प्रतिभाएं विपरीत परिस्थितियों में भी जीत कर जब अपना सर्वश्रेष्ठ देती हैं तभी इतिहास रचा जाता है।
एक रिक्शा चलाने वाले की बेटी ने ज़िंदगी की अनेक बाधाओं को पार कर, सात समन्दर पार, जब सात-सात स्पर्धा वाले हेप्टाथलन में स्वर्ण पदक जीता, तो यह सात स्वर्ण के बराबर हुआ।
यह स्वप्न नहीं हकीकत है। भारत की स्वप्ना बर्मन ने आज इंडोनेशिया के जकार्ता में खेले जा रहे 18वें एशियाई खेलों में महिला हेप्टाथलन का स्वर्ण पदक जीता। हेप्टाथलन में गोल्ड मेडल जीतने वाली वह पहली भारतीय बनीं।
यह खेल कई मामलों में विशिष्ट है। यह कोई अकेला एथलेटिक इवेंट नहीं, बल्कि सात-सात स्पर्धाओं में अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करना पड़ता है।
एक महिला एथलीट को दो दिन में 100 मीटर दौड़, लम्बी कूद, भाला-फेंक, 200 मीटर दौड़, ऊंची कूद, 800 मीटर दौड़ और गोला-फेंक में भाग लेना पड़ता है।
और फिर इन सब में प्राप्त अंक को मिलाकर जो कुल-अंक प्राप्त होते हैं उसके आधार पर प्रथम, द्वितीय और तृतीय विजेता घोषित किये जाते हैं। अर्थात ऑल-राउंडर एथलीट।
सुना है कि दांत दर्द के बावजूद स्वप्ना बर्मन ने यह प्रदर्शन किया। अभाव से स्वभाव बनता है। जीवन भर संघर्ष करने वाले के लिए ही यह कर पाना संभव है।
असल में अभाव और अवरोध के बाद भी जो शिखर पर पहुंचे उसे ही गुदड़ी का लाल कहा जाता है। सोना को जितना तपाया जाए उतना ही वो निखर कर कुंदन बनता है। और कभी कभी यह सोना भी किसी विशेष गले का हार बनकर चमक उठता है।
स्वप्ना बर्मन अब कोई फिल्मी परदे की नकली नायिका नहीं बल्कि ज़मीन की वो स्वर्णपरी है जो भारत के आसमान पर ध्रुव तारे की तरह आने वाली पीढ़ियों का पथप्रदर्शन करेंगी। समाज को ऐसी ही नायकों की आवश्यकता है।
यह घटना सामान्य नहीं होती। इसके पीछे कोई दैवीय शक्ति होती है। स्वप्ना बर्मन का परिवार माता काली का उपासक है। शक्ति की आराधना करने वाले की राह में कोई बाधा नहीं बन सकता। अभी स्वप्ना बर्मन को और भी आगे जाना है, माँ उनकी सभी मनोकामना पूरी करेंगी। जय हो।