आपका विरोधी अगर स्वधर्मी है तो उससे सुलह कीजिये, मगर उससे निपटने के लिए म्लेच्छ का साथ न लें, जरा इतिहास पढ़ें।
जिसने भी, जहां भी म्लेच्छ का साथ लिया वहाँ हमेशा नुकसान उठाया है। लेटेस्ट उदाहरण देखते हैं तो सीरिया का लीजिये।
असद से निपटने के लिए अमेरिका ने ISIS को छुपा समर्थन दिया। शस्त्र भले ही सऊदी या कतर देते रहे, उनको ट्रैक करना आसान था। जिनको शस्त्रों की जानकारी है वो तो हथियार देखकर बता सकता है कि बनाने वाला कौन है। और वे तो वीडियो आदि में भी दिख जाते हैं।
कोई भी यह कर सकता है तो एक्चुअल कनसाइनमेंट आदि ट्रैक करना तो अमेरिका के लिए चुटकी बजाने का खेल था, दबाव आसानी से डाल सकते अगर चाहते तो। लेकिन उनका काम बन रहा था तो शांत बैठे रहे।
सीरिया की तबाही हुई, जैसे इराक की उसके पहले हुई थी। लेकिन क्या हुआ? इराक से अमेरिका को हटना पड़ा, सीरिया में भी सत्ता असद के पास ही है। लेकिन युद्ध शरणार्थी बनकर म्लेच्छ यूरोप और अमेरिका में घुस गए।
यूरोप को तो वे निगल जाएँगे ऐसा कहा जाता है लेकिन मुझे फिर भी यूरोप के लिए आशा है कि वे रक्तपात करने से कतराएँगे नहीं और इसकी शुरुआत वे खुद को इस हालत में डालने वाले वामी नेतृत्व से ही कर देंगे।
यहाँ बात, फायनली क्या होगा इसकी नहीं, अमरीका ने साथ दिया तो इस्लाम ने कहाँ क्या साध लिया, इसकी है।
मुसलमान का ध्येय क्लियर है। अगर वो लड़ाई में साथ देता है तो अंत में उसके पास पहले से अधिक क्षेत्र होना चाहिए। दायरा बढ़ाना उसके लिए फर्ज है। कम से कम बढ़ाने की कोशिश करना।
नाकाम हो तो भी समस्या नहीं, उसने दिल से कोशिश की यह अल्लाह जानता है, मारा गया तो जन्नत भी मिलने की आस है, बस वो 72 में से एक फिरके वाला T & C लागू।
अपने यहाँ का भी इतिहास देखिये। लेटेस्ट राजनीति देखिये। MY में क्या हो रहा है? अपनी सत्ता के लिए Y ने M का साथ लिया था। ज़मीनी हकीकत क्या है? हर Y दबंग नहीं होता।
ममता ने वामियों को उलटने में इनका साथ लिया, आज उनकी बॉडी लैंग्वेज देखिये और कभी बंगाल में म्लेच्छों की बॉडी लैंग्वेज देखिये।
पंचतंत्र की कहानी है, लिंक ये रहा –
यह ढोंग ही चरित्र है उनका, ज़रूरी है इसे समझना और स्पष्ट विरोध करना