फरवरी 2014 में मैं श्रीलंका गया था। मैं क्या गया था, तब की कंपनी लेकर गयी, नहीं तो खुद से यह आना-जाना होना नहीं।
ख़ैर, 4 दिन की कॉन्फ्रेंस मीटिंग सेमिनार यह सब। 2 दिन तो अटेंड की, और उसके बाद कुछ सीनियर्स के साथ देशाटन के लिए निकल पड़े।
कमाल की बात है कि वहां टाटा नैनो टैक्सी के तौर चलती है, और हमने तड़के सुबह एक टैक्सी की जो हमें कोलम्बो घुमाने के लिए तैयार हो गया।
राजपक्षे नामक हमारे ड्राइवर ने सुबह साढ़े 6 से 12 बजे तक हमें बाज़ार और मॉल छोड़कर कोलम्बो के मुख्य पॉइंट्स दिखा दिए, अब बाकी दिन पड़ा, क्या किया जाए।
राजपक्षे से हमने पूछा कि अब बाकी बचे दिन में क्या हो सकता है तो उसने बताया कि लगभग 130 किलोमीटर दूर कैंडी शहर है, वहां अच्छा एक बड़ा बुद्धिस्ट मंदिर है।
और क्या करते, चलो फिर वहीं चलते हैं। तो उस दिन तो हम कैंडी गए, पर दिन का पूरा अच्छा उपयोग ना हो पाने के कारण उसी रात फिर होटल आकर wifi का पूर्ण उपयोग करते हुए अगले दिन की गोत (bunk) मारकर कहाँ घूमना किया जाए, इसकी प्लानिंग करने लगे।
हमारे एक सीनियर ने कहीं से पता किया कि कैंडी वाले रास्ते से ही थोड़ा अलग चलते तो ‘सिगिरिया’ करके पहाड़ों पर एक महल का खंडहर है जो लगभग 1,500 साल पुराना है।
फिर अगले दिन हम उसी राजपक्षे के साथ एक तरफ की 190 किलोमीटर की यात्रा के लिए निकल पड़े। बीच में एक अनुराधापुरा करके छोटा सा शहर आता है, जहां एक ऊँची चट्टान पर पद्मासनस्थ भगवान बुद्ध विराजमान है। वहां ऊपर जाकर उन बुद्ध के चरणों में बैठना अद्भुत अनुभव था।
वहां से सिगिरिया जो एक unesco लिस्टेड वर्ल्ड हेरिटेज साइट है। जमीन से सवा 200 मीटर ऊंची एक चट्टान पर चढ़ना जहां डेढ़ हजार साल पहले के एक महल के अवशेष बचे थे, और उसके एकदम सामने बुद्ध की एक खड़ी प्रतिमा।
वैसे आप पूरे देश में कहीं भी घूमें, आपको हर शहर, हर छोटे कस्बे में, चौराहों पर बुद्ध प्रतिमाएं मिल जाएंगी। कहीं पद्मासन में, तो कहीं खड़े। लेटे हुए बुद्ध भी मिल जाएंगे। एक चीज़ जो आपको कहीं नहीं मिलेगी, वो है कचरा।
जी हाँ, कचरा नहीं मिलेगा आपको श्रीलंका में। उस टाटा नैनो में लगभग 600 किलोमीटर घूमने पर भी हमें कहीं भी एक टॉफी के रैपर बराबर कचरा नहीं मिला। कोलम्बो के चाय मार्केट में जरूर मिला पर वो एकदम होलसेल बाजार होने के और माल की ढुलाई होने के कारण था। बाकी अगर आप पूरी कंट्रीसाइड, छोटे कस्बों और गांवों तक में भी जाएंगे तो आपको कचरा नहीं मिलेगा।
एक चीज और जो जबरदस्त क़ाबिले-गौर थी, लोगों में अनुशासन। इसका उदाहरण हमें सिगिरिया से वापस आते वक्त मिला जब दो लेन नेशनल हाइवे पर एक लगभग 700 मीटर के टुकड़े पर कुछ काम चल रहा था, जिसके कारण सिर्फ एक लेन ही चालू थी। उस काम के दोनों छोरों पर सिर्फ़ 20-22 साल के एक-एक ट्रैफिक हवलदार थे। एक बार में 10 मिनट के लिए एक तरफ का रास्ता खुलता। बिना कोई हॉर्न मारे तमीज से लोग लेन में अपने टर्न की प्रतीक्षा कर रहे थे।
