यदि आप सुबह साढ़े पांच बजे जाग जाओ तो आपको दो यक्ष प्रश्नों का सामना करना पड़ सकता है।
● पहला –
चाय खुद बनाऊं या अर्धांगिनी को जगाने का दुःसाहस करूँ?
परिणाम: आप कुछ भी करो आपको “चार बातें” सुनना ही है। आप यदि खुद चाय बना लो तो सुबह-सुबह ब्रह्म मुहूर्त में आठ बजे जब भार्या जागेगी तो आपको सुनना है -“क्या ज़रूरत थी खुद बनाने की, मुझे जगा देते, पूरी तपेली जला कर रख दी, और वह दूध की तपेली थी, चाय वाली नीचे रखी है दाल भरकर”
(विश्लेषण : चाय खुद बनाने से पत्नी दुखी हुई / शर्मिंदा हुई / अपने अधिकार क्षेत्र में घुसपैठ से भयाक्रांत हुई / या कुछ और … आप कभी समझ नहीं पाएंगे, दूध की तपेली में चाय बनाना गुनाह है लेकिन चाय की तपेली में दाल भरकर रखी जा सकती है )
और यदि आपने पत्नी को जगा दिया तो आप सुनने के लिए तैयार रहिये – “मेरी तो किस्मत ही ख़राब है। एक काम नहीं आता इस आदमी को, पिताजी ने जाने क्या देखा। आधी रात को चाय चाहिए इन्हे… अभी अभी तो पीठ सीधी की थी और इनकी फरमाइशें हैं कि ख़त्म नहीं हो रही”
चाय बनकर, पी कर ख़त्म हो जाएगी पर ‘श्लोक सरिता’ का प्रवाह अविरत रहेगा।
● दूसरा –
यदि आप चाय खुद बना रहे हैं और शक्कर के डिब्बे में शक्कर आधा चम्मच बची है तो आपके दिमाग में विचार आएगा ही कि बड़े डिब्बे से निकालकर इसमें टॉप-अप कर देता हूँ
यदि आपने ऐसा किया तो पता है क्या सुनोगे?
पता तो है आपको, लेकिन ये जो इनोसेंट बनकर ना में गर्दन हिला रहे हो न, तो सुन ही लो…
आपको शर्तिया सुनना पड़ेगा – “किसने कहा था शक्कर निकालने को? मुझे वह डिब्बा आज मँजवाना था इसी लिये खाली था ”
निष्कर्ष : संसार में पति नाम का जो जीव होता है उसमें अकल का अकाल होता है।
“सर्व गुण संपन्न” या तो ‘भैया’ होता है या फिर “जीजाजी”
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