मैं ‘दुर्घटनावश हिंदू’ प्रथम प्रधानमंत्री जवाहलाल का कटुतम आलोचक हूं। क्यों? बाक़ी उन्होंने जो किया हो, इस देश को बनाने का महती कार्य उनको मिला था, एक दिशा देने का काम उनको मिला था। उनके समकालीन लोगों और देशों को देखिए। द्वितीय विश्व युद्ध से तबाहो-बर्बाद मुल्क थे, पूरा यूरोप कराह रहा था, जापान और चीन घिसट रहे थे, पर उनको एक उन्नत नेतृत्व मिला, जिन्होंने अपने देश के हिसाब से चीजों को गढ़ा और यही अंतर पैदा कर गया।
नेहरू ने अपने स्वभाववश अंग्रेज होने की वजह से केवल नकल की, कोई भी मौलिक चिंतन नहीं किया और इस देश को बर्बाद कर दिया, इसलिए वे मेरी आलोचना के केंद्र में हमेशा रहेंगे।
खैर, नेहरू ने अपने मार्क्सवादी साथियों के साथ मिलकर जो अकादमिक विषबेल लगायी, उसका परिणाम आप इस समय देख सकते हैं। जो भी पुरातन, वह कूड़ा, वह बेकार, वह अगंभीर, उस पर ही ही ही… उसका उल्लेख तक सह्य नहीं, जो भी पाश्चात्य, वह सही।
योग पर आप हंसेंगे, योगा बनते ही आप पांच हज़ार करोड़ का बाज़ार बना देंगे। आयुर्वेद आपके लिए पोंगापंथी है, परंतु आयुर्वेदा होते ही आप उसे हज़ारों करोड़ का बाज़ार देंगे।
चिश्ती की कब्र पर चादर चढ़ाते हुए आप गर्वीले ढंग से फोटो लगाएंगे, लेकिन सिद्धिविनायक पर सिर जोड़ते अपने दोस्त की हंसी उड़ाएंगे, सांता क्लाज़ मोजे में गिफ्ट दे जाता है, लेकिन प्रार्थना पोंगापंथ है। यही है मिलेनियल किड्स और डालडा जेनरेशन का पैमाना और यह नेहरू की देन है। इसलिए, उनका विरोध है।
बस्तर कहां है? वह क्यों ख्यात, विख्यात या कुख्यात है? नक्सलियों की वजह से। हालांकि, वहां जो दंतेवाड़ा है, उसका नाम दंतेवाड़ा क्यों है? क्योंकि वह शक्तिपीठ है, भाई। शक्तिपीठ क्या है? मिलेनियल किड्स के लिए उनके हिसाब से कहूं तो शक्तिपीठ लॉर्ड शिवा का गॉडेस सती के लिए इनफिनिट लव का परिणाम है…। नहीं समझ आया? तो, सुनिए।
शिव की प्रिया थीं सती। सती बोले तो शक्ति। यानी मां। यानी जिनके बिना शिव भी शव समान हैं। उनके पिता दक्ष प्रजापति। उनको दामाद से चिढ़। स्टैंडर्ड के नहीं थे न शिव। दक्ष प्रजापति इलीट थे, संभ्रांत थे, अरब-खरबपति थे, शिव क्या… दारू-गांजा पीनेवाले, बैल पर चढ़नेवाले, किसान टाइप। रहने की भी सूझी तो कैलाश में… माइनस टेंपरेचर में।
तो, एक अच्छे बाप की तरह दक्ष भी दुखी रहते थे। वह टाइम यज्ञों का था, यज्ञ में आहुति भी होती थी। वह देवताओं का हिस्सा होता था।
दक्ष ने यज्ञ किया, शिव को नहीं बुलाया। सती मानी नहीं, बोली जाऊंगी। शिव ने मना किया, फिर भी मायके का मोह (अपनी मम्मियों को देख लेना बेटा लोग, कैसे मायके के लिए हाय-हाय करती हैं) गयीं। देखा कि शिव का हिस्सा तो है ही नहीं। विरोध किया औऱ उसी यज्ञाग्नि में भस्म हो गयीं।
शिव वैसे तो भोलेनाथ, आशुतोष लेकिन दिमाग सटक जाए तो रुद्र, प्रलयंकर। पहुंच गए भूतों, पिशाचों को लेकर। यज्ञ विध्वंस भी किया। सती की अधजली लाश निकाली और कंधे पर लेकर लगे घूमने.. लगे नाचने। प्रेम में मगन। मोह में मत्त।
अब, शिव ऐसा करें तो दुनिया का क्या हो? भूडोल होने लगा, पर्वत ऊपर-नीचे, सागर उफान पर। सब भागे विष्णु के पास—भाईसाब, मैनेज कीजिए। विष्णु ने उठाया चक्र, सती के शरीर के 51 टुकड़े कर दिए। वे टुकड़े पूरे भारत में जहां गिरे, वही शक्तिपीठ बन गए।
दंतेवाड़ा में सती के दांत गिरे थे। वहीं दंतेश्वरी का मंदिर भी है औऱ वहीं 800 वर्षों से लगातार दशहरा भी हो रहा है (वामपंथी मित्र चाहें तो मूलनिवासी पर आर्य आक्रमण का खटराग गा सकते हैं)। दंतेवाड़ा भी इन्हीं देवी के नाम पर है। कामरूप-कामाख्या के मंदिर को जानते हो? वहां बाकायदा तीन दिन मंदिर बंद रहता है। क्यों? कल दंतेश्वरी औऱ कामाख्या की कथा विस्तार से…..
फिलहाल, इतना जानिए कि प्रतीकों में उलझते नहीं, उन्हें समझ कर निकल लेते हैं। और हां, ज्ञान आपकी सीमा से तय नहीं होता, वह तो असीम है। आइंस्टाइन के शब्दों में आप तो ज्ञान के समंदर पर पत्थर औऱ कौड़ी चुन रहे हैं….।
बाकी, चतुर्थी की पूजा की शुभकामनाएं… मां का जयकारा….