मेरी पिछले कुछ लेखों – ‘सन्नाटा भी बहुत कुछ कहता है’ (भाग-1, भाग-2, भाग-3) – पर कुछ लोगों ने प्रधानमंत्री मोदी की मानसिकता पर प्रश्न उठाया।
उनका समर्थन करने पर मेरी भी ‘मानसिकता’ पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया। ऐसे लोगों को मैं तुरंत ब्लॉक करता हूँ क्योंकि मेरे पास समय का अभाव है।
घर और कार्यालय का काम करने के बाद, कुछ समाचारपत्र और पुस्तकें पढ़ने के बाद समय मिलने पर लिखता हूँ, और उस लेख पर आये हर कमेंट को संज्ञान में लेने का और जहाँ तक संभव हो, जवाब देने का प्रयास करता हूँ।
लेकिन किसी की ‘मानसिकता’ पर प्रश्नचिह्न लगाना कहीं ना कहीं मेरे मन पर लगे घाव को गहरा कर देता है.
आज तक केवल एक बार किसी ने मेरी मानसिकता पर प्रश्नचिह्न लगाया और वह एक अंग्रेज़ था।
हुआ यह कि विदेश में मेरा 6 वर्ष का पुत्र, उस अंग्रेज़ की हमउम्र पुत्री के साथ स्कूल में खेल रहा था और उसकी पुत्री को मामूली सी चोट लग गयी।
शाम को घर लौटने के बाद उसकी बच्ची ने कुछ कहा होगा और उसने टेक्स्ट करके शिकायत की। मैंने वापस टेक्स्ट किया कि बच्चे हैं, खेल-कूद में चोट लग गयी होगी, जाने दीजिये।
तुरंत उसका अभद्र भाषा में जवाब आया जिसमें उसने मेरे बेटे को अपनी बेटी के साथ ना खेलने की चेतावनी दी और कहा कि वह हम भारतीयों की ‘मानसिकता’ को जानता है।
भारत में भी मैंने कई बार देखा है कि अगर हम सामने वाले को अपने से ‘तुच्छ’ समझते है तो तुरंत उसकी मानसिकता पर चोट कर देते हैं।
मेरे बड़े भाई का खुदरा बिज़नेस है, लेकिन उसके नाम के साथ सिंघल शब्द नहीं लगा है। उसका सरनेम ‘कुमार’ है और उसके प्रतिष्ठान का नाम – कुमार XXX – है। ग्राहक कुछ उधारी का माल ले जाते है और जब पैसा लेने की बात आती है तो उसे कई बार जातिसूचक गालियों से सम्मानित किया गया है।
गाँव-देहात और शहर में मैंने छोटी-छोटी घटनाओं, जैसे कि पार्किंग, रिक्शे वाले को पेमेंट, कूड़ा फेंकने, लेबर को पेमेंट करने इत्यादि पर आम आदमी और औरत को जातिसूचक शब्दों का प्रयोग करते देखा है। प्रियंका वाड्रा स्वयं प्रधानमंत्री मोदी के लिए ‘नीच’ शब्द का प्रयोग कर चुकी है।
अब आते है प्रधानमंत्री मोदी की ‘मानसिकता’ पर… 11 जून 2014 को लोकसभा में अपने पहले उद्बोधन में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि “1200 साल की गुलामी की मानसिकता हमें परेशान कर रही है। बहुत बार हमसे थोड़ा ऊँचा व्यक्ति मिले तो, सर ऊँचा करके बात करने की हमारी ताकत नहीं होती है। कभी-कभार चमड़ी का रंग भी हमें प्रभावित कर देता है…”
उन्होंने कहा, “अब विश्व के सामने ताकतवर देश के रूप में प्रस्तुत होने का समय आ गया है। हमें दुनिया के सामने सर ऊँचा कर, आँख में आँख मिला कर, सीना तान कर, भारत के सवा सौ करोड़ नागरिकों के सामर्थ्य को प्रकट करने की ताकत रखनी चाहिए और उसको एक एजेंडा के रूप में आगे बढ़ाना चाहिए। भारत का गौरव और गरिमा इसके कारण बढ़ सकते हैं।”
फिर उन्होंने पूछा कि “इस देश पर सबसे पहला अधिकार किसका है? सरकार किसके लिए होनी चाहिए? क्या सरकार सिर्फ पढ़े-लिखे लोगों के लिए हो? क्या सरकार सिर्फ इने-गिने लोगों के लाभ के लिए हो?”
