अयोध्या विवाद और भारतरत्न बिस्मिल्लाह ख़ान

बात 6 दिसम्बर 1992 को हुए बाबरी ध्वंस के कुछ समय बाद की है।

उन दिनों विनोद दुआ परख नाम का एक कार्यक्रम दूरदर्शन पर किया करता था।

अपने उसी कार्यक्रम के एक एपिसोड में उसने भारत रत्न शहनाई सम्राट बिस्मिल्लाह ख़ान का इंटरव्यू लिया था।

थोड़ी देर इधर उधर की बातें करने के बाद वो अपने एजेंडे पर आ गया था और उसने बिस्मिल्लाह ख़ान से सीधा सवाल पूछा था कि आप एक मुसलमान हैं, आप पूरी दुनिया में प्रसिद्ध हैं तथा पूरी दुनिया में आप प्रोग्राम करते हैं, तो यह बताइए कि 6 दिसम्बर 92 को अयोध्या में हुए बाबरी ध्वंस के बाद जब आप विदेशों में गए तो आपको क्या और कैसी प्रतिक्रियाएं मिलीं तथा आप उस बारे में खुद क्या सोचते हैं?

विनोद दुआ के इस सवाल जो जवाब बिस्मिल्लाह ख़ान जी ने दिया था उस जवाब को मैं आजीवन कभी नहीं भूलूंगा। उन्होंने विनोद दुआ को जवाब देते हुए कहा था कि…

माफ कीजिये, जब मैं विदेशों में जाता हूं तो मेरी पहचान हिन्दू या मुसलमान की नहीं होती, लोग मुझे हिन्दू या मुसलमान के रूप में नहीं जानते पहचानते। मैं जब भी विदेश जाता हूं तो लोग कहते हैं कि हिंदुस्तान से एक हिंदुस्तानी आया है, एक कलाकार आया है।

दूसरी बात यह कि मैं खुद क्या सोचता हूं तो यह जान लीजिए कि जब नमाज पढ़नी होती है तो जहां होता हूं वहीं चादर बिछाकर काबा की तरफ मुंह कर के नमाज़ पढ़ लेता हूं। मेरे और अल्लाह के बीच में दूसरी कोई और चीज की मुझे जरूरत कभी महसूस नहीं हुई।

बिस्मिल्लाह ख़ान के मुंह से निकले इस जवाब के बाद विनोद दुआ का चेहरा देखने लायक था। उनके मुंह से कुछ आग लगाऊ, अनर्गल बात कहला के उस बात का बतंगड़ बनाने का उसका मंसूबा बिस्मिल्लाह ख़ान के जवाब से पूरी तरह ध्वस्त हो गया था।

आज अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट में आये एक फैसले के बाद बिस्मिल्लाह ख़ान का वो इंटरव्यू और भारतरत्न शहनाई सम्राट स्व. बिस्मिल्लाह ख़ान याद आ गए।

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