आज फेसबुक पर एक पोस्ट देखी जिसमें हिटलर की नाज़ी आइडियोलॉजी की तारीफ़ करते हुए इसे समझौता न करने वाली बताया है।
इस पोस्ट कट्टर राष्ट्रवादियों ने हाथों हाथ ली है। वैसे तो मैं पोस्ट करने वाले सज्जन की लेखनी की प्रशंसक हूं परंतु पहली बार मैंने उनकी इतनी फैक्चुअली इनकरेक्ट पोस्ट पढ़ी है।
दरअसल हिटलर के उत्थान का कारण जानने के लिये प्रथम विश्व युद्ध की तरफ जाना पड़ेगा, जिसमें हार के बाद जर्मनी पर बहुत अपमाजनक शर्तें लगाई गई थीं, जिससे द्वितीय विश्वयुद्ध के बीज पड़ गये थे। वारसा की संधि गूगल करके देखा जा सकता है।
सीन कट होता होता है –
अब यह 1945 है – आइडियोलॉजी गई, पार्टी गई, स्वाभिमान गया, करोड़ों की जान गई, देश खंडित और खंडहर हो गया…
जब कोई व्यक्ति बिना सोचे समझे, अपनी आइडियोलॉजी का गुलाम हो जाता है तो न सिर्फ वो खुद बर्बाद होता है, बल्कि अपने साथ पूरे देश को ले डूबता है।
कोई भी आईडियोलॉजी आपके सर्वाईवल/ अस्तित्व से बड़ी नहीं होती, खासकर जब आपके साथ करोड़ों लोग जुड़े हुये हों। आपको पता होना चाहिये कि हिटलर की कट्टर आईडियोलॉजी वजह से जर्मनी को बहुत अपमान से गुजरना पड़ा, जिसने न सिर्फ खुद उसे आत्महत्या करने पर मजबूर किया, वरन उसकी वजह से करोड़ों लोग मरे और जर्मनी के दो टुकड़े हो गये थे।
यहूदियों के होलोकास्ट/ नरसंहार और मानवता को छोड़ भी दिया जाये तो भी अपनी सेना, अपने लोगों और अपने देश के प्रति किये हुए पाप कम नहीं हो जाते। आज 73 साल बाद भी जर्मनी में नाज़ी और हिटलर आईडियोलॉजी तो छोड़िये, नाम भी प्रतिबँधित है। आपको भी ऐसी ही राजनैतिक आत्महत्या करनी है क्या?
चलिये हार के कारण का भी विश्लेषण कर ही लेते हैं।
दरअसल शुरूआत में मिली जीत से हिटलर को अपनी ताकत का गलत अंदाज हो गया था, उसने एक साथ इतने सारे फ्रंट खोल लिये कि उसकी हार सुनिश्चित हो गई। मिलिट्री स्ट्रेटेजी/ सेना की रणनीति में कई फ्रंट एक साथ नहीं खोले जाते। यहाँ पर्सनल ईगो/ व्यक्तिगत अहं का भी कोई रोल नहीं होना चाहिये।
आज बीजेपी भी कुछ कट्टर समर्थकों के बीच अस्तित्व के संकट का सामना कर रही है, जिन्हें ये लग रहा है कि उसने आइडियोलॉजी को ताक पर रख दिया है।
स्वातन्त्रय वीर, हिन्दू संगठक, युग-दृष्टा सावरकर को महात्मा गांधी की मृत्यु के फ़र्ज़ी मुक़दमे में फँसाकर जेल भेजा, फिर सालों उलझा कर रखा, कितने हिन्दू खडे हुये?
उन्होंने हिन्दुओं जैसी जातिवादी, मुर्दा कौम को जगाने की कोशिश की। हिन्दुओं ने कौन सा उन्हे प्रधानमंत्री बना दिया, या चलिये मुख्यमंत्री ही सही, क्यों नही?