प्रधानमंत्री ने कहा, “मेरा कहना है कि सरकार गरीबों के लिए होनी चाहिए। अमीर को अपने बच्चों को पढ़ाना है तो वह दुनिया का कोई भी टीचर हायर कर सकता है। अमीर के घर में कोई बीमार हो गया तो सैकड़ों डॉक्टर आ कर खड़े हो सकते हैं, लेकिन गरीब कहाँ जाएगा?… शासन की सारी व्यवस्थायें गरीब को सशक्त बनाने के लिए काम आनी चाहिए और सारी व्यवस्थाओं का अंतिम नतीजा उस आखिरी छोर पर बैठे हुए इंसान के लिए काम में आए उस दिशा में प्रयास होगा, तब जाकर उसका कल्याण हम कर पाएंगे।”
अंत में, प्रधानमंत्री ने कहा कि “लोकतंत्र में आलोचना अच्छाई के लिए होती है और होनी भी चाहिए। सिर्फ आरोप बुरे होते हैं आलोचना कभी बुरी नहीं होती है, आलोचना तो ताकत देती है।”
क्या इस समय प्रधानमंत्री से बढ़कर कोई राष्ट्रवादी नेता मिल सकता है? वह नेपाल जाते हैं तो पशुपतिनाथ मंदिर, मुक्तिनाथ मंदिर में माथा टेकते हैं। काशी विश्वनाथ में भगवान शिव की अर्चना करते हैं। गंगा घाट पर आरती उतारते हैं। विदेशों में भारतीय समुदाय से उनकी संस्कृति की बात करते हैं। हमेशा भारत का मान रखा। सिर्फ और सिर्फ सनातन धर्म की नीतियों के अनुसार अपनी बात आगे बढ़ाते हैं।
आख़िरकार प्रधानमंत्री मोदी राजनीतिक खतरा मोल लेकर कैशलेस इकॉनमी, GST, आधार, जन-धन अकाउंट, दिवालिया कानून इत्यादि क्यों लेकर आये हैं? क्यों उन्होंने विश्व के प्रमुख देशों, जिसमें खाड़ी के देश, इज़राइल, चीन, जापान, इत्यादि शामिल हैं, की यात्रा की, उनके राष्ट्र प्रमुखों को भारत बुलाया। क्यों संयुक्त राष्ट्र महासभा से अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस का प्रस्ताव पास करवाया? क्या वे केवल योग को बढावा देना देना चाहते थे?
चार वर्ष के बाद मैं उनकी अलग-अलग सी दिखने वाली कार्रवाईयों और उनकी ‘मानसिकता’ में एक पैटर्न देख रहा हूँ।
प्रथम, प्रधानमंत्री मोदी भारत की अर्थव्यवस्था को आज के डिजिटल युग का मुकाबला करने के लिए तैयार कर रहे हैं। द्वितीय, वे भारत के अभिजात्य वर्ग का रचनात्मक विनाश कर रहे हैं। क्योंकि बिना पुरानी व्यवस्था को बदले, नए समाज, नयी व्यवस्था, नए उद्यम और रोज़गार का सृजन नहीं हो सकता। तृतीय, वे भारत को अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में एक सशक्त और समृद्ध राष्ट्र के रूप में स्थापित करना चाहते हैं।
लेकिन यह सब करने के लिए राष्ट्र के भीतर बैठी भारत तोड़क शक्तियों को हराना होगा, जो प्रधानमंत्री मोदी को जातिवादी समीकरणों से हराने का प्रयास कर रही हैं, क्योंकि ‘सांप्रदायिक शक्तियां’ ऑलरेडी विपक्ष के साथ है।