जब हममें से किसी एक ने इसे अपने देश जैसे समझ कर राजपक्षे को इधर उधर ओवरटेक करके निकालने के लिए बोला तो पूरे ट्रिप में हमेशा मुस्कुराने वाले राजपक्षे ने लगभग चिढ़ते हुए कहा कि यहां ऐसा नहीं होता। शाम के 8 बजे भी लोग, यहां तक कि औरतें और 8-10 साल के बच्चे भी हेलमेट लगाए हुए थे। मुझे तो उस दिन पता चला कि बच्चों के लिए भी छोटे हैलमेट आते हैं।
इसी सीन को जब मैंने भारत के लिए imagine किया तो बदहवास हॉर्न मारती गाड़ियां जिनके पीछे जाट, गुर्जर, यादव, मीणा, जय महाराष्ट्र, जय राजपूताना, रेड्डी बॉय इनमें से कुछ एक लिखा हुआ हो और वो उन युवा कॉन्स्टेबलों को माँ बहन की गालियां सुनाते एक दूसरे में भिड़ रही हों, बस यही सोच पाया।
वापस आकर श्रीलंका के बारे में थोड़ा पढ़ा तो पाया कि श्रीलंका के HDI स्कोर यानि human development index पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में सबसे ज्यादा 0.77 है, जो भारत के 0.64 से कहीं बेहतर है। लगभग 30 साल गृहयुद्ध की भयंकर विभीषिका झेलकर वापस खड़े हुए एक छोटे से देश में देश के सम्मान के लिए प्रतिबद्ध नागरिकों का अनुशासन देखकर मैं दंग था।
यह सब आज इसलिए लिखा है कि दो और खबरें हैं।
कमला पसंद नामक गुटका कंपनी अपने 1,300 कर्मचारियों को सिडनी से Royal Caribbean Australia के एक क्रूज़ शिप पर लेकर गयी, और वहां उन सबने मिलकर जो लौंडा नाच नचाया, कि क्रूज़ कंपनी को जहाज वापस मोड़ना पड़ा और बाकी के पैसेंजर्स को पूरा पैसा माफ़ी के साथ रिफंड करना पड़ा।
खाने के बुफे पर झपटमारी, क्रूज़ पर आई दूसरी लड़कियों की फ़ोटो खींचना, साथ में एस्कोर्ट लाकर स्ट्रिप डांस करवाना, और ऊपर से हर जगह गुटके के दाग। कुल मिलाकर इंटरनेशनल लेवल पर देश की कुत्ताघसीटी करवाना।
एक और ख़बर है, इतनी इंटरनेशनल नहीं, पर देशीय स्तर की ज़रूर। भारतीय रेलवे के मुताबिक पिछले साल लगभग 2 लाख छोटे तौलिये, 81 हज़ार बेडशीट्स और 7 हज़ार कंबल चोरी हो गए। ज़ाहिर सी बात है कि यह सब AC कोच से ही गायब हुए हैं। बाकी हर नई ट्रेन के उद्घाटन के 2 दिन बाद, कांच टूटना, बाथरूम गंदा होना, और कुछ न कुछ सामान चोरी होना – यह सब तो हम सालों से सुनते आ रहे हैं।
पता नहीं पर इस देश की नीयत को क्या कीड़ा खा चुका है। हगने मूतने थूकने का जिस मुल्क को शऊर नहीं, वो क्या सोचकर विश्वगुरू होने का दंभ भरता है। काफी बार हम US और यूरोप से तुलना करते हैं कि यूरोप कितना साफ हैं, वहां यह है, वो है।
शायद फर्क समझने के लिए ज्यादा दूर जाने की ज़रूरत नहीं। हम अपने छोटे से पड़ोसी से भी बहुत कुछ सीख सकते हैं। सिंहली, तमिल यह सब बनने से पहले वो अपने आपको श्रीलंकाई समझते हैं।
हम भी अगर बाकी और कुछ बनने से पहले एक इंसान और भारतीय होकर यह समझ लें कि हमारी लूट खसोट, अनुशासनहीनता और ओछी मानसिकता की कीमत हमारे ही टैक्स के पैसों से चुकाई जाती है, और टैक्स को अलग भी रखकर यह सोचें कि हम दुनिया की निगाह में देश की क्या छवि बना रहे हैं तो यह भी अपने आप में एक देशसेवा से कम नहीं।
अच्छा हो कि असली आयुर्वेदिक दंतमंजन के बारे में जल्दी समझ लें हिन्दू