आप एक पुरुष हैं, जिसे एक लड़की बहुत पसंद करती है। वह प्रपोज़ करती है तो आप हाँ कहते हैं क्योंकि आपके दिल मे भी प्यार के अंकुर फूटते है।
रिलेशन के शुरुआती कुछ महिने खूबसूरत हैं। लड़की थोड़ी पज़ेसिव है पर आप उसे प्यार समझते हैं। पर कुछ महीनों बाद जब वह सिक्योर महसूस करने लगती है कि ‘हाँ, समय के साथ रिश्ता मजबूत हो चुका है’, तो वह अब हर बात पर अपनी सोच थोपना शुरू करती है।
कभी आपकी किसी सहेली का भूले-बिसरे फोन आ गया, उस रात दो बजे तक आपकी बैंड बजा देती है आपकी गर्लफ्रेंड। आप अपने पुरुष दोस्तों के साथ महीने में एक बार पब जाया करते थे, अब नहीं जा सकते। महिला-मित्रों से बात करने का तो सवाल ही नहीं।
आपको नहीं पसन्द है फोन पर बातें करते हुये सोना या सुलाना। आप इस तरह की बातों को प्यार का पैमाना नहीं मानते। ऑफिस में दिनभर बॉस की सुनने के बाद आप रात का कुछ समय सिर्फ अपने लिये चाहते हैं। पर अब आप ऐसा नहीं कर सकते। आपको दो घण्टे फोन पर लगना ही है।
कभी रात दस बजे माँ का फोन आ गया और गर्लफ्रैंड को फोन बिज़ी मिला। उसे शक हुआ और बस पूरे रात की लड़ाई। उसका रोना, आपका मनाना। फिर सिर दर्द लेकर देर रात सोने जाना।
ऐसा चलता रहता है और फिर आपको समझ में आता है कि लड़की ने आपकी ज़िंदगी मुहाल कर रखी है। आप पिछले दो साल में अपना पूरा व्यक्तित्व ही खो चुके हैं। रिश्ता म्युचुअल शुरू हुआ था, पर बीच में आप कब हाईजैक होते चले गये आपको पता ही नहीं चला। शुरू में आप ‘प्यार है उसका’ कह कर झेलते गये, फिर समझ आया कि प्यार अगर सामने वाले का सांस घोट दे तो सिर्फ अत्याचार है।
अब आप ब्रेकअप करना चाहते हैं। अपनी ज़िंदगी वापस पाना चाहते हैं। बस हो गया नया ड्रामा शुरू। आत्महत्या की धमकी, आपके घर पहुँच कर माता-पिता के सामने हंगामा करने की धमकी। आपके हर दोस्त को फोन कर के दुखड़ा सुनाना। आपके ऑफिस तक पहुंच जाना, क्योंकि उसे मालूम है ऐसा कर के कितना मानसिक दबाव बनाया जा सकता है आप पर।
क्या ये किसी एक लड़के की कहानी है?
नहीं, बहुत से लड़के हैं आपके आस-पास जिन्होंने झेला है यह। बहुत सी लड़कियाँ है जिन्होंने जब ऐसे दमघोटू रिश्ते से निकलना चाहा तो उन्हें धमकाया गया, इमोशनल अत्याचार हुआ, और कभी-कभी उससे बहुत ज्यादा बुरा कुछ।
हम तुरन्त पूछ बैठते हैं, “ऐसे इंसान के साथ आप रिश्ते में क्यों गये थे?”
ज़रा अपने गिरेबान में झांकिए और पूछिये, क्या कभी आपको किसी से धोखा नहीं मिला?
क्या कभी ऐसा नहीं हुआ कि आपने किसी को दोस्त समझ कर पैसा दिया, वह उसे पचा कर बैठ गया?
या फिर आप जिसे अपना समझते रहे, वह आपकी पीठ पीछे आपकी बुराई करता रहा?
कितने मां-बाप ऐसे होंगे जिन्होंने अरेंज मैरिज करवाते वक्त अपनी तरफ पूरी कोशिश कर अपने बच्चे के लिये अच्छा दामाद/ बहू ढूंढा, पर कुछ दिनों बाद वहीं दामाद/ बहू इनके बच्चे की ज़िंदगी बर्बाद करने लगा।
क्या वे पैरेंट्स बुरे लोग थे? बिल्कुल नहीं। बस उनसे जजमेंट में गलती हो गयी जिसकी सज़ा उन्हें ज़िंदगी भर मिलती रहेगी। वे कलपते रहेंगे।
हम सबके साथ हुई है यह error of judgement कभी ना कभी। हाँ, कुछ जगह गलत जजमेंट होने का उतना घातक परिणाम नहीं होता जितना बाकी जगह होता है।
हमारे समाज में रिश्ते में घुसना सबको आता है, तमीज़ से रिश्ता तोड़ना बस कुछ को ही। प्यार कर लेते हैं पर अगर रिश्ता नहीं चल पा रहा हो तो शांति से ब्रेकअप नहीं करते। एक-दूसरे को mentally harass करते हैं। जो रिश्ते से निकलना चाहता है, उसके साथ तो यह अक्सर होता है। मने रिश्ता न हुआ, खराब गुर्दा हो गया कि बदलने के लिये दुनियाभर के कष्ट झेलने पड़ेंगे।
इस किस्म के harassment भी #me_too का हिस्सा ही हैं। और इसपर भी ना सिर्फ खुल कर बोलना चाहिये बल्कि जिसने झेला है उसके लिए सहानुभूति भी होना ज़रूरी है।
बहुत से लोगों को सीखने की ज़रूरत है, रिश्ते को खूबसूरत मोड़ देकर खत्म करने का सलीका।
समस्या तलाक दर में बदलाव नहीं, खौफनाक है तलाक के कारणों में बदलाव