मोदी जी का आना 2014 में मेरे जैसों समेत कईयों के लिए अद्भुत रहा है।
मन में ये स्पष्ट है कि एक तो बन्दा है जो तन मन धन से भारत का झंडा लहरा रहा है। वहीं विपक्ष की करतूतों से साज़िशों की बू आती मात्र दिखती है, जो झंडा तो नहीं, पर कुर्सी मात्र छीन लेना चाहता है।
पिछले सत्तर सालों में क्या हुआ था जो इन चार सालों में हुआ। खाना पीना सबका अबाध चलता ही रहता है। अपना अपना क्रम होता है। पर फिर बदला क्या?
सत्तर सालों ने भारत के आत्मबल को छीन लिया था। एक नैरेशन स्थापित किया गया था जिससे विदेशों से तुलना सहज हो जाती है। चल तो उसी विकास के रास्ते पर रहे थे, हमें विदेश को ओवरटेक करने का जॉब दिया गया था।
वो कभी सम्भव होने वाली बात नहीं थी। पर लगातार यही इंजेक्ट किया गया, कि तुम बड़े गलत हो, पिछड़े हो, देखो विदेश में ऐसा है, वैसा है। हीनता की भावना समाज की आत्मा में भरी गयी।
गुलामी के पहले लॉयलिटी आदि गुण भरपूर थे, लोकतंत्र की सेटिंग करके उसे नष्ट किया गया। नष्ट किया गया सामान्य जन का आचरण। एक ही परिवार के हाथों देश फुटबॉल की तरह लुढ़कता रहा।
अभी आंखें खुली सी लगती हैं। मोदी जो कर रहे हैं, सम्भव है कि वो परफेक्ट न हो, पर ये बात परफेक्ट है कि वो व्यक्ति मन वचन कर्म से केवल देश के लिए लगा है।
मोदी की असली कीमत विपक्ष की कारगुजारी को देखकर समझ में ज्यादा आ रही है। मेरे जैसे व्यक्ति के लिए ये सोचना कठिन नहीं है कि एक तरफ सामूहिक सोद्देश्य देश का पीएम खड़ा है, दूसरी तरफ विरोध के नाम पर नेताओं का वर्ग और पत्रकारों का समूह खड़ा है।
स्मृति में आता है कि 2014 में मोदी जी से पत्रकार पूछ रहे थे – आपकी गवर्नमेंट में मुसलमानों की क्या स्थिति होगी? एक भयजनित वामी पत्रकारिणी का प्रश्न था। उत्तर मोदी जी ने दिया।
उसके बाद 4 साल निकल गए, मोदी जी उस दिए गए उत्तर को प्रमाणित करते हुए और आगे निकल गए, पर पत्रकार जगत की फांस न निकली। मोदी बढ़ते गए, पत्रकार विशेष गुट की फांस भी बढ़ती गयी।
मुकाबला तो केवल बीजेपी और कांग्रेस का है। कांग्रेसी कवायद सबसे मिलकर गठबंधन की इतनी सी है कि कैसे न कैसे सत्ता हासिल की जाए। भले काम करो या न करो। अब तो कोई लायक भी नहीं उनके पास।
रीजनल पार्टी के नेता खुश तो हैं, पर इसी बात से खुश हैं कि उनकी रीजनल सत्ता की खाने की थाली बचे रहे। कांग्रेस किसी भी महत्त्वाकांक्षी रीजनल नेता किसी भी पार्टी वाले को आगे नहीं आने देगी। वो काइयाँपन पहले से देखा आया गया है।
किसी और वृद्ध नेता को पीएम की कुर्सी पर बैठाने का उद्देश्य केवल इतना समझ लेना पर्याप्त है कि उस समय देश की स्थिति बहुत खराब रही होगी। विशेष परिवार का कोई सदस्य वहां कुर्सी पर बैठकर राजनीतिक असफलताओं का तिलक अपने माथे क्यों लगाता। रीजनल पार्टी वाले शेयरहोल्डर के सपने केवल मुख्यमंत्री बनने तक सीमित हैं। मजबूरी में साथ हैं।
मोदी के आने के बाद भौतिक विकास के अलावा जो आत्मबल और गौरव देश में पैदा हुआ है, वो केवल मोदी ही कर सकते थे, कर सकते हैं। राजनीति की परिभाषाएं ही बदल गयी हैं। सोचने का तरीका भी। चाहे समाज का कोई वर्ग हो, व्यवसायियों का वर्ग हो, ब्यूरोक्रेट्स हों, बॉलीवुड ही क्यों न हो। सबका टेस्ट अचानक से बदल गया। यही विकास का उद्घोष है। सत्ता में कोई एकनिष्ठ आ जाये तो ये होता है, ऐसा घटना देखकर मन उल्लसित हो जाता है।
वोटबैंक के प्रति तक नज़रिये बदले हैं। वो प्रमुख नहीं रहा है। उसकी बात तक कोई नहीं कर रहा। उसकी उपयोगिता ही समाप्त हो चुकी है।
मेरे ख्याल से मोदी वो नेता संसार के एकमात्र होंगे, जिनके समर्थक ही आपस में भिड़े रहते हैं। एक को राफेल चाहिए, एक को राम मंदिर चाहिए, कुछेक को दोनों चाहिए। इन्हीं अपेक्षाओं के साथ चल रहे हैं।
मज़े की बात तो ये है कि विपक्ष का कोई मोल ही इन्हीं बातों से नहीं रहा। सोशल मीडिया तक पर ही पहले की भांति जो दूसरे पक्ष से शाब्दिक लड़ने की बात होती थी, वो अद्भुत रूप से किनारे हो गई है। ये वैसे ही हैं, ऐसा कह कर उनपर ध्यान ही नही दिया जाता। इससे अद्भुत दृश्य क्या होगा।
मोदी की सफलता देश को एकजुट कर चलने की है। उनकी संकल्प शक्ति और आचरण के कारण ऐसा हुआ है जो काम भी करता है, शत्रुओं की बुद्धि को साथ साथ ठिकाने भी लगाते चलता है।
ये देखना आश्चर्य की बात ही होगी, आप देखना कि कैसे भारत का गरीब वर्ग और स्त्री वर्ग मोदी जी को वापिस भारत के सिंहासन पर आरूढ़ करता है।
विपक्ष के काइयाँपन पर कोई भरोसा नहीं, जब परमात्मा साथ है तो इसकी चिंता फिलहाल छोड़ देता हूँ। सबको साथ लेकर चलने वाले मोदी जी की जय। हमारे देश के अभूतपूर्व प्रधानमंत्री होने के आपको थैंक्स।
हमारा अच्छा है, उसका प्रयोग कर हम आगे बढ़ेंगे, ऐसा आत्मगौरव देने वाले देश के प्रधानमंत्री का हार्दिक अभिनंदन। वापिस आइए। इस देश को आपकी आवश्यकता है।