-बाप?
किसी ने निमंत्रणपत्र भेजा था क्या?
ठीक है कि उस समय वो ज़्यादा ताक़तवर था, और आतंक मचाकर समय के साथ चला गया। लेकिन ये क्या तर्क है कि ‘कम क्रूर’ था इसीलिए उसके द्वारा बदले गए इतिहास को छोड़ दिया जाए?
नहीं, प्रयागराज नाम बदलने से भुखमरी खत्म नहीं होगी। नाम बदलने से भुखमरी खत्म नहीं होती, स्वाभिमान जागता है। याद आता है कि हजारों साल की विरासत को किसी विदेशी आतंकी शासकवंश के फ़रमान पर कैसे बदल दिया गया था, और उसे उनके जाने के बाद भी वापस लेने की हिम्मत किसी में क्यों नहीं हुई।
इसलिए, हर ऐतिहासिक स्थल के नाम बदलकर, पहले जो था वो करना चाहिए। अंग्रेज़ों, यूरोपी और मुग़ल आतंकी शासकों के नाम की गई हर जगह का नाम भारतीय होना चाहिए। और भारतीय का मतलब यह है कि हर जाति, धर्म और समाज का व्यक्ति जिसने देश को बनाने में योगदान दिया है।
और हाँ, अकबर और बाबर ने देश बनाया था, शाहजहाँ ने ताजमहल दिया, ये वाली बकवास न करें। इनके देश बनाने और ताजमहल उठाने के लिए कितने लोग मरे, कितने मंदिर टूटे, कितने गाँव उजड़े, उसका हिसाब लगाना मुश्किल है। इसलिए बेहतर है कि जब हम उस स्थिति में हैं कि अतीत को उसका योग्य और समुचित सम्मान वापस कर पाएँ, तो ज़रूर करें।
जो ऐसी बातों पर विकास और भुखमरी का डिबेट ले आते हैं, वो विशुद्ध बकवास कर रहे हैं क्योंकि नाम बदलने से न तो विकास आता है, न जाता है। विकास तो आपके सुबह में संडास जाने से भी नहीं होता, आप क्यों जाते हैं? क्या आपको लगता है कि नाम बदलने के प्रपोज़ल से लेकर नाम बदल जाने तक मुख्यमंत्री ने विकास के सारे काम बंद कर रखे थे?
नाम बदलने से किसी ऐतिहासिक जगह को उसकी पहचान वापस मिलती है। अगर आपको लगता है कि ये बेकार है तो इतिहास क्यों पढ़ते हैं? क्या मिलता है यह जानकर कि आज़ादी की लड़ाई में किसने क्या किया? गांधी, सुभाष, आज़ाद, भगत सिंह और हज़ारों नामों की जयंतियां ही क्यों होती हैं?
क्योंकि कुछ नाम याद करने होते हैं। क्योंकि कुछ नाम सिर्फ नाम नहीं होते, एक संस्कृति के संपूर्ण संवाहक होते हैं। नाम बदलने से नाम बदलता है। कभी-कभी नाम बदलना बहुत कुछ बदल देता है।
आत्महंता हिंदू ही कर सकते हैं प्रयागराज की पुनर्स्थापना मात्र पर इतना बवाल