मीडिया के अनुसार नोटबंदी विफल हुई क्योंकि 99.3% नोट वापस आ गये। केवल 0.07% ही नहीं आये।
लगभग 14 लाख करोड़ डीमॉनिटाइज़ हुए नोटों का 0.07% अर्थात 980 करोड़ रुपया काला धन रहा होगा।
इतने बड़े प्रयास से केवल इतना ही काला धन नष्ट हो तो नोटबंदी ज़रूर फ़ेल कही जा सकती थी!
लेकिन क्या वास्तव में बात केवल इतनी ही है?
14 लाख करोड़ तो उन नोटों का हिसाब किताब हैं जो रिज़र्व बैंक (RBI) ने छापे थे और चलन में लाया था।
उन नोटों का हिसाब किताब किसके पास है जो जाली थे, अर्थव्यवस्था में चलन में थे, बिना उत्पादक गतिविधि के चलन में आने से महँगाई के कारक थे, क्या वो नोटबंदी से नष्ट नहीं हुए?
ये जाली नोट कितने थे, कौन ठीक ठीक बता सकता है? सिवाय क़यास लगाने के और चंद assumption आधारित आधे अधूरे सांख्यिकी मॉडल से उनकी गणना करने के, किसको पता है कि वास्तव में जाली नोट थे कितने? नोटबंदी के बाद से महँगाई सीमित है, स्थिर है, ये क्या प्रमाणित कर रहा है?
साथ ही पूरा रक़म वापस आ जाने का अर्थ केवल ये तो नहीं कि हर व्यक्ति ने अपने दो नम्बर के कमाई को खाते में जमा करा के सीधे सीधे सफ़ेद कर लिया। बल्कि इसका अर्थ ये हुआ कि :
1. लाखों लोगों ने अपनी आय सही सही बताई, नोट सफ़ेद किया और अब आयकर भर रहे हैं। आयकर रिटर्न में 25% बढ़ोत्तरी व आयकर में 41% इज़ाफ़ा देखा गया!
2. उन्ही दिनों उधार व बक़ाया राशि का भुगतान बड़ी तेज़ी से हुआ। बुनकरों का, छोटे छोटे व्यापारियों का पूरा उधार बड़े व्यापारियों ने चुकता किया।
3. इन नोटों को जनधन खातों अर्थात ग़रीबों के माध्यम से जमा कराया गया, जिसके बदले उन्हें कुछ लाभ दिया गया होगा। जिनका मारा था, उनका कुछ उन्हें वापस किया या बहुत से पूरा ही लेके बैठ गए होंगे!
सरकारी महकमे के बस का नहीं कि 25 करोड़ जनधन खातों की जाँच करे, न ये कभी होगा, लेकिन इतना तय है कि जनधन खातों में जमा की गयी राशि ने आर्थिक समानता की दिशा में काम किया!
4. उन्ही दिनों फ़र्ज़ी शेल कम्पनियों पर भी ताले लगे जिनका काम उत्पादन नहीं बल्कि दो नम्बर कमाई को एक नम्बर करना था।
कुल मिलाकर नोटबंदी ने न केवल अगणित जाली नोटों को नष्ट किया है, बल्कि धन को आर्थिक समानता की दिशा में पुनर्वितरित किया है, टैक्स कलेक्शन बढ़ाया!
पूरे अर्थतंत्र में महँगाई अकेला ऐसा फ़ैक्टर है जो पूरे अर्थतंत्र के स्वास्थ्य को परिभाषित कर सकता है, यदि वो नोटबंदी के बाद से सीमित व स्थिर है तो बचता क्या है कहने को!
संक्षेप में नोटबंदी एक व्रत के समान है जो अर्थव्यवस्था में आए प्रदूषण व विसंगतियों को नष्ट करता है! नियम से प्रत्येक दस वर्ष बाद ये व्रत होते रहना चाहिए!
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