एक न्यूज़ चैनल के कार्यक्रम में डॉ सुब्रह्मण्यम स्वामी ने आज दिखा बता दिया है कि वो अब अपने गेयर बदल रहे हैं।
साल 1999 में डॉ स्वामी द्वारा गेयर बदलने का शिकार बने अटलजी और 2014 से ही उनसे एक निश्चित दूरी रखकर चल रहे नरेन्द्र मोदी में बड़ा अन्तर है।
मुझे कोई आश्चर्य नहीं हो रहा है। वो लोग अवश्य अपनी धड़कनों पर काबू रखें जिन्हें डॉक्टर स्वामी में हिंदुत्व का सबसे बड़ा मसीहा नज़र आ रहा है।
डॉक्टर सुब्रमण्यम स्वामी से सम्बंधित मेरे इस कथन पर कुछ तीखी प्रतिक्रियाएं आई तो उनका अलग-अलग जवाब देने के बजाय यह छोटा लेख लिखना ही ठीक समझा।
अतः डॉक्टर स्वामी को हिन्दुत्व का सबसे बड़ा मसीहा मान रहे सभी महानुभावों के सूचनार्थ, ध्यानार्थ केवल एक प्रसंग।
हालांकि ऐसे अनेकानेक प्रसंग है लेकिन यह एक प्रसंग पर्याप्त होगा सारे भ्रमों और सन्देहों के बादल छांटने के लिए।
यह है वह प्रसंग
31 अक्टूबर और 2 नवम्बर 1990 को अयोध्या में गोली चलवाकर मुलायम सिंह ने जब रामभक्त कारसेवकों का नरसंहार करवाया था तब तत्कालीन जनता दल विभाजित हो गया था।
विभाजन के बाद स्व. चन्द्रशेखर और मुलायम सिंह यादव ने मिलकर समाजवादी जनता पार्टी नाम से नया राजनीतिक दल सजपा बनाया था।
तब डॉक्टर स्वामी उसी सजपा में शामिल होकर चन्द्रशेखर सरकार में 10 नवम्बर 1990 को मंत्री बन गए थे।
यह सब उन्होंने तब किया था जब अयोध्या में बलिदान हुए रामभक्त कारसेवकों की तेरहवीं भी नहीं हुई थी और पुलिस की गोली खाकर यमुना में डूबे कारसेवकों की उतरा कर बाहर आ रही लाशों के निकलने का सिलसिला तब तक बन्द नहीं हुआ था।
अतः अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण तथा उस आंदोलन के प्रति डॉक्टर सुब्रमण्यम स्वामी की आस्था, श्रद्धा, प्रतिबद्धता का इससे बड़ा साक्ष्य नहीं दिया जा सकता।
अब यह भी स्पष्ट कर दूं कि मेरे लिए डॉक्टर स्वामी की उपयोगिता उतनी ही है, जितनी डॉक्टर स्वामी की अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए राम मंदिर और हिंदुत्व सरीखे मुद्दों की है।
अंत में यह भी कहना चाहूंगा कि यह ध्यान रहे कि रावण वध कर लंका विजय के लिए निकले प्रभु राम की सेना में शामिल हर वानर और रीछ जो था वो भगवान हनुमान और गुरु जामवंत नहीं था।
विरोध कीजिये, वर्ना आपका भी शिकार कर लेगी राजनीतिक राक्षसों की हैवानियत