इक परदेसी मेरा दिल ले गया
जाते-जाते मीठा-मीठा गम दे गया
फिल्म ‘फागुन’ का ये गाना देखा है कभी? हीरोईन मधुबाला हैं… और हीरो हैं भारतभूषण।
अपने कैरियर की शुरुआत में भारतभूषण हीरो थे। दो-दो फिल्मों में मधुबाला उनकी हीरोईन थीं।
हीरो के रूप में फ्लॉप हुए तो ऐतिहासिक चरित्रों की ओर मुड़े। बैजू-बावरा, जहाँआरा, रानी रुपमती… जमकर चलीं।
गाने भी बहुत लोकप्रिय हुए लेकिन भारतभूषण पर ऐतिहासिक चरित्र निभाने का ऐसा ठप्पा लगा कि तानसेन से तुलसीदास तक और कबीर से लेकर कालिदास तक… सारे रोल ऐसे ही मिलने लगे।
ऐसी फिल्मों की भी एक लिमिट होती है… ऐसी फिल्में बनना बंद हो गईं तो भारतभूषण चरित्र अभिनेता के तौर पर काम ढूँढने लगे।
छोटे मोटे रोल मिलते… उनसे ही रोजी-रोटी चलती रही। हीरो में जैकी श्राफ के पिता का छोटा सा रोल तो याद ही होगा।
नौबत यहाँ तक आ गई कि जिस फिल्मिस्तान स्टुडियो में वो हीरो के तौर पर शूटिंग किया करते थे… उसी फिल्मिस्तान स्टुडियो के गेट पर गार्ड की नौकरी तक उन्होंने की!
दरअसल मैंने ये पोस्ट इसलिये लिखना शुरू की थी कि… आखिर में आकर मैं राज ठाकरे के राजनीतिक करियर की तुलना भारतभूषण से करके एक कॉमिक पंच लाइन के साथ पोस्ट खत्म करता।
लेकिन लिखते-लिखते लगा कि भारतभूषण ने कम से कम पूरी ज़िंदगी मेहनत तो की है अपने परिवार के लिये… करियर चलना ना चलना ऊपर वाले हाथ है इसलिये भारतभूषण को नमन।
आज राज ठाकरे की MNS (महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना) ने काँग्रेस के भारत बंद का समर्थन किया और बंद में भी एमएनएस ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया।
जिन्हें विरासत में पका पकाया राजनीतिक पावर मिलता है… उनकी सही-गलत को समझने की बुद्धि भी खत्म हो जाती है… राहुल हो या अखिलेश, तेजस्वी हो या सिंधिया, उद्धव ठाकरे हो या राज ठाकरे… अपने घमंड में ये जनता की नब्ज़ कभी पकड़ ही नहीं पाए और इन सब में मुझे सबसे ज्यादा दु:ख राज ठाकरे के लिये है!
कभी अपनी कार्यशैली से बालासाहेब ठाकरे के असली उत्तराधिकारी माने जाने वाले राज ठाकरे उत्तर भारतीयों पर हमले के अपने पुराने स्टैंड को जब पिछले चुनाव में खारिज कर रहे थे तो लगा था कि अब शिवसेना को टक्कर मिलेगी, लेकिन आज काँग्रेस का पल्लू पकड़कर राज ठाकरे… ‘क्रांति फेल होने का अनुपम उदाहरण बन चुके हैं।’
बुद्धिजीवियों का चोला ओढ़े शहरी नक्सलियों को तो हम पहचानते ही नहीं थे!