वंचित-पीड़ित-शोषित-मज़दूर/ जल-जंगल-ज़मीन की ठेकेदारी की गरज से देश की आर्थिक और सामाजिक विपन्नता महज नारों के तेल और स्वार्थ की कढ़ाई चढ़ा पकौड़े के तौर पर बेचे-खाये-कमाए तो जा सकते हैं, लेकिन ज़िम्मेदारी निभाते हुए कभी कुछ किया भी हो, उसके उदाहरण नहीं मिला करते।
मिला करते हैं अगर तो… 32 सालों के साम्यवादी सत्ता के बाद पश्चिम बंगाल में कर्मचारियों के लिए 5वें वेतन आयोग की कमाई और न्यूनतम मज़दूरी मूल्य का छोड़ा गया इतिहास।
उदाहरण अगर मिला करते हैं व्यवहार के और मिल सकते हैं… तो केवल राष्ट्रवाद के पास मिल सकते हैं, क्योंकि भारत में राष्ट्रवाद अपने व्यवहार में हमेशा और देश की आज़ादी के पहले से सत्ता पर काबिज सत्ता-वंशीय के खिलाफ रहा है… देश के शोषित-पीड़ित-वंचित तबके के साथ रहा है। जबकि खुद को ठेकेदारी की वसीयतदार कहने वाली जमातें हमेशा सत्ता के साथ रहीं, और आज भी ये नज़दीकी साफ तौर पर देखी जा सकती हैं।
फरवरी 2016 में भारतीय रेलवे ने अपने घोषित बजट में सामान्य श्रेणी यानी जनरल क्लास के यात्रियों को रेल की परंपरागत यात्रा त्रासदी से मुक्ति दिलाने कर लिए ट्रेनों में जनरल क्लास डिब्बों को दीनदयाल उपाध्याय कोच की सुविधा देने की व्यवस्था की।
नवंबर 2016 में पहला दीनदयाल कोच दिल्ली के आनंद विहार से गोरखपुर के बीच चलने वाली साप्ताहिक 15058/15057 एक्सप्रेस ट्रेन में लग कर रवाना हुआ। शुरुआत में लंबी दूरी की पॉपुलर ट्रेनों में इसके 2 से 4 कोच ही लगाए गए।
बनारस से सुल्तानपुर, लखनऊ होकर कानपुर तक चलने वाली वरुणा एक्सप्रेस प्रदेश की सबसे पहली ट्रेन है जिसमें पूरी ट्रेन में दीनदयाल कोच लगाए गए।
इनमें हर कोच में 2 तरफ पीने के पानी के लिए आरओ की मशीने हैं जिससे यात्रियों के लिए आरओ का फिल्टर पानी निःशुल्क है।
मोबाइल चार्जिंग की सुविधा और बायोटॉयलेट की व्यवस्था लंबी दूरी की यात्रा जनरल क्लास में करने वाले समाज को भी सफाई, आराम और पीने के पानी जैसी बुनियादी और मौलिक सुविधाएं दे रही हैं।
बिना किसी अतिरिक्त शुल्क या भाड़े के।
इसी क्रम में नई बात यह है कि रेलवे इस सुविधा को सामान्य से अति सामान्य की यात्रा कराने जा रही है। कम दूरी की ट्रेनों में भी अब सामान्य श्रेणी के कोचों के तौर पर दीनदयाल कोच लगाने की शुरुआत की जा रही है।
2016 के बजट में सुविधा घोषित करने के बाद रेलवे बोर्ड ने सभी ज़ोनों से प्रमुख गाड़ियों की सूची मांगी और उदाहरण के लिए पूर्वोत्तर रेलवे गोरखपुर की आधा दर्जन लंबी दूरी की ट्रेनों में ये कोच लगा दिए गए।
अब छोटी दूरी की ट्रेनों के लिए पूर्वोत्तर रेलवे को 30 दीनदयाल कोच मिल रहे हैं जिन्हें पैसेंजर और कम दूरी की एक्सप्रेस ट्रेनों में लगाया जाएगा। यहां एक ज़ोन की बात रखी गयी, योजना राष्ट्रीय स्तर पर चला रही है रेलवे।
यह सच है कि भारतीय रेल ने पिछले कुछ सालों में क्रमिक रूप से वैल्यू ऐडेड सुविधाओं पर खूब बेहतर ढंग से काम किया है। ट्रेनों सीट आरक्षण व्यवस्था में व्याप्त दलाल नेटवर्कों को तकनीकी आधारित उपायों से बेदखल करने के सहयोगी माहौल के बीच ट्रेनों में सीट-बर्थ मिलने के अवसरों में बड़ा सुधार आया है।
इस सबके साथ ही समाज के उस तबके जो श्रमिक है, आर्थिक तौर पर कमज़ोर है, जिसे सर्वहारा कह कर सदियों से राजनीति और वैचारिक खुराफ़ातों के प्रपंची बाज़ारों में बेचा गया… को भी सुकून से यात्रा करने की यह सुविधा समाज के अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति तक उसके नागरिक हक के पहुंचाने की जिम्मेदारी का निर्वहन है।
थोथे नारों, बहकी बातों और भद्दे आरोपों से हवाई ज़मीन पर, हवाई कागज़ों के जहाज़ तो उड़ाए जा सकते हैं… लोहे की रेल नहीं दौड़ाई जा सकती।
‘ये बच्चों का खेल नहीं’… उज्जवला की रसोई, शौचालय के साथ आवास, राशन की डिजिटल वितरण व्यवस्था, जनधन, किसान-फसल बीमा, जन जीवन बीमा, जन आरोग्य स्वास्थ्य सेवा सहित तमाम लहलहाती फसलों के बीच… वोटर-आधार-बैंक पासबुक-किसान कार्ड से लैस… हरी-भरी मेंड़ पर बैठे रामखेलावन यही बुदबुदा कर अपनी अपनी बाएं हाथ की तर्जनी उंगली खुजला रहे हैं।