यूं तो राजस्थान के राजनीतिक और मतदान के स्वभाव की बात करें तो राजस्थान विधानसभा चुनाव में मतदाताओं द्वारा हर पांच साल बाद सत्ता बदल देने का रहा है।
इसे राजनैतिक चेतना भी कहा जा सकता है या मतदाताओं द्वारा अपने वोटों की बेहतर या बदतर मोल-भाव (बारगेनिंग)… यह व्यक्ति-व्यक्ति के देखने पर निर्भर करेगा।
लेकिन इस सनदी उदाहरण से एक बात तो साफ है कि राजस्थान विधानसभा चुनाव में खास और चुनावी पैटर्न में आम तौर पर हर एक कार्यकाल के बाद सरकार, पार्टी, मुद्दे, चिन्ताएं, सरोकार बदल देने का मूल स्वभाव मौजूद है।
अब अगर किसी मतदाता समाज में ऐसा स्वभाव मौजूद हो और जिसके ठोस चुनावी उदाहरण, अनुभव हों, किसी चुनावी साल में वहां के विपक्ष के लिए बड़े ही ध्यान रखने की ‘चीज़’ होगी। अपने हक़ में इस्तेमाल करने की ‘चीज़’ होगी।
यहीं एक बाद और देखने की है… मतदाता का स्वभाव हर पांच साल में सत्ता बदलने का है अगर तो इस निर्णय के लिए स्वाभाविक है कि उसके अंदर तात्कालिक सरकार, सत्ताधारी पार्टी के प्रति नकारात्मक भाव का होना बहुत सहज और ज़रूरी होगा। एक विपक्ष के तौर पर किसी प्रतिद्वंदी पार्टी के लिए यह आदर्श स्थिति होगी अवसर के लाभ उठाने का।
अब चूंकि वोटिंग पैटर्न मतदाता का हर पांच सालों में नकार का है तो सहज है कि स्वभाव का भाव भी नकारात्मक ही होगा।
काँग्रेस ने राजस्थान के आगामी चुनाव के पहले दौर में एक विपक्ष के रूप में राजस्थान के मतदाता इस नकार भाव के नकारात्मक स्वभाव की नकारात्मकता को सबसे पहले चुना। न सिर्फ चुना बल्कि उसे तथाकथित ढंग से हिंदुत्व, हिंदू हित के नजदीकी होने का स्वरूप देकर हिंदुत्व और उससे जुड़े मुद्दों पर एक भीड़ को सड़कों पर उतार नकारात्मक माहौल खड़ा करने का प्रयास पूरे प्रायोजित और प्रबंधित तरीके से किया जिसमें वे पहले दौर में सफल भी रहे।
इसके लिए फिल्मों के विरोध के नाम पर सड़कों की अराजकता से लेकर जातीय बंटवारों की कीमत पर विराट हिन्दू हित चिंतन का प्रायोजित अभिनय जैसे तरकीबों को खूब हवा ही नहीं दी गयी बल्कि हिन्दू, हिंदुत्व, भगवा आदि संकेतों, प्रतीकों के प्रदर्शन से इसे मॉब लिंचिंग की शक्ल दी गयी। गौ-रक्षा, दलित उत्पीड़न जैसे विषयों में भी इस प्रायोजित अराजकता को नकारा नहीं जा सकता।
हिन्दू समाज को अराजकता की सड़क पर उतारने के काँग्रेसी चुनावी गठजोड़ का खुलासा जनवरी 2018 में तब सामने खुल कर आया और साबित हुआ जब राजस्थान की तीन विधानसभा सीटों के उपचुनाव के मौके पर जयपुर में… राजपूत सभा, रावणा राजपूत सभा, करणी सेना और चारण सभा जैसी खुद को हिंदुत्व, हिन्दू हित, हिन्दू आंदोलन से जुड़ी दिखातीं संस्थाओं ने काँग्रेस को समर्थन देने की घोषणा की।
काँग्रेस उम्मीदवार रघु शर्मा काँग्रेस नेताओं के साथ राजपूत सभा भवन पहुंचे। राजपूत सभा के अध्यक्ष गिर्राज सिंह लोटवाड़ा ने समाज की अन्य संस्थाओं के प्रतिनिनिधियों की मौजूदगी में रघु शर्मा के साथ साथ तीनों सीटों पर चुनावों में काँग्रेस को समर्थन देने की घोषणा की और ऐलान किया गया कि राष्ट्रीय करणी सेना, प्रताप फाउंडेशन, चारण महासभा के प्रतिनिधियों ने भी समर्थन दिया है।
काँग्रेस सहित शेष विपक्ष और गिरोहों ने देश में जब-तब सहिष्णुता, डर, भय के माहौल को बनाने का काम लगातार जारी रखा और ऐसा करते हुए वो बेनकाब भी हुए हैं। मॉब लिंचिंग भी उन खुराफातों में से एक है।
राजस्थान का उदाहरण एक और अवसर मात्र है कि जिस तरह काँग्रेस फर्जी हिन्दू हित जैसे रंगों से रंगे सियारों को खड़ा कर… हुआं हुआं करा मॉब लिंचिंग के अपने गढ़े खुराफ़ात को ही हिन्दुओं और उनसे जुड़े सरोकारों के नाम पर सड़कों पर उतार अराजकता की राजनीति को खेल रही है।
उसमें राजस्थान के संदर्भ विशेष में यहां के मतदाताओं की हर पांच साल में सत्ता बदल देने के व्यवहार से वह मदत जाने-अनजाने हासिल होती दिखती है जिसे नकारात्मक भीड़ हासिल हो और नकारात्मक माहौल के सृजन को गढ़ना संभव किया जा सके।
काँग्रेस सहित शेष विपक्ष इस प्रायोजित कृत्य को 2019 के लोकसभा चुनावों तक हवा देते रहेंगे। विराट, प्रचंड हिंदुत्व, हिन्दू हित, मुद्दों, सरोकारों को लेकर अराजकता बढ़ाने और नकारात्मक माहौल का सृजन लक्ष्य होगा।
काँग्रेसी मॉब लिंचिंग के इस प्रायोजित उपक्रम में हिस्सेदारी से ठीक पहले… राजपूत सभा, रावणा राजपूत सभा, करणी सेना जैसी संस्थाओं, समूहों के बारे में एक बार यह जरूर सोचना बनता है कि : खुद को मुसलमानों की पार्टी बताती काँग्रेस और उसके इतिहास का इन तथाकथित हिन्दू हित धारक संगठनों से रिश्ते का ऐतिहासिक आधार क्या है? किन रिश्तों के तहत काँग्रेस देश भर में और राजस्थान में बरामद यहाँ मॉब लिंचिंग को अंजाम देती आ रही है?
देश ने तो राजस्थान को हमेशा राणा प्रताप और उस भाव की परंपरा को जिया है : और खुद राजस्थान ने अकबर से रिश्ताधारियों को कभी स्वीकारा नहीं। ऐसे में काँग्रेस का यह गढ़ा प्रयास आप अपनी मौत मरेगा और इसका उदाहरण होगा राजस्थान, इसका भी पूरा भरोसा होना चाहिए। जिसका कि राष्ट्रहित में पहला उदाहरण बनने का गौरवशाली इतिहास रहा है।
मॉब लिंचिंग चिंता की बात, इसे सीधे मुस्लिम लिंचिंग कहें क्या?