कुछ सौ वर्षो की गुलामी के दौरान विदेशियों ने भारत की आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक व्यवस्था को विकृत कर दिया।
स्वतंत्रता के बाद भारत के अभिजात्य वर्ग ने इस भ्रष्ट व्यवस्था को बनाये रखा और उस व्यवस्था के द्वारा आम भारतीयों का शोषण करके अपने परिवार और खानदान को राजनैतिक और आर्थिक सत्ता के शीर्ष पर बनाए रखा।
कुछ उदाहरण देना चाहूंगा अंग्रेज़ों ने भारत में औद्योगिक क्रांति नहीं आने दी। उनके पहले के शासकों ने अलग धर्म के अनुनायियों पर टैक्स लगा कर, उनके मंदिरों को तोड़कर समाज में धार्मिक असहिष्णुता फैलाई।
जब काँग्रेसी सत्ता में आये तो उन्होंने हमारी आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक संस्थाओं को extractive (यानि कि, शोषण करने वाली) बना दिया। हमारी संस्थाएं – जैसे कि, सरकार, उद्योग, ब्यूरोक्रेसी, विधानसभाएं, NGOs इत्यादि पर elites – अभिजात्य वर्ग – ने कब्ज़ा कर लिया।
आजादी के बाद के 70 सालों में हमारे यहां एक ऐसा सिस्टम बना जिसमें गरीब को बहुत छोटी-छोटी चीज़ों के लिए संघर्ष करना पड़ रहा था।
उस गरीब को बैंक अकाउंट खुलवाना है, तो सिस्टम आड़े आ जाता था, उसे गैस कनेक्शन चाहिए, तो दस जगह चक्कर लगाना पड़ता था। अपनी ही पेंशन पाने के लिए, स्कॉलरशिप पाने के लिए यहां-वहां कमीशन देना होता था। कोई भी नौजवान अपने दम पर जैसे ही कुछ करना चाहता है, उसके सामने पहला सवाल यही होता है कि पैसे कहां से आएंगे।
देश में उच्च शिक्षा पर कण्ट्रोल रखा। गिनती के गिने-चुने आईआईटी, आईआईएम और एक AIIMS बना दिया। एक तरह से जनता को लॉलीपॉप पकड़ा दिया कि देखो यह तुम्हारे लिए बना है लेकिन इन में एडमिशन कुछ गिने-चुने परिवार के बच्चों को ही मिल पाता था।
असली खेल समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता के नारे के पीछे हो गया। सारी अर्थव्यवस्था, राजनीतिक, सामाजिक और न्याय व्यवस्था पर नेहरू के वंशजों और उनके द्वारा पोषित अभिजात्य वर्ग ने कब्जा कर लिया। अपनी समृद्धि को इन्होंने विकास और सम्पन्नता फैलाकर नहीं किया, बल्कि जनता के पैसे को धोखे और भ्रष्टाचार से अपनी ओर लूट कर किया।
90% नौकरी अनौपचारिक अर्थव्यवस्था में थी यानी कि रोज़गार के बदले ना तो स्वास्थ्य इंश्योरेंस, ना ही पेंशन और ना ही कोई बहीखाता। जब चाहे आप को नौकरी से निकाल दिया जाए।
बैंको से लोन अभिजात्य वर्ग और उनके मित्रों को दिया जाता था। खुलेआम लूट मची हुई थी। जातिवाद को बढ़ावा दिया, एक जाति को दूसरे के विरूद्ध खड़ा कर दिया।
न्याय प्रणाली के बारे में कुछ लिखूंगा नहीं, लेकिन स्वतंत्रता के बाद सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के जज केवल 250 परिवारों से आये हैं।
भारत की अधिकांश जनसंख्या बैंक में अकाउंट नहीं खोल पाई जिससे उनका आर्थिक सशक्तिकरण नहीं हो पाया। देश की जनता को जानबूझकर गरीब रखा।
अधिकांश भारतीय, शौच के लिए सड़क, रेल की पटरी या किसी खेत में जाते थे, जिसके कारण उनमें आत्मसम्मान की कमी रहती थी। आप एक बार सोचिये, खुले में शौच करते हुए किसी अनजान से आप क्यों मुंह छुपाते थे?
इन शासकों ने देश में यात्रा और संचार के साधन विकसित ही नहीं होने दिए जिससे जनता में विचारों का आदान प्रदान न हो सके और नए विचारों के संपर्क में आकर सत्ता को चुनौती न दे सकें.
इससे निपटने के लिए प्रधानमंत्री मोदी भारत की भ्रष्ट संरचना को धीरे-धीरे बदल रहे हैं, उसका रचनात्मक विनाश कर रहे है।
उन्होंने डिजिटल इकॉनमी, कैशलेस इकॉनमी, सभी भारतीयों के पास बैंक अकाउंट, मुद्रा लोन, आधार कार्ड, उद्योगपतियों द्वारा लोन चुकाने के लिए कानून, और GST से आर्थिक संरचना में तो आमूल चूल परिवर्तन कर दिया है।
जाति, प्रश्रय और परिवारवाद पर आधारित राजनैतिक संरचना को वह बूथ लेवल तक के भाजपा कार्यकर्त्ता, गठबंधन, सोशल मीडिया, और संसद में दांव-पेंच, और अपनी उपलब्धियों और अपने अति साधारण बैकग्राउंड से नष्ट कर रहे हैं।
अब बचती है मध्ययुगीन क्रूर शासकों, अंग्रेज़ों और काँग्रेसियों द्वारा बिछाई गयी जाति, धर्म और स्त्री-पुरुष भेदभाव पर आधारित सामाजिक संरचना को नष्ट करने की बात।
इस संरचना को ध्वस्त करना सबसे कठिन है क्योंकि हम सभी व्यक्ति समाज बनाते हैं, ना कि कोई इमारत या कानून जिसे आप रातों-रात तोड़ दें या मिटा दें।
मेरा यह मानना है कि आज के डिजिटल युग में जातिगत भेदभाव, सामान्य और आरक्षित वर्ग में अंतर समाप्त हो जायेगा. क्योंकि हर जाति, सवर्ण और आरक्षित वर्ग, सभी अपने अस्तित्व की निरर्थकता से सामना करेंगे।
क्योंकि प्राइवेट सेक्टर सरकारी तंत्र से कई गुना बड़ा और प्रभावी हो जायेगा। अगले 10 वर्षो में जिसके पास ज्ञान होगा, स्किल होगी, वही राज करेगा, ना कि कोई सरकारी नौकरी वाला। और जब समाज में कुशल लोगों का योगदान बढ़ेगा, उनकी भागीदारी बढ़ेगी, तो सामाजिक भेदभाव स्वतः कम हो जाएगा।
इसलिए प्रधानमंत्री मोदी डिजिटल इंडिया, मेक इन इंडिया और स्किल्ड इंडिया पर ज़ोर दे रहे हैं। क्योकि ये योजनाएं ना केवल रोज़गार प्रदान करेंगी, बल्कि भारत में सामाजिक समरसता का रास्ता साफ़ करेंगी।
आप प्रधानमंत्री मोदी के विज़न को समझने का प्रयास करिये और उनपर भरोसा बनाये रखिये।
अगर गरीब, किसान, दलित, पिछड़े सशक्त हो गए तो बंद हो जाएंगी ‘उनकी’ दुकानें