।।वेद में अयोध्या को ईश्वर का नगर बताया गया है, ‘अष्टचक्रा नवद्वारा देवानां पूरयोध्या’।।
पुराणों और महाकाव्यों के अनुसार सातवें मनु ‘वैवस्वत मनु’ ने अयोध्या नगरी बसाई थी। अथर्ववेद और तैत्तिरीय आरण्यक में इसका उल्लेख किया गया है।
सरयू नदी के तट से ये नगरी 144 किमी के घेरे में बसी हुई थी। जैन मत के अनुसार यहां आदिनाथ सहित पांच तीर्थंकरों का जन्म हुआ था लेकिन ये भ्रम इसलिए फैला क्योंकि गौतम बुद्ध ने अयोध्या में छह साल बिताए थे।
इस तथ्य का पता एक ब्रिटिश पुराविद एलेक्जेंडर कनिंघम ने लगाया था। वह सन 1862 में अपने दोस्त फ्यूरर के साथ अयोध्या आया था।
उसने अपनी रिपोर्ट में लिखा है ‘सन 1523 ईस्वी में राम मंदिर तोड़कर बाबरी मस्जिद बनाई गई। मस्जिद बनाने के लिए काले प्रस्तर (कसौटी) पत्थरों के बने स्तम्भों का उपयोग किया गया था।’
औरंगजेब ने स्वर्गद्वार और त्रेता ठाकुर के स्थान पर मस्जिद बनाई। फ़ैजाबाद के संग्रहालय में आज भी उस ठाकुर स्थान का प्रमाण रखा हुआ है।
यहाँ पर सातवीं शाताब्दी में चीनी यात्री हेनत्सांग आया था। उसने बताया है कि बुद्ध यहाँ ‘वर्षावास’ करते थे। सन 1970 में यहाँ से पुराविदों को पहली शताब्दी में बनी ताम्बे की मुद्राएं मिलती हैं। बुद्ध के आने से भी बहुत पहले की मुद्राएं। मुद्राओं पर ब्राम्ही भाषा में ‘अजुधे’ लिखा पाया जाता है।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण बताता है कि अयोध्या में पहली बस्ती के प्रमाण सातवीं शताब्दी ईसा पूर्व के पाए गए है। गुप्त युग के बाद क्षेत्र के आवासीय जमाव में लम्बा अंतराल पाया गया यानी चार बार अयोध्या के उजड़ने की कथा पर पुरातत्व विभाग मोहर लगा रहा है।
अयोध्या के पुरातन अवशेषों ने बताया कि वे प्राचीन लोग मिट्टी के वैज्ञानिक प्रयोग जानते थे। उन्होंने ईंटें बनाने में प्रवीणता हासिल कर ली थी। अयोध्या में मिट्टी से बने वलयाकार कुँए (रिंग वेल्स) के अवशेष मिले थे। अयोध्या के राजा रहे गोविन्द चन्द्र देव एवं उनके वंशजों ने यहां मंदिर का पुनर्निमाण कराया था। इसी मंदिर को बाबर ने 1528 में तुड़वाया था।
अयोध्या की खसरा-खतौनी में रामकोट पर दशरथ के पुत्र राम का नाम दर्ज है। इतने साक्ष्य होने के बाद भी राम जन्मभूमि का प्रकरण न्यायालय में लंबित है तो ये हिन्दुओं के लिए डूब मरने वाली बात है। जिस पवित्र भूमि पर गौ माता का दूध गिरा था, वहां राम मंदिर बनाया गया। उस भूमि पर निगाह डालने वाले बाबर और औरंगजेब को कैसी मौत नसीब हुई, इतिहास गवाह है।
मर्यादा पुरुषोत्तम राम सब कार्य स्वयं ही कर रहे हैं। हम अस्सी करोड़ आत्माओं में उनका ही रक्त प्रवाहित हो रहा है। उन्होंने हमसे सब कार्य करवा लिया है और आज उच्चतम न्यायालय से भी उन्होंने अपने मन की करवा ली है।
अभी तो आधी राह बाकी है। बची आधी राह काँटों से भरी होगी। ये आप सबकी सबसे कठिन अग्नि परीक्षा होगी। राम लला अपना आखिरी कार्य आपके सहयोग से ही करेंगे। राम भली करेंगे।
हमने निर्णय लिया ढांचा टूट गया, हमने निर्णय किया होता तो मंदिर बन गया होता