द्रविड़ और आर्य में वास्तविक विभेद नहीं है। आद्य शंकराचार्य सर्वश्रेष्ठ आर्य गुरु हैं। उन्होंने जगदम्बा की स्तुति करते हुए स्वयं को द्रविड़ शिशु कहा है। अन्य प्रमाण भी हैं जिससे ज्ञात होता है कि द्रविड़ और आर्य दो समुदाय नहीं।
अँग्रेज पादरियों ने भाषा के आधार पर विभेद का षड्यंत्र किया। तमिल नाडु इस षड्यंत्र का पहला शिकार बना।
इससे जो राजनीति उभरी उसके एक नायक एम. करुणानिधि हुए। पादरी और पादरी चेला सर ग्रियर्सन को शुक्रिया।
ब्राह्मण विरोध की इस राजनीति के एक हास्यापद पक्ष को देखिए-
द्रविड़ आन्दोलन भगवान राम का विरोधी था, क्योंकि राम आर्य संस्कृति के स्थापक हैं। दूसरी ओर रावण का समर्थक था क्योंकि रावण आर्य संस्कृति का विरोधी है।
जबकि रावण घोषित रूप से वेदज्ञ ब्राह्मण है, फिर रावण का पक्षधर ब्राह्मण विरोधी कैसे?
हिन्दी और संस्कृत का विरोध हुआ, राजनीति हुई, लेकिन उत्तर और दक्षिण भारत में विभेद की गहरी खाई खोदने के अँग्रेजों का प्रयास लगभग विफल रहा।
जब जब मुझे आर्य ब्राह्मण विरोधी तमिल द्रविड़ मिले, मैंने पूछा- तुम लोग ब्राह्मण रावण को पूजते हो और रामजी का विरोध क्यों करते हो?
उन्होंने कहा- नहीं, हम ऐसा नहीं करते और न करेंगे। हम आर्य नहीं, द्रविड़ हैं।
इस संवाद में मेरे विभाग के अँग्रेजी के प्रो. मेघनादन भी कभी कभार आते हैं, द्रविड़ मूवमेंट वाले पक्के तमिल हैं। जब मैंने उन्हें रावण की जाति बताई। उनके पास झेंप मिटाने के लिए हँसने के अलावा कोई जवाब नहीं रहता।
मेरे विचार से आर्य विरोधी द्रविड़ आन्दोलन अँग्रेज़ द्वारा थोपी हुई एक खोखली धारणा है, जो भाषाई इतिहास पर खड़ी है।
ब्राह्मण-आर्य विरोध का अखण्ड राजपद प्राप्त चमत्कारी नेता एम. करुणानिधि ने भरपूर जीवन जिया, खूब राजनीति की। धन, समृद्धि, स्त्रियां संतानें और फिल्म इल्म भी सबकुछ पाया।
शंकराचार्य जयेन्द्र सरस्वती को स्वेच्छाचारिणी जयललिता ने झूठे संगीन आरोपों में घेर कर जेल में डाल दिया था, यह बहुत दुखद घटना थी, पूरा हिन्दू समाज जयललिता को थूक रहा था।
तब करुणानिधि ने व्यंय किया था- जयललिता ब्राह्मण है, ये इनके बीच की लड़ाई है।
जयललिता हार गई। करुणानीधि की जीत हुई। उसके बाद जयललिता के झूठे संगीन आरोपों की हवा निकल गई।
जो ब्राह्मण विरोधी था, उसने अपने प्रतिपक्ष का महत्त्व समझा…