अब हिन्दुओं के अंतिम संस्कार पर गिल्ट इन्डक्शन का खेल हो रहा है।
आज की एक ख़बर के अनुसार दिल्ली में लगभग 80,000 हिन्दू हर साल मरते हैं, जिन्हें जलाने में जितनी लकड़ी लगती है, वो एक एनजीओ के अनुसार, प्रति व्यक्ति 4-500 किलो है।
यही एनजीओ बताती है कि भारत में एक पेड़ लगभग सौ किलो लकड़ी देता है। फिर गणित लगाकर ये बताते हैं कि दिल्ली में लगभग चार लाख पेड़ हर साल काटे जाते हैं इसके लिए।
पहले तो ये गणित गलत है कि एक पेड़ में सौ किलो ही लकड़ी होती है। चार लाख की संख्या थोड़ी भयावह लगती है, तो ये गणित पता नहीं किस आधार पर इस्तेमाल कर दिया जाता है। लकड़ी की इतनी ही चिंता है तो चिता ही क्यों, कॉफ़िन की लकड़ी का भी हिसाब जोड़ लेते।
आगे रिपोर्ट ये भी ज्ञान दे देती है कि जलाने पर कितनी मात्रा में कार्बन मोनोऑक्साइड निकलता है। हालाँकि, रिपोर्ट ये नहीं बताती कि दिल्ली की हवाओं में लाश के जलाने से होने वाले प्रदूषण का प्रतिशत दशमलव के बाद कितने शून्य के बाद आता है। क्योंकि जॉर्जिया टेक, आईआईटी कानपुर, यूईइन्फो, और सीपीसीबी के द्वारा की गई स्टडीज़ में लाशों के जलाने से होने वाले प्रदूषण की चर्चा भी नहीं है।
होली, दिवाली, गणपति और दशहरा आदि त्योहार पर, जो प्रदूषण फैलाते भी हैं तो मात्र एक दिन, लगातार पर्यावरण विरोधी मानकर लम्बे लेख लिखे जाते हैं ताकि हिन्दू समाज गिल्ट फ़ील करे। जबकि सबसे ज़्यादा खुद को सुधारने का काम भी यही लोग करते रहे हैं, चाहे वो त्योहारों को मनाने की बात हो, या फिर लाशों को जलाने के तरीके की।
ऐसी घटिया रिपोर्ट बनाने वाले पहले घर का ए.सी., कार का पेट्रोल, घर का फ्रिज आदि बंद करें। फिर वहाँ काम करना बंद करें जहाँ लगातार ए.सी. चलता है। बहुत सारे पेड़ बच जाएँगे, और ओज़ोन लेयर भी ठीक रहेगी। आप शुरुआत कीजिए, धरती बच जाएगी।
हिन्दुओं को पैदा होना बंद कर देना चाहिए। न रहेगा हिन्दू, न जलेगी लाश। हैशटैग सेव द ट्रीज़।