एक मणिशंकर अय्यर जैसा टुच्चा आदमी, उनकी पट्टिकाएँ को अंडमान की सेलुलर जेल से उखाड़ फेंक देता है। कांग्रेस उन्हें बेशर्मी से ग़द्दार बोलती है और हम कुछ नही कर पाते।
भारतीय जनसंघ के संस्थापक डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी जिस विचारधारा के लिये शहीद हो गये, लेकिन देश की जनता ने उनके हत्यारों की पार्टी को साठ सालों तक निर्बाध सत्ता सौंप दी। हमारी हिप्पोक्रिसी देखिये, हम बीजेपी से तो प्रश्न करते हैं पर कांग्रेस के लिये कोई सवाल नही!
बाबरी ढांचे को तुड़वाने के इल्ज़ाम में चार सरकार क़ुर्बान कर दीं परन्तु जनता ने ये भूलकर कारसेवकों के हत्यारे और बाबरी मस्जिद के पक्ष वालों को सत्ता सौंप दी।
अटलजी ने तेरह दिन व तेरह महीनों की अल्पकालीन सरकार दी। फिर अटलजी की अल्पमत की सरकार, जिसने पाँच साल बहुत अच्छा परफ़ार्म भी किया परन्तु जनता ने दूसरा मौक़ा ही नही दिया।
आज जब कुछ लोग पूछते हैं कि बीजेपी की आईडियोलॉजी का क्या हुआ? कौन सी वाली सावरकर की, श्यामाप्रसाद की, दीन दयाल की, आडवाणी की, अटल की? किसे आपने ठिकाने नही लगाया है?
अब ये मत कहियेगा कि आपने 2014 में वोट दिया था। वो तो कांग्रेस के बेशर्मी से अल्पसंख्यक तुष्टीकरण और भ्रष्टाचार से ज़रा परेशान हो गये थे तो ज़ायक़ा बदलने के लिये, बीजेपी को वोट कर दिया था, वरना तो हम बाय डिफ़ॉल्ट कांग्रेसी हैं, घूम फिर कर, उसी पर लौट आते हैं।
मोदी को अपनी ताक़त का ग़लत अंदाज़ा नही है और ना ही वो कई मोर्चे एक साथ खोलना चाहते हैं, इसलिये वो सम्हलकर चलना चाहते हैं, वैसे भी सिर्फ 31% ने वोट दिया था, सनद रहे।
इस बार विरोधी कोई गलती नही करेंगे, चालीस चोर एक साथ आ गये हैं। और आप क्या कर रहे हैं? बीजेपी पर 370, और राममंदिर का इल्ज़ाम देकर चालीस चोरों को बैकडोर से लाने का इंतज़ाम कर रहे हैं। 370 नही हटा पाई या राममंदिर नही बना पाई लेकिन खुलेआम इसके पक्ष में खड़ी होने वाली एकमात्र यही पार्टी हैं।
वैसे भी एससीएसटी एक्ट पर सारी पार्टियाँ एकमत हैं बल्कि मोदी ने इसमें मुस्लिम और ईसाई जोड़ दिया है।
जिस वामपंथी+माओवादी+जिहादी+मिशनरी+एनजीओ+ज्यूडीशियरी नेटवर्क को दशकों की मेहनत के बाद खड़ा किया गया है… उसे मोदी एक टर्म में खत्म कर देंगे! अगर आप ऐसा सोचते हैं… तो आप जैसा क्यूट (बेवकूफ) दुनिया मे कोई नहीं। ये लड़ाई 5 साल में खत्म होने वाली नहीं, या तो लंबा खेलने का माद्दा रखें… वरना आज नहीं तो कल आप सरेंडर तो करेंगे ही, जीत विरोधियों की ही होगी।
इतिहास शीघ्र ही अपना निर्णय सुनाएगा।
करोड़ों दलित-वंचित हिन्दुओं को धर्म के खिलाफ करके, हिंदुत्व का कौन सा भला कर रहे हैं आप