इतिहास की खास बात ये है कि ये कभी मरता नहीं है, खत्म नहीं हो सकता। इसके पन्नों में वह ताकत होती है कि वर्तमान के किसी भी तिलिस्म की चूलें हिला सकता है।
वामपंथ! इस विचारधारा की सबसे खास बात और सबसे ज्यादा आकर्षक चीज इसकी “उदारवादी सोच” होती है या फिर कुछ ऐसा ही दशकों से हमें बताया जा रहा है।
उसी उदारवादी विचारधारा का एक बेनकाब चेहरा आपके सामने प्रस्तुत करता हूं।
1970 के दशक में बांग्लादेश के कुछ हिन्दू असहनीय उत्पीड़न झेलने के बाद हिम्मत हार कर भारत की सीमाओं तक आए। बांग्लादेश में हिंदुओं के साथ किस हद तक बर्बरता होती आई है, इस बारे में जानने के लिए तस्लीमा नसरीन की “लज्जा” पढ़िए। आंखे भर उठेंगी।
अपने देश को छोड़ भारतवर्ष में शरण की आस लिए शरणार्थियों ने पश्चिम बंगाल, असम, उड़ीसा राज्यों के कुछ जगहों पर पनाह ली। पर धीरे धीरे इनकी संख्या बढ़ने लगी तो भारत सरकार ने इन्हे दंडकारण्य और छत्तीसगढ़ के कुछ इलाकों में इनके रहने का बंदोबस्त किया। बाकायदा दंडकारण्य विकास समिति बनाई गई, जो इनके हितों को सुनिश्चित करती थी।
पर इनमें से अधिकतर लोग पश्चिम बंगाल में आ कर बस गए, जिसमें एक इलाका ‘मरीचजपी’ भी था, वहीं अचानक एक घटना हुई, जिसको भारत के इतिहास में काले अक्षरों में लिखा जाएगा।
31 जनवरी 1979 ।
कम्युनिस्ट प्रशासन वाला पश्चिम बंगाल।
अचानक से बंगाल पुलिस ने शरणार्थियों को घेर लिया और उनके साथ आए कम्युनिस्ट कार्यकर्ताओं ने शरणार्थियों से वो इलाका खाली करवाना शुरू किया।
ऐसा दावा किया गया है कि पुलिस ने आते ही फायर झोंकना शुरू किया, और दौड़ा दौड़ा कर शरणार्थियों का कत्ल किया गया। कुछ जो नदी के रास्ते जान बचा कर भागे, उनको मोटरबोट से दौड़ा कर गोली मारी गई।
15 निर्दोष बच्चे, जो कि सरस्वती पूजा के तैयारी में लगे थे, अचानक से गोलियों की आवाजों से डर के छिपे, पर उन मासूमों तक को गोलियों से भून डाला गया! इन बच्चों ने अभी दस वसंत तक ठीक से नहीं देखा था।
बच्चों के मरने के बाद सरस्वती मां की मूर्ति तक को तोड़ डाला इन कम्युनिस्टों ने!
100 से ज्यादा शरणार्थी महिलाओं के साथ कई कई बार बलात्कार किए गए और अंत में उन्हें भी भून कर मार डाला गया।
बताया जाता है कि उस वक़्त मृतकों की संख्या 1600 से भी ज्यादा थी, जिसमें ज़्यादातर महिलाएं और बच्चे थे।
जो हुआ, उस से डर कर ये लोग वापिस अपने देश भागने शुरू हुए, जहां बीच में महामारी और बाकी दिक्कतों की वजह से कुल 4200 लोगों ने अपना दम तोड दिया!
ज्योति बसु के अगुआई में हुआ ये नरसंहार इतिहास के पन्नों पर बमुश्किल मिलता है, क्योंकि इस हत्याकांड के बाद वहां पत्रकारों के जाने तक पर पाबंदी लगा दी गई थी।
ज़्यादा जानकारी के लिए आप अमिताभ घोष की किताब ‘The Hungry Tide’ पढ़ सकते हैं।
ये वही उदारवादी लोग हैं, जिनको आज रोहिंग्याओं के लिए आवाज बुलंद करते हुए देखा जा सकता है। जिनको कश्मीर में पत्थरबाजों के हक में आवाज उठाते देखा जा सकता है। गौर करने वाली बात ये है कि ये वही कम्युनिस्ट हैं जो आज गला फाड़ कर देश में अघोषित तानाशाही होने की बात करते हैं।
इनकी हर एक रैलियों, क्रांतियों के नीचे बिछी होती है अनगिनत लाशें और दबी हुई चीखें, जिनको गले से एक बार निकालने तक का मौका नहीं दिया गया।
वामपंथ एक झूठा तिलिस्म है! और मुझे यकीन है कि इनका अपना इतिहास एक दिन इनको नेस्तनाबूत कर देगा।