उत्तरप्रदेश की राजधानी लखनऊ में विवेक तिवारी की हत्या के बाद मीडिया के सामने पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की संवेदनाओं की सुनामी बेकाबू बेलगाम हो रही है।
अखिलेश यादव का कहना है कि “उप्र में पुलिस ने एक आम आदमी की हत्या कर के साबित कर दिया है कि भाजपा सरकार में ‘एनकाउंटर’ की हिंसात्मक संस्कृति कितनी विकृत हो गयी है। एक मल्टीनेशनल कम्पनी के एम्पलॉई के मारे जाने से अंतरराष्ट्रीय निवेशकों की निगाह में भी प्रदेश की छवि विकृत हुई है… निंदनीय।”
अखिलेश यादव का यह प्रवचन सुनकर दो तारीखें मुझे याद आ गईं। पहली तारीख है 23 अगस्त 2018 की तथा दूसरी तारीख है 24 अप्रैल 2015 की।
इन दोनों तारीखों में एक समानता है। वह समानता यह है कि 23 अगस्त 2018 को लखनऊ की एक विशेष अदालत ने तथा 24 अप्रैल को 2015 को बाराबंकी की एक अदालत ने एक आतंकवादी तारिक कासमी को उसके आतंकी साथियों समेत उम्रकैद की सज़ा सुनाई थी। तारिक कासमी, उम्रकैद की यह दोनों सज़ाएं आजकल जेल में काट रहा है।
अखिलेश यादव के प्रवचन के पश्चात तारिक कासमी को मिली उम्रकैद की दोनों सज़ाओं की याद इसलिये आ गयी क्योंकि इस आतंकवादी को मिली इन दोनों सज़ाओं से 3 बरस पहले ही, उत्तरप्रदेश का मुख्यमंत्री बनने के साल भर बाद अखिलेश यादव ने अप्रैल 2013 में इसी आतंकी तारिक कासमी समेत उसके आतंकी साथियों का फैसला स्वयं करते हुए उन्हें निर्दोष निरपराध घोषित कर दिया था।
अखिलेश यादव ने उनके खिलाफ दर्ज सभी केस बिना शर्त खत्म कर उनको रिहा कर देने का आदेश यह कहते हुए दिया था कि जनहित और साम्प्रदायिक सौहार्द्र बनाये रखने के लिए यह करना बहुत ज़रुरी है।
भला हो उत्तरप्रदेश के उच्च न्यायलय का जिसने मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की सरकार के इस आदेश को जमकर लताड़ते फटकारते हुए उसका यह फैसला रद्द कर दिया था।
ध्यान रहे कि तारिक कासमी वाराणसी, लखनऊ और फैज़ाबाद की कोर्ट में 23 नवंबर 2007 में जो सीरियल बम धमाके हुए थे उनका मुख्य अभियुक्त मास्टर माइंड था। इन बम धमाकों में 18 नागरिकों को मौत के घाट उतार दिया गया था।
अतः हिंसात्मक संस्कृति, प्रदेश की विकृत होती छवि के ख़िलाफ़ पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की पीड़ा और संवेदनाओं की सुनामी को न्यूज़ चैनलों और अखबारों और अखिलेश यादव के ट्विटर हैंडिल पर बेकाबू बेलगाम होते देखा तो आतंकी तारिक कासमी याद आ गया।
आज उत्तरप्रदेश अखिलेश यादव से यह जानना चाहता है कि तारिक कासमी और उसके आतंकी साथियों द्वारा मौत के घाट उतारे गए 18 निर्दोष नागरिकों के हत्यारे आतंकियों के सारे केस बिना शर्त वापस लेकर, उनकी बिना शर्त रिहाई का आदेश देते समय अखिलेश यादव की संवेदनाएं कौन सा काला कम्बल ओढ़कर कहां सो गयीं थी। अखिलेश यादव को उस समय हिंसात्मक संस्कृति तथा प्रदेश की विकृत होती छवि की चिंता क्यों नहीं हुई थी।
विवेक तिवारी की मौत पर मातम का सियासी पाखण्ड कर रहे अखिलेश यादव को उन 18 निर्दोष नागरिकों, उनके परिजनों के घर स्थायी रूप से बस गए मातम का ध्यान तब क्यों नहीं आया था जब उन 18 निर्दोष नागरिकों के हत्यारे आतंकियों की बिना शर्त रिहाई का आदेश खुद अखिलेश यादव ने ही दिया था।
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