गाय और गँगा को हमारे पूर्वजों ने माँ के समान माना। इनको माँ कह कर संबोधित करवाया ताकि इनकी महत्ता को हम समझ सकें।
पूर्वजों ने भविष्य की कल्पना कर ली रही होगी इसलिए ही गाय, गँगा, तुलसी, पीपल, बरगद, केला और आँवला को पूजनीय बना दिया।
भय बिन होंहि नहीं प्रीति….. पाप के भय से ही इनका संरक्षण आनेवाली पीढ़ी करती रहेगी।
पाश्चात्य सभ्यता को आदर्श मानने वालों के लिए तो ये रूढ़ि और अंधविश्वास की श्रेणी में आने वाले काम हैं।
पशु, नदी और पेड़ को देवता मानना उसकी पूजा करना मूर्खता ही है।
पर कहते हैं न “जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ”
जिन लोगों ने ढूंढा उन लोगों ने पाया कि गाय है तो पशु, पर जीवनरक्षक और जीवनदायिनी गुणों की खान है।
उसी तरह गँगा एक नदी है पर इसके जल में जो है वह सँसार के किसी नदी के जल में नहीं है।
1896 में एक ब्रिटिश वैज्ञानिक ई हैनबरि हैनकिन में अपने शोध में पाया था कि कॉलरा के जीवाणु गँगा जल में तीन घंटे से ज्यादा जिन्दा नहीं रह पाते हैं, जबकि साधारण शुद्ध जल में ये नहीं मरते हैं।
विज्ञान की दुनिया में गँगाजल एक अनसुलझा रहस्य है। अभी भी वैज्ञानिक गंगाजल के रहस्य को सुलझाने के प्रयास में लगे हुए हैं।
हाल में ही चंडीगढ़ के इंस्टीट्यूट ऑफ माइक्रोबियल टेक्नोलॉजी (इमटेक) के वैज्ञानिकों ने गंगाजल में रोगों को ठीक करने की क्षमता का प्रमाणिक साक्ष्य अपने अध्ययन के साथ दिया।
इनके अध्ययन में पता चला कि गंगाजल में टीबी, न्यूमोनिया, कॉलरा और मूत्र सम्बन्धी रोगों को उत्पन्न करने वाले बैक्टीरिया को नष्ट करने वाले 20-25 तरह के जीवाणुभोजी अर्थात् अच्छे किस्म के बैक्टीरिया पाए जाते हैं।
ये जो अच्छे बैक्टीरिया और वायरस होते हैं, वो खराब अर्थात् बीमारी उत्पन्न करने वाले बैक्टीरिया को खा जाते हैं।
अध्ययन के लिए इन वैज्ञानिकों ने हरिद्वार और बनारस से जल के नमूने लिए थे।
इसके पहले के शोधों में वैज्ञानिक इस निष्कर्ष पर तो पहुँचे थे कि गंगाजल में सड़न पैदा नहीं होने के विशिष्ट गुण हैं, इसलिए वर्षों गंगाजल घरों में रहने पर भी खराब नहीं होता है।
आज जब गंगाजल प्रदूषित है तब भी उसमें बीमारियों को नष्ट करने के गुण विद्यमान हैं।
यदि प्रदूषित नहीं रहता तब क्या होता कल्पना कर सकते हैं क्या?
सीवरेज और औद्योगिक कचरे से तो पानी प्रदूषित होता ही है… धार्मिक अनुष्ठान और पॉलीथिन भी कम गंदगी नहीं फैलाते हैं।
भारत सरकार ने राष्ट्रीय गँगा स्वच्छता अभियान (एन एम सी जी) को शुरू किया है पर इसका काम अभी प्रारंभिक अवस्था में है।
सरकार इसको जुर्माना लगाने का अधिकार भी देने जा रही है। अभी जुर्माना लगाने का अधिकार केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के पास है।
जुर्माना थोड़ा भय पैदा तो करेगा पर जब तक जनजागरूकता नहीं फैलाई जाएगी तब तक गँगा की स्वच्छता का अभियान प्रभावी नहीं होगा।
गंगाजल के लाभ को आम जन समझ जाए तो वो भी सतर्क हो जाएगा और नई पीढ़ी को भी गँगा की पवित्रता बनाए रखने की शिक्षा देने लगेगा।
गँगा को नदी नहीं माँ मानना ही होगा… पूजा करनी होगी पर प्रदूषित नहीं करना होगा। बिना पैसे की दवा है गंगाजल बचा सकते हैं तो बचा लीजिए।
बोलो गँगा मैया की… जय।