आज घर से निकलते समय एक पड़ोसी से झिक झिक हो गई।
मेरा फ्लैट लंदन के हाशिये पर है, लंदन और सरे का बॉर्डर। एक समय लंदन से बाहर, गरीब इलाका गिना जाता था। वहाँ कोई संभ्रांत भारतीय नहीं बसता। कोई डॉक्टर तो कतई नहीं। निम्नवर्गीय अंग्रेजों और अश्वेतों का इलाका था।
प्रॉपर्टी सस्ती देखकर खरीदी थी। तब से पिछले सात सालों में इसका प्रोफाइल बदल सा गया है। यह लंदन के अंदर गिना जाने लगा है। कीमतें भी लगभग दो गुना हो गई हैं। पर अड़ोस पड़ोस का माहौल वैसा ही है। हाँ, उस इलाके में नए बसने वालों का प्रोफाइल कुछ और ही है, वह पुराने बसे अंग्रेजों को नहीं पचता।
अपने आस पास के माहौल के विपरीत मेरा फ्लैट एक बन्द अहाते में 40 फ्लैट्स की कॉलोनी है। भारत की कॉलोनीज़ के विपरीत यहाँ लोगों का एक दूसरे से संपर्क शून्य से थोड़ा कम ही है।
आज तक मेरी किसी पड़ोसी से बात हुई है तो किसी झगड़े या खिचखिच के संदर्भ में ही। यह लंदन का सामान्य चरित्र है। आप अपने पड़ोसी से सिर्फ तभी बतियाते हो जब कोई झगड़ा या शिकायत करनी हो।
उस कॉलोनी के अंदर की सड़क पर दोनों ओर लोग अपनी कारें पार्क करते हैं। कोई निर्धारित पार्किंग नहीं है। सबके अपने अपने गैराज हैं पर आधे लोग ही अंदर गाड़ी पार्क करते हैं। वह लोगों के लिए स्टोरेज ही बना हुआ है। जिन्हें गेट के अंदर पार्किंग मिलती है वे अंदर पार्क करते हैं। नहीं तो गेट के बाहर सड़क के किनारे जैसा कि लंदन का दस्तूर है।
निकलने से पहले अपनी गाड़ी पर कपड़ा मार रहा था तभी एक अंग्रेज़ महिला आकर मुझसे झगड़ा मोल लेने की कोशिश करने लगीं… तुमने यहाँ तीन तीन गाडियाँ पार्क कर रखी हैं… यह ठीक नहीं है।
हाँ, मेरी पिछली गाड़ी लॉन्ग कम्युट के लिए सुरक्षित नहीं थी तो मुझे नई गाड़ी खरीदनी पड़ी। और पुरानी गाड़ी यह सोच कर नहीं बेची कि थोड़े दिनों में बेटे के काम आएगी। एक छोटी वाली ऑटोमैटिक पल्लवी की है। हाँ, मेरे इलाके में ब्रांड न्यू मर्सेडीज़ एसयूवी आँखों में थोड़ी खटक सकती है… पर लंदन में सामान्यतः यह कोई विशेष ध्यान देने लायक कार नहीं है।
मैंने कहा – हाँ, मेरे पास तीन कारें हैं… तो? मेरे घर में तीन एडल्ट हैं… पर तुम्हें समस्या क्या है?
– नहीं, यह दूसरों के लिए फेयर नहीं है? तुम यहाँ तीन गाडियाँ पार्क करते हो।
– हाँ, जब खाली जगह मिलती है तो पार्क करता हूँ, नहीं तो बाहर पार्क करता हूँ… पर यह तुम्हारी प्रॉब्लम क्यों है?
– नहीं, तुम यह नई कार कभी बाहर पार्क नहीं करते…
– हाँ, नहीं करता! पर तुम्हें प्रॉब्लम क्या है? मेरी कार, मुझे जहाँ जगह मिलती है पार्क करता हूँ… तुम अपनी कार कहाँ पार्क करती हो?
– मैं तो गैराज में पार्क करती हूँ।
– फिर! मैं कार कहाँ पार्क करता हूँ इससे तुम्हें क्या तकलीफ है?
इनकी यह तकलीफ नई नहीं है। जब मेरे पास मेरी पहली और एकमात्र कार थी तो भी इसी महिला ने ऐसा ही एक बेकार का झगड़ा खड़ा करने का प्रयास किया था। उसे समस्या कार से नहीं, मुझसे है। जबकि वह किस घर में रहती है, क्या करती है… मुझे कुछ नहीं पता। बस इतना जानता हूँ कि लगभग 60-65 की अंग्रेज़ महिला है जो बेहूदा मेकअप करती है और अपनी कार के रंग से मैच करता नीला आई शैडो लगाती है।
मैंने उसे कोई सफाई नहीं दी… बस झिड़क दिया… तुम हो कौन? द ग्रेट कम्युनिस्ट? मेरे पास तीन कारें हैं या पाँच यह देखना तुम्हारा काम है? यह किसके लिए फेयर है या अनफेयर है इसपर बोलने की तुम्हारी क्या अथॉरिटी है? सबकी ओर से बोलने की अथॉरिटी तुम्हें किसने दी? जाओ अपने काम से काम रखो. बकवास करने वाले फालतू लोगों से बात करने का टाइम नहीं है मेरे पास…
वैसे वे कोई गरीब-गुरबा नहीं हैं। घर उनके पास मुझसे पहले से है… कार भी मुझसे पहले से ही है। कपड़े भी ठीक-ठाक पहनती है। जितने का मैं महीने में डीज़ल जलाता हूँ उतने का वह मेक-अप पोत लेती होगी। पर अंदर की जलन बोलती है।
पहले शायद अपने आप को इस पूरी कॉलोनी का सबसे संभ्रांत गिनती होगी… अभी उसे समस्या होने लगी। थोड़ा रेसिस्म का एंगल भी होगा… क्योंकि यहीं एक नाइजीरियन भी है जिसके पास एक पोर्शे और एक बीएमडब्ल्यू है… पर अश्वेतों को कुछ बोलने में अंग्रेज़ डरते हैं। एशियाई आसान निशाना लगते हैं।
यह उदाहरण एक बिल्कुल सटीक वामपंथी व्यवहार है। दूसरों का पक्ष लेकर खड़े होना। एक काल्पनिक अन्याय की कहानी गढ़ना और उस अन्याय के विक्टिम का पक्ष लेकर झंडा खड़ा करना।
यह उन्हें एक लेजिटिमेसी देता है, एक सेन्स ऑफ पॉवर देता है। पर मूल में है ईर्ष्या और जलन… कि कोई और उनके आस-पास क्यों आ रहा है? दूसरा कोई उनसे अच्छी स्थिति में क्यों है?
दूसरों की ओर से बोलने के, दूसरों का प्रवक्ता बनने के उनके इस अधिकार पर प्रश्न खड़े कीजिये… उनकी इस चौधराहट को लेजिटिमेसी मत दीजिये… यही है विषैले वामपंथ का इलाज।
याद रखो, तुम जीतोगे, क्योंकि तुम उन हरामज़ादों से बेहतर इंसान हो…