कांग्रेसियों और नेहरु-गांधी परिवार को हिन्दू समाज की औकात और खोखली समझदारी का बहुत बारीकी से अंदाज है. इसी की मदद से कांग्रेस देश में लम्बे समय तक हिन्दुओं का मर्दन करते हुए भी राज करने में सफल हुयी.
2014 में कांग्रेस को अंदाज ही नहीं था कि मोदी उनको हरा पाएंगे. कांग्रेस का अनुमान था कि अगर उसकी सीटे कम आई तो उसके समर्थक राजनीतिक दल की इतनी सीट अवश्य आ जायेगी कि मिलीजुली सरकार बन सके.
लेकिन कांग्रेस और उसके समर्थक दलों का यह सपना जब पूरा नहीं हुआ तो मोदी सरकार बनने के बाद कांग्रेस ने हिन्दू समाज के बड़े हिस्से दलित और ओबीसी को भड़काना शुरू किया. देश के कई हिस्सों में दलितों पर प्रायोजित हमले करवा कर उन घटनाओं को देश भर में फैलाना शुरू किया. तमाम तरह की कुटिल चाले चली गयीं.
दूसरी तरफ सवर्ण समाज के कट्टर जातिवादियों को भी कांग्रेस ने भड़काना शुरू किया और इन कट्टर लोगों ने भी जाने या अनजाने में कांग्रेस के मंसूबो को पूरा किया. रोहित वेमुला की मौत और गुजरात में एक दलित की प्रायोजित हत्या के जरिये कांग्रेस ने इस समाज को कायदे से भड़काया.
बाद के समय में सुप्रीम कोर्ट भी लम्बे समय बाद नींद से जागते हुए बताने लगा कि देश में सवर्णों के साथ भयंकर अन्याय हुआ है. फिर जैसे ही सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया नेहरु-गांधी परिवार और उसके समर्थक बुद्धिजीवियों तथा वामपंथी मीडिया ने देश में माहौल बनाना शुरू किया कि मोदी सरकार दलित विरोधी है. यही नहीं इसी मुद्दे पर देश भर में व्यापक आन्दोलन किये गए.
कांग्रेस का एजेंडा साफ़ था कि हिन्दू समाज के इस बड़े हिस्से को अलग कर दिया जाए. कांग्रेस को सवर्ण समाज का स्वभाव भी अच्छे से मालूम है कि अपने अपने निजी स्वार्थों के तहत ये समाज राजनीतिक स्तर पर भी बंटा हुआ है लेकिन फिर भी इसका एक बड़ा हिस्सा भाजपा के साथ ही है.
फिर जब मोदी ने कांग्रेस की चाल को समझते हुए हिन्दुओं के व्यापक हितों के मद्देनजर तथा देश के भविष्य के सन्दर्भ में कांग्रेस की कुटिल चाल को काटते हुए सुप्रीम कोर्ट के आदेश को अध्यादेश के जरिये पलटा तो इस काम में बहुत मज़बूरी के साथ कांग्रेस ने भी राज्य सभा में मोदी का साथ दिया था.
कांग्रेस को मालूम था कि अगर राज्य सभा में दलित मुद्दे पर उसने मोदी का विरोध किया तो वह इस समाज के सामने नंगी हो जायेगी. इसलिए संसद के उच्च सदन राज्य सभा में कांग्रेस ने दलित मुद्दे से सम्बंधित बिल पास करा दिया लेकिन इसके साथ ही कांग्रेस ने पहले से ही सवर्ण समाज को भड़काने की भरपूर तैयारी कर रखी थी. और फिर कांग्रेस ने सोशल मीडिया तथा अप्रत्यक्ष मदद से प्रायोजित रैलियों और प्रदर्शन की व्यवस्था की. और बड़ी संख्या में सवर्ण समाज के लोग कांग्रेस की इस चाल को समझने में नाकामयाब हुए.
कांग्रेस और उसके समर्थक राजनीतिक दलों को अच्छे से मालूम है कि समग्र हिन्दू समाज की एकता उनकी राजनीति और एशोआराम तथा अघोषित एजेंडों को राख कर देगी.
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