मेरे पास एक मरीज आता है खाँसी, सीने में दर्द और बुखार लेकर… उसे कहता हूँ कि निमोनिया है, फेफड़े में इन्फेक्शन है।
दूसरा आता है पेशाब में जलन, बुखार लेकर। उसे कहता हूँ कि यूटीआई, पेशाब में इन्फेक्शन है। तीसरा आता है बेहोशी में, उल्टी, सरदर्द, गर्दन में दर्द और बुखार लेकर। उसे कहता हूँ, मेनिंगो-इंसेफलाईटिस, मस्तिष्क में इन्फेक्शन है।
कोई उल्टी और दस्त लेकर आता है, उसे गैस्ट्रोएन्टेराइटिस यानि आँतों का इन्फेक्शन बताता हूँ। यानि ले दे कर सबको एक ही बात कहता हूँ कि इन्फेक्शन है।
जनरल मेडिसिन का बहुत बड़ा भाग इन्फेक्शन में ही निकल जाता है। और बहुत सी बीमारियाँ होती हैं… डायबिटीज़ हो या कैंसर… उनसे भी इन्फेक्शन किसी ना किसी तरह कॉम्प्लिकेशन बन के जुड़ा होता ही है।
ये सारे इन्फेक्शन अलग अलग होते हैं। सैकड़ों किस्म के बैक्टीरिया होते हैं। पर शरीर पर मूल प्रभाव एक तरीके से होता है।
मुझसे किसी ने कहा, मैं हर बात में वामपंथी एंगल ढूँढता हूँ। क्या करूँ, ट्रेनिंग ही यही है। जब भी किसी को बुखार हो तो इन्फेक्शन का सोचना ही होता है।
अगर समाज में संघर्ष, तनाव, कड़वाहट और नकारात्मकता दिखाई दे तो वामपंथी एंगल होगा ही होगा। जैसे कल्चर टेस्ट में अलग अलग किस्म के बैक्टीरिया का ग्रोथ दिखाई देता है वैसे वामपंथ के अलग अलग रूप हर किस्म के सामाजिक संघर्ष में दिखाई पड़ते ही हैं।
हाँ; मूल समस्या कहीं और से शुरू हो सकती है। अशिक्षा हो, गरीबी हो या जातिवादी विभाजन।
जैसे एक खरोंच आ जाये, कट या जल जाए तो वह खुद धीरे धीरे ठीक हो जाएगा। पर अगर उसमें इन्फेक्शन हो जाये तो जब तक इन्फेक्शन का इलाज ना करो वह जला कटा ठीक नहीं होगा। एक छोटी सी फुन्सी भी बढ़ कर फोड़ा, फोड़ा बढ़कर गैंग्रीन हो जाएगा।
हमारे समाज में ऐसे अवसर आते रहे हैं जब हमने अपनी समस्याओं और कमियों को दूर किया है। पर जबसे उसमें वामपंथ का इन्फेक्शन लग गया है, कोई समस्या दूर ही नहीं होती, बढ़ती जा रही है। 70 सालों के सुधारों और सामाजिक बदलावों के बावजूद जातिगत वैमनस्य बढ़ता जा रहा है। बीमारी और गहरी होती जा रही है।
कैसे ना देखूँ वामपंथी एंगल… अगर खून और मवाद से बजबजाता घाव हो तो उसमें बीमारी के कीटाणु होंगे ही होंगे। वहाँ पहला चीरा किसने मारा, पहली चोट कैसे लगी थी यह तो पुरानी बात है।
आज कौन है जो लगातार उन घावों में खोंचा मार मार के उसे और गहरा कर रहा है? उसपर मिट्टी और गोबर डाल के उसे और इन्फेक्टेड बना रहा है और कह रहा है कि ये प्राकृतिक चिकित्सा के प्रयोग हैं?
समाज की हर छोटी बड़ी कमजोरी में पनपने वाले कीटाणु हैं वामपंथी, हर घाव में पनप रहे कीड़े हैं। इन्हें पहले मारिये, हर घाव भर जाएगा।
विषैला वामपंथ और फेमिनिज़्म : हर बलात्कार उनके लिए एक मार्केटिंग ऑपर्च्युनिटी