हर वह हिन्दू महान (?) है जो अपनी अक्ल को घुटनों में डाल कर, केरल की विभीषिका को गौहत्या या फिर उसके इस्लामीकरण या फिर ईसाइयत से जोड़ कर, अपने हिन्दू मन की बात, सोशल मीडिया पर लिखने में व्यस्त है।
मुझे तो घृणा होती है ऐसे लोगों से। ये या तो आत्महत्या करने वाले मूर्ख हैं या फिर हिंदुत्व से पूर्व जन्म का कोई बदला लेने वाले हिन्दू धर्म मे पैदा होने वाले लोग हैं।
ऐसे लोग यदि यह ही समझते हैं कि केरल में जो हुआ वह इन्ही कारणों से हुआ है तो फिर प्रश्न उठता है कि 2013 में केदारनाथ में क्यों विभीषिका आयी थी? वहां किसने ‘गाय’ काटी थी? वहां, कौन ब्राह्मणों और क्षत्रियों का समूह, मुसलमान या ईसाई बन गया था?
मेरी दृष्टि में यह बहुत ही निकृष्ट सोच है।
सच तो यह है कि केदारनाथ की विभीषिका का एक मात्र उत्तरदायित्व सिर्फ और सिर्फ हिन्दुओं पर है। वहां पर जो हुआ था उसके हम लोग ही जिम्मेदार थे।
मैं, वहां 1969 और 1983 में पहले जा चुका हूं। और उसके बाद 2008 में भी गया हूँ। इस 1969 से लेकर 2008 तक मे वहां के वातावरण और हालात में ज़मीन आसमान का अंतर आ चुका था।
पहले जब जाते थे तो वहाँ पंडे थे, उनकी ही धर्मशाला में रुक जाते थे, लेकिन जब आखिरी बार गया तो धर्मशाला नहीं, नवसंस्कृति में होटल बने थे। जहां पहले धर्म और आध्यात्मिकता का वातावरण था, वहां पिकनिक और पर्यटन का वातावरण था।
मैं उस वक्त इस बात को नहीं समझ पाया था लेकिन यह पूर्णतः सत्य था कि सीमेंट के तीन तीन मंज़िला, सीधे खड़े मकानों, होटलों ने नदी के मुहाने तक अपने को बसा लिया था। यह किसी मुसलमान या ईसाई ने नहीं किया था। यह 100% हिन्दुओं का ही किया हुआ था।
इसका परिणाम यह हुआ कि जब प्रकृति अपने बलात्कार से आहत हुई, तो उसने रौद्र रूप धारण किया और सबको विभीषिका में समेट ले गयी। उसने यह नहीं पूछा या देखा कि तुम हिन्दू हो या कोई और? उसके लिये वे सब सिर्फ उसके बलात्कारियों के बराती थे।
बस यही केरल में हुआ है। केरल की विभीषका कोई अचानक नहीं आई है, इसके आने की चेतावनी पहले दी जा चुकी थी।
कुछ वर्ष पहले केरल की सरकार ने प्रसिद्ध पर्यावरण वैज्ञानिक प्रोफेसर माधव गाडगिल को वेस्टर्न घाट में, जंगलों के कटने, अवैधानिक खनन, नदी के तट से बालू का खनन और वन क्षेत्र पर मानवों का अवैध रूप से अतिक्रमण से, केरल पर पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययन करने के लिये बुलाया था।
उन्होंने अपनी 2000 पन्नो की रिपोर्ट दी थी और सरकार को चेतावनी दी थी कि यदि इसको युद्ध स्तर पर नहीं रोका गया तो भविष्य में केरल को हर पर्वतीय क्षेत्र में भयंकर भूस्खलन का सामना करना पड़ेगा और नदियां में भयंकर बाढ़ आएगी क्योंकि नदी के तल में बालू नही है और नदी के अपने क्षेत्र में मानवों ने अवैध निर्माण कर रक्खा है।
इस रिपोर्ट के आने के बाद तो पूरे केरल में प्रोफेसर गाडगिल के विरुद्ध मुहिम चली, पर्वतीय क्षेत्र के नागरिकों ने बाकायदा जुलूस निकाले, लोगों ने उनको न सिर्फ अपमानित किया बल्कि उनके विरुद्ध आरोपों की बाढ़ लगा दी थी। इस सबसे आहत, प्रोफेसर गाडगिल ने, केरल में अपना काम छोड़ दिया और विलुप्त हो गये।
आज केरल, प्रोफेसर गाडगिल की चेतावनी को अनसुना करने का परिणाम भुगत रहा है।
यहाँ पर भी जो लोगों ने प्रकृति के साथ बलात्कार किया है, उसका ही दण्ड भोगा है। यह मूर्खता केवल हिन्दू ही कर सकता है जो केदारनाथ में अपने किये पापों को भूल कर, केरल में गाय, मुसलमान और ईसाई को ढूंढ रहा है।
यह हमारा दोष है, यह हम मानवों का दोष है। अब यह सब क्योंकि भारत में हुआ है तो यह सब हम भारतीयों का दोष है। इसमें राजनीति या धर्म, दोनों ही नहीं आते हैं, यह विशुद्ध रूप से हमारे द्वारा प्रकृति के साथ किये जा रहे कुकर्म का परिणाम है।