कुछ मित्रों ने शिकायत की है कि बिहारियों को अतीतजीवी कहनेवाला मैं, दुर्गापूजा के बहाने स्त्री-अस्मिता और उसके प्रश्नों पर अतीतजीवी हो रहा हूं, विरोधाभासी हो रहा हूं। ऐसा नहीं है, मित्रों।
बिहार की समस्या उसका वर्तमान है, दुर्गापूजा हो या कोई भी पूजा, उसमें जो अवैज्ञानिकता, रूढ़िवादिता, पुरातनपंथ आदि के पत्थर जो बरसाए जाते हैं, उनके बहाने जो हमला बोला जाता है, उससे मेरा विरोध है।
बिहार में अंधकार काल है, जनक और विद्यापति के बाद शून्य है… हमारी धार्मिक मान्यताएं और परंपराएं तो श्रृंखला की कड़ियां हैं, हां पूजा के नाम पर शोर-शराबा, ऊधम आदि को आप यदि उससे जोड़ते तो फिर भी कुछ गनीमत थी।
समस्या क्या है, जानते हैं? हम भारत को उन औज़ारों से, उन टूल्स से खोजने निकलते हैं, जो बिल्कुल अ-भारतीय हैं, जो शब्द ही गलत अर्थ देते हैं, अब आप धर्म को Religion के साथ फेंटेंगे तो क्या होगा, भाई।
चर्च एक संगठित सत्ता की तरह काम करता है, उसकी बाकायदा नौकरशाही है, एक सरंजाम है, उसकी तराजू पर आप सनातन को कैसे तौलेंगे? आप पांच-छह सौ वर्ष पहले तक तो जंगल में घूम रहे थे, फिर जो अवधारणाएं आप लाए हैं, उनसे भला 5000 वर्ष (आपके हिसाब से ही सही) पुरानी सभ्यता को कैसे आंकेंगे?
यही गलती होती है, आप State या नेशन को राष्ट्र से समझेंगे भला कैसे… तो, फिर भारत तो आपके लिए 1947 में पैदा होगा ही न। अब 19वीं सदी में आप नारीवाद ले आए, तो आप कहने लगे कि चलो इसको भारतीय परिवारों पर लागू करो…
अरे भइए, हमारा कांसेप्ट ही अलग है, विचार ही अलग है, हमारे लिए पुरुष और नारी विरोधी नहीं हैं, शत्रु नहीं हैं। (खैर, इसीलिए मैं ‘दुर्घटनावश हिंदू’ हमारे पहले पीएम का इतना विरोधी हूं, क्योंकि उन्होंने पूरा मौका होते हुए भी इस देश की आत्मा के साथ बलात्कार कर दिया। पोस्ट लंबी हो जाएगी, इसलिए टुकड़ों में बात करूंगा)।
अब आप कहेंगे कि दशहरा उत्तर भारतीय त्योहार है, दीवाली तो जी यहां मनती है, होली तो जी अनार्य फेस्टिवल है। प्रभो, अपने अज्ञान को चहुंदिश फैलाने की ये कौन सी ज़िद है।
आप कहेंगे कि उत्तर-पूर्व तो जी अंग्रेजों ने दे दिया हमें, वरना तो ….। भोले बलम, प्रागज्योतिषपुर आपके अंग्रेज़ बंदरों के दादा के दादा से पहले महाभारत में मौजूद है। आपका अज्ञान और थोथा घमंड उसे नहीं पहचान पाता, तो इसमें भारत का क्या दोष? भगदत्त का नाम जानते हैं आप… नहीं।
हिडिंबा को जानते हैं, घटोत्कच… उलूपी या फिर चित्रांगदा। अर्जुन तक को हत करनेवाली वीरांगनाएं या फिर आपके इतिहास के हिसाब से जो कित्तूर की रानी से लेकर अहोम की रानी तक ने जलवे दिखाए हैं, उनको भी भूल गए हैं…
आप इतिहास को तिथियों से जानते हैं, भारत इतिहास को काल-विक्षेप से समझता है…