संदीप – मोदीजी, क्या ये सही है कि आप बहुत ही निष्ठुर और निर्मम व्यक्ति हैं, अपनी महत्वकांक्षाओं के आगे आप न किसी की सुनते हैं और न ही किसी की सलाह पर अमल करते हैं?
प्रधानमंत्री मोदी – देखिए, आप कह रहे हैं तो कुछ तो सच ही होगा (मन्द मुस्कान), खैर आज के दिन आपका ऐसा क़हने का अभिप्राय क्या है जरा खुल के बताइये, तो मैं भी कुछ मनन करूँ और आपको संतुष्ट करने की कोशिश करूँ।
संदीप – आपकी सरकार की बेदर्दी और अनदेखा करने का परिणाम है कि एक 86 वर्षीय संत और मां गंगा के आराधक को जान देनी पड़ी… और आपके पास फुर्सत ही नहीं थी उनकी कोई बात सुनने की।
प्रधानमंत्री मोदी – आप शायद सही कह रहे हैं, मुझे भी बहुत दुख है उनके शरीर के असमय शांत होने का। चलिए हम और आप कोशिश करते हैं कुछ समझने-समझाने की। आप बताइए उनकी क्या मांगे थीं, मैं भी अपनी जानकारी कुछ बढ़ाऊँ और उनकी इच्छा अगर पूरी हो सकती है तो कोशिश करूँ…
संदीप – उनकी सबसे बड़ी इच्छा थी कि मां गंगा का प्रवाह अविरल हो, बिना किसी बांध या बैराज के गोमुख से गंगासागर तक मां गंगा निर्बाध रूप से बहें…
प्रधानमंत्री मोदी – देखिए, मां गंगा का कुल प्रवाह 2525 किलोमीटर है भारत में, लगभग 50 बड़े शहर मां गंगा के किनारे बसे हुए हैं, 60 करोड़ लोग रहते हैं इसकी धारा के आस पास। 11 राज्यों में लगभग 86 हज़ार किलोमीटर का एरिया मां गंगा पार आश्रित है।
पूरे भारत का लगभग 30% पानी मां गंगा से ही उपलब्ध होता है। इसका 90% हिस्सा सिंचाई के काम आता है,लगभग 20 गरीब करोड़ लोग अपनी दैनिक जरूरतों के लिए मां गंगा की धारा पर ही निर्भर हैं।
हर दिन 3 करोड़ लीटर पानी मां गंगा में बहता है, क्या इस पानी को हम रोज सीधे समुद्र में जाने दें? सारे बांध हटाने का मतलब है उन हज़ारो किलोमीटर नहरों को खत्म करना जो गंगा की मूल धारा से 100 km दूर तक के खेतों में पानी पहुंचाती है, जिससे किसान अनाज उपजाते हैं और हमारी इतनी बड़ी जनसंख्या को भोजन मिलता है।
ये बात सही है कि शहरों से निकलने वाले इंडस्ट्रियल वेस्ट और सीवर पर हम अभी तक प्रभावी नियंत्रण नहीं कर सके हैं पर इतनी बड़ी परियोजना पूर्ण रूप से प्रभावी होने में बहुत वक्त लेगी। और चूंकि राज्य सरकारों की इच्छा शक्ति और काम करने की प्रवृत्ति पर भी इनका अनुपालन निर्भर है इसलिए काम धीमी गति से हो रहा है, पर पूरा अवश्य होगा ये मेरा विश्वास है।
नदी को निर्बाध बहते रहने देने से हमारे हाईड्रो पावर प्रोजेक्ट भी बंद हो जाएंगे और हाइड्रो पावर, बिन प्रदूषण बिजली बनाने का सबसे अच्छा स्रोत है। ज़रा सोचिये कि हम हाइड्रो पावर की जगह अगर एटॉमिक पावर या ताप बिजलीघर पर निर्भर हुए जहां कोयला बड़ी मात्रा में जलता है तो प्रदूषण और तापमान का क्या हाल होगा?
आपको याद है पंडित नेहरू ने क्या कहा था इनके बारे में? भाखड़ा नांगल बांध का उद्घाटन करते वक्त उन्होंने इन बड़े हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट को ‘आधुनिक भारत के मंदिर’ का नाम दिया था, और मैं भी सहमत हूँ इस बात से कि बिन सिंचाई और बिजली के हम कुछ नहीं कर पाएंगे।
अग्रवाल साहब का उद्देश्य पवित्र था, पर व्यवहारिक नहीं। हम नदी की सफाई के लिए कृतसंकल्पित हैं और करके रहेंगे, पर बांध न बनाना और हाईड्रो पावर को खत्म करना मां गंगा के रास्ते से संभव ही नहीं है…
अब बताइये संदीपजी, क्या हम गलत हैं?
संदीप – ……. (निःशब्द)
नमामि गंगे : प्रयासों पर उंगली उठाने से पहले देखिए ज़मीन पर कार्य