डिप्रेशन वो बला है जो जब आपको जकड़ता है तो परिस्थितियाँ या आपके करीबी वजह बनते हैं, परन्तु आप इस जकड़न से मुक्त होना चाहें तो सिर्फ आपकी will power (इच्छाशक्ति) आपको इससे बहार निकाल सकती है, ना तो कोई मोटिवेशनल स्पीच, ना सत्संग, ना बदली परिस्थितियां काम आती हैं।
आपको दूसरों के प्यार, उनके सहारे उनकी आपके प्रति व्यवहार पर अगर निर्भर रहेंगे तो डिप्रेशन में डूबने और उबरने के अंतहीन सफ़र में गोते लगाते रहेंगे। फर्क पड़ेगा तो सिर्फ आपको, दुनिया आपके लिए रुकने वाली नहीं।
ये उन दिनों की बात है जब लड़कियों के लिए साइंस साइड से पढ़ना एक साहसिक बात माना जाता था और अब वो वक्त आ चुका था। यानि मैं कक्षा 9 में दाखिला लेने वाली थी, जब मुझे निर्णय लेना था कि साइंस के साथ आगे की शिक्षा ज़ारी रखनी है या आर्ट्स के।
पापा चाहते थे मैं आर्ट्स लूँ और मेरी इच्छा थी साइंस की। विचार विमर्श के बाद फाइनल हुआ या यूँ कहें मैंने फाइनल करवाया कि साइंस ही लेना है। अब आगे एक और विकट समस्या मुँह बाए खड़ी थी किसको तैयार करूँ अपने साथ साइंस लेने के लिए?
ज़्यादा विकल्प नहीं था मेरे पास, सिर्फ एक ही सहेली थी मेरी, जिसको मैं हक़ से और ज़बरदस्ती तैयार कर सकती थी और वो पढ़ाई में अच्छी भी थी। उसको मैं समझाती रही कि साइंस ले लो, दोनों साथ पढ़ेंगे, तुम पढ़ाई में भी अच्छी हो कोई मुश्किल नहीं होगी। और वो मान भी गयी।
अब ये तसल्ली थी कि अगर अब कोई और लड़की नहीं भी जॉइन करती है तो हम दोनों पर्याप्त हैं एक दूसरे का साथ देने के लिए।
बड़े ही हर्षोल्लास के साथ हम दोनों कक्षा नौ में पहले दिन क्लास में पहुँचे परन्तु वहाँ पूरी क्लास में सिर्फ लड़के थे क्लासरूम के दरवाज़े पर हम दोनों के पैर ठिठक गए। हम दोनों ने अपने कदम पीछे ले लिए, मेरी सहेली किसी कीमत पर क्लास में जाने को तैयार नहीं थी और मुझे आर्ट्स जॉइन करने को बोल रही थी पर मुझे हर हाल में साइंस ही लेना था।
ख़ैर उस दिन सहेली को ये समझा कर कि आज पहला दिन है हो सकता है एक दो दिन में और लड़कियां भी आ जाएं क्लास में लेकर गयी।
अगले दिन जब मैं उसको साथ स्कूल जाने के लिए उसके घर लेने गयी। उसने साफ़ इंकार कर दिया। मैं लाख मनाती रही पर वो ज़िद पर अड़ गयी कि वो आर्ट्स में ही अड्मिशन लेगी और आज तो कत्तई नहीँ स्कूल जायेगी।
मैंने अब मन ही मन निर्णय लिया कि चाहे मुझे 35-40 लड़को के बीच अकेले क्लास करना पड़े पढूँगी तो साइंस। मन में सहेली को गाली देते हुये, उस वक्त सबसे बड़ी गाली थी (बद्तमीज़ कहीं की) निकल पड़ी। दो दिन अकेले क्लास करने के बाद कुछ राहत मिली जब चार लड़कियां जो 9th में फेल हो जाने के बाद वापस उस क्लास में आ गईं।
– कल्पना सिंह