चिले का चित्र दर्शन : आकाशगंगा, लगता है जैसे आसमान में बह रही गंगा नदी

दक्षिण अमेरिका में स्थित चिले – Chile – एक विकसित देश होने के कारण मेरी पर्यटन की लिस्ट में नहीं था. चिले से सटे हुए अर्जेंटीना को भ्रमण करने की ज्वलंत इच्छा थी. लेकिन कुछ सप्ताह पूर्व पत्नी को एक मेडिकल कांफ्रेंस में अपना कार्य प्रस्तुत करने के लिए आमंत्रण मिला और फिर मैंने चिले घूमने का मन बना लिया.

चिले की राजधानी सांतियागो एक आधुनिक, चौड़ी सडकों, अट्टालिकाओं से सुसज्जित साफ़-सुथरा शहर है. लेकिन सड़क पर आवारा कुत्ते मिल जाएंगे.

एक इमेज मन में बसी हुई है. हम पुराने शहर एक बस स्टॉप के पास टैक्सी का वेट कर रहे थे. बस के लिए लम्बी लाइन लगी थी. एक बस आयी और यात्रियों के चढ़ने के लिए उसका आगे का दरवाजा खुला. तभी एक सड़क छाप कुत्ता आया और क्यू में चार यात्रियों के पीछे खड़ा हो गया. उनके साथ वह बस में घुसा, लेकिन ड्राइवर ने भगा दिया.

उस कुत्ते ने चार बार लाइन में लगकर बस से यात्रा करने का प्रयास किया, लेकिन शायद “टिकट” ना होने के कारण ड्राइवर ने भगा दिया. पता नहीं वह कुत्ता कहा से आया था और कहां जाना चाहता था.

चिले में मेरे एक सहपाठी रामोन रहते हैं जिनके साथ मैंने फ्रांस में अध्ययन किया था. रामोन चिले की विदेश सेवा में राजनयिक थे. लेकिन रिजाइन करके खान-खनिज के क्षेत्र में घुस गए और उसमे काफी समृद्धि पायी है. इस समय वे एक बिजनेस चैंबर के अध्यक्ष भी हैं.

वे हमें सांतियागो के पास के शहर वल्परईजो – संक्षिप्त में वालपो – घुमाने ले गए. वालपो को दीवार पेंटिंग या भित्ति चित्र के लिए विश्व की राजधानी माना जाता है. प्रशांत महासागर के तट पर कई पहाड़ियों पे स्थित इस शहर की हर दीवार रंगी हुई थी. प्रशांत महासागर पर पेलिकन बर्ड देखने का भी अवसर मिला.

लेकिन चिले का प्रमुख आकर्षण अताकमा रेगिस्तान है जो ढाई हजार मीटर या 7500 फीट की ऊंचाई पर स्थित है. करीब दो घंटे की हवाई यात्रा के बाद जब वहां पहुंचे तो एकदम सूखा. दूर-दूर तक हरियाली का नामोनिशान नहीं.

पूरा रेगिस्तान ज्वालामुखी वाले पहाड़ों से घिरा हुआ है और उनके बीच नमक से भरा हुआ रेगिस्तान. लेकिन यह प्रकृति का खेल है कि उन पहाड़ों पर बर्फ गिरती है जो पिघल कर उस रेगिस्तान को जमीन के नीचे स्थित नदियों से पानी पहुंचाती है.

उस पानी से रेगिस्तान में छोटे-छोटे लैगून या खारे पानी की झीलें बनी हुई हैं इसमें गुलाबी फ्लैमिंगो चिड़िया निवास करती हैं. सुबह के समय उन चिड़ियों को देखना एक अद्भुत अनुभव था जिसका वर्णन नहीं किया जा सकता. एक लैगून में पानी इतना नमकीन था कि उसमें आप डूब ही नहीं सकते. पानी में कूदेंगे तो अपने आप ऊपर आ जाएंगे.

उसी रेगिस्तान में चंद्र घाटी स्थित है जो चंद्रमा की सतह की हूबहू प्रतिकृति है. अमेरिकियों ने चंद्र यात्रा के पहले अपने उपकरणों का टेस्ट इस घाटी में ही किया था. इस घाटी से सूर्यास्त देखना एक अवर्णीय अनुभव है. चाहे लैगून हो या चंद्र घाटी, एक-एक परिदृश्य ऐसा लगता था जैसे किसी ने पेंट किया हो.

11000 फीट की ऊंचाई पर स्थित गर्म पानी के स्रोतों में घंटों नहाना या फिर 13000 फीट की ऊंचाई पर सुबह 6 बजे गरम पानी के स्रोतों से 40 – 50 फीट ऊंची भाप निकलना अद्भुत था. लेकिन अताकमा की यही एक विशेषता नहीं है.

चूंकि यह जगह समुद्र तल से 7500 फीट की ऊंचाई पर है और वायु में नमी 10% या उससे भी कम रहती है (दिल्ली में औसत नमी 50% से अधिक रहती है) – और दूर दूर तक कोई बड़ा शहर नहीं है जिससे “प्रकाश प्रदूषण” होता हो – अतः आकाश एकदम साफ दिखाई देता है. यहाँ कई देशों के खगोलशास्त्री रात के समय काम करते हैं और दिन को सोते हैं.

इसी रेगिस्तान में विश्व की सबसे बड़ी ऑब्जर्वेटरी या वेधशाला है. हर रात को बिना दूरबीन के शुक्र, मंगल, जो अन्य ग्रहों की तुलना में लाल दिखाई देता है, और बृहस्पति ग्रह दिखाई देते हैं.

हम भी एक निजी खगोलशाला में रात्रि का आकाश देखने गए. पहली बार मिल्की वे या आकाशगंगा को देखा. मुझे विश्वास नहीं हुआ कि यह आकाशगंगा है और मैंने खगोलशास्त्री से पूछा कि क्या आकाश में बादल हैं?

उसने जवाब दिया कि नहीं, जो आप देख रहे हैं वही आकाशगंगा है. इतने तारे थे कि जैसे लगता था कि आसमान में गंगा नदी बह रही हो. उसने हमें दूरबीन की सहायता से बृहस्पति ग्रह के उपग्रह दिखाएं और शनि के चक्र. साथ ही में दक्षिणी गोलार्ध में स्थित दक्षिणी क्रॉस – Southern Cross – का नक्षत्र दिखाया और यह बताया कि कैसे दक्षिणी क्रॉस को देखकर पुराने समय में नाविक दिशा निर्देश तय करते थे.

लौटते समय अपने साथ इंडियो पिकारो – Indio Pícaro – लेकर आए. मैं नहीं बताऊंगा कि यह क्या होता है. इसे गूगल में सर्च करके वीडियो देख लीजिए. एक चेतावनी: बच्चों के साथ वीडियो मत देखिएगा.

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