RSS : चैन की ज़िंदगी चाहिए तो बचना इन खाकी निक्करवालों से

यदि आप एक भारतीय हैं, और चैन की ज़िन्दगी जीना चाहते हैं तो बाकी कुछ किजीये ना किजीये मगर आपको राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से ज़रूर और ज़रूर बचना चाहिए।

खाकी निक्कर पहनकर बेधड़क, बेहिचक आपके घर में घुसे चले आते सामान्य से दिखने वाले व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह को आपने शिष्टाचारवश या अपनी बौद्धिक अहंकार में आपने उन्हें अपने से कमतर समझ लिया और एक बार घर में आने दिया, तो समझ लीजिये आपने ‘मुसीबत मोल ले ली है।

सॉरी अभी तो मुसीबत मुफ्त में पाल ली है, मोल तो आप भविष्य में चुकायेंगे, अपना चैन गँवाकर….

इनकी संगत में रहते रहते, धीरे धीरे आपको अपना मुहल्ला / नगर / प्रदेश ही नहीं पूरा देश ही अपना परिवार लगने लगेगा… फिर चाहे केरल में बाढ़ आये या लातूर में भूकंप… आप बेचैन हो जाओगे।

और तो और आपके ही शहर में अतिवर्षा हो जाये तो दूसरे दिन सुबह शाखा से पहले ही सूचना आ जायेगी कि नन्द बाग में हनुमान मंदिर के पास वाली धर्मशाला में निचली बस्तियों में जो डूब में आ गये हैं उनके लिये राहत शिविर लगाने हैं, व्यवस्था के लिये जाना है, आप ना नहीं कहेंगे… कहना ही नहीं चाहेंगे।

खाकी निक्कर वालों ने इतने दिनों में आपके मन की स्लेट पर जो भी इबारत लिखी थी उसमें सारे ‘स्व’ और ‘स्वयं’ सिलेक्ट कर उन्हें ऑटो करेक्ट से ‘वयं’ (हम) कर दिया है और आपको पता भी नहीं चला…

अब व्यवस्था के लिए जाने से पहले आप दो काम करते हैं एक तो अपनी फैक्ट्री/ऑफिस के मालिक को फोन पर बता देते हैं (पूछते नहीं है) कि आज नहीं आ पाउँगा और दूसरा पत्नी को बता देते हैं कि बच्चे स्कूल चले जाये तो 4-5 घंटे के लिये तुम और तुम्हारी भीसी मंडल की कुछ सहेलियां भी आ जाओ ताकि भोजन बनवाने में मदद हो जाये…

आप समझ ही नहीं पाते हो कि आपने एक तो बॉस को भी अपने गाँठ में ले लिया, दूसरा पत्नी को भी गटनायक बना कर, व्यवस्था उनके भी जिम्मे कर दी।

आज का दिन आपने ना केवल छुट्टी ली है बल्कि अपनी जेब के वो पैसे भी खर्च कर दिये हैं वर्षा पीड़ितों के लिये, जिससे आप बेटी के लिए डॉल लाने का प्लान बनाये बैठे थे…

अब बेटी ज़िद करेगी तो उसे क्या कहेंगे ये तो तात्कालिक परिस्थिति में आपके लिये सोचने का भी विषय नहीं है… बस आपकी बेचैनी शुरू होकर बढ़ने लगी है।

जुलाई महीने में ही गुरुदक्षिणा भी करनी है… “आय का 10 प्रतिशत”…

आपके मस्तक में इस तरह भर गया है कि खुद आपको यह विश्वास नहीं होता कि यह एक पराया विचार था जिसे अपनाकर आप इतना अपना बना चुके हैं कि यह आपको आपका ही मूल विचार लगता है जिसे साकार करने के लिये आप जी जान लगाकर अपनी सारी स्किल्स का भी प्रयोग करते हैं, बचत / मितव्ययता (इसे बढ़ाकर आप कंजूसी में बदल चुके हैं … आपको खुद को खबर नहीं हुई), ओवर टाइम आदि आदि के अलावा दीवाली पर होने वाली बड़ी खरीदी की प्लानिंग को आधी करने की आपने पूरी प्लानिंग भी कर ली है।

इस प्रकार आप देश, समाज में होने वाली हर घटना आपको अधिकाधिक बेचैन करती जाती है।
आप खुद को संघ कार्य में अधिकाधिक खपाते जाते हैं। साथ ही साथ आपने रिटायर्ड पिता को सेवाभारती, भजनों में रस लेने वाली माँ को संस्कार भारती, पत्नी को परिवार प्रबोधन से लेकर सेविका समिति तक का “विचार बदल काढ़ा’ पिलाने से पीछे नहीं रहते।

धीरे धीरे आप ही नहीं, आपका खानदान ख़ुशी खुशी ‘बेखबर’ से ‘बेचैन’ हो जाता है …और तो और मार्केटिंग के सारे हथकंडे अपनाकर आप दिन रात यही बेचैनी अपने जान पहचान वालों, रिश्तेदारों और व्यावसायिक परिचितों में भी बांटने लगते हैं.. एकदम नेटवर्क मार्केटिंग के तर्ज़ पर।

अल सुबह 6-00 से आधी रात 12-00 बजे तक एक ही मिशन ….
“बे-चैनी बांटो”
हर वंचित का दर्द आपको अपना लगने लगता है…
अन्याय के विरुद्ध हर लड़ाई के सिपाही आप हो जाते हैं,

हर बिगड़ी व्यवस्था को रिपेयर करने का ठेका आप सबसे कम कीमत लगाकर टेंडर पास कराकर खुद के सर ले लेते हैं और जुटे रहते हैं। लोगों ने पैसे जुटाकर, खुद के लिये समय घटाकर बेगार में खपने के लिए… आपका चैन पूरी तरह खो जाता है बस एक अदनी से चीज मिलती है आपको…

वो है ‘मन का सुख’…

अब यदि आप भी ऐसे ही मूर्ख हैं जो चैन की ज़िन्दगी से ऊपर रखते हैं सुख की ज़िंदगी को…
तब तो कोई बात नहीं। वर्ना खाकी नीकर से सावधान रहिये और अपनी सुख की ज़िन्दगी बचाइये।

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