मैं सेक्टर 62 में मद्धिम गति से अपनी कार चलाता हुआ जा रहा था। सड़क चौड़ी थी और कम यातायात वाली थी, मगर तीन दिन पहले की बारिश ने सड़क के किनारे की छोटी बजरी उखाड़ दी थी।
वही बजरी बीच सड़क पर भी दिखाई दे रही थी। यकायक एक नौजवान अपनी हाहाकारी टाइप मोटरसाईकल पर 100 की स्पीड पर मुझे ओवरटेक करता हुआ निकला।
बजरी पर हाहाकारी रेसिंग बाइक फिसली और किनारे धीमी रफ्तार से चल रहे उम्रदराज़ व्यक्ति की मोटरसाईकल से फुल स्पीड से टकराई।
मैंने उम्रदराज़ व्यक्ति को कम से कम मीटर भर हवा में उछल कर कलाबाज़ी खाकर गिरते हुए देखा… टक्कर मारने वाला नौजवान मोटर साईकल सवार भी एक तरफ गिरा।
मैंने अपनी कार रोकी और गिरे हुए उम्रदराज़ व्यक्ति, जो नौजवान की मोटर साईकल की टक्कर का शिकार हुए थे, के पास पहुंचा।
उम्रदराज़ शख्स काफी चोट का शिकार हुए थे… हर तरफ से खून बह रहा था… चेहरा कलाइयां, घुटने, कंधे कोई जगह ऐसी नहीं थी, जो चोटग्रस्त न हो। हेलमेट भी क्षतिग्रस्त सा था, मगर हेलमेट ने उम्रदराज़ व्यक्ति की जान बचा ली थी।
नौजवान ने लपक कर अपनी मोटर साईकल उठाई… मैंने दौड़कर नौजवान से मोटर साईकल की चाबी छीन ली।
उम्रदराज़ व्यक्ति को मैंने कार में बैठाया, साथ ही नौजवान को जबरन कार में आगे की सीट पर धकियाया… लड़के को दिखाते हुए 100 नम्बर डायल किया।
लड़के की सारी अकड़ जाती रही… बोला अंकल पुलिस मत बुलाइये… मैं इन अंकल का इलाज करा दूंगा…
प्रत्यक्षतः मैं समझ गया था कि चोटें तो खूब हैं, मगर गंभीर चोट शायद न हो… शायद फर्स्ट एड और मरहम पट्टी से काम चल जाए…
हम फोर्टिस पहुंचे… असली नाटक फोर्टिस अस्पताल में होना था…
फोर्टिस स्टाफ ने हमें इमरजेंसी में भेज दिया… मैंने कहा कि फर्स्ट एड दिलवानी है।
स्टाफ ने हमें घुड़का कि चोटें किस नेचर की हैं यह डाक्टर बताएंगे…
उम्रदराज़ को इमरजेंसी बैड पर लिटा दिया गया… तुरंत बगैर पूछे… तमाम मशीनें… दसियों तारों द्वारा उम्रदराज़ के शरीर से जोड़ दी गईं…
एक जूनियर डॉक्टर प्रकट हुए… उन्होंने कहा… “अरे नाक, कंधे और गले की चोटें सीरियस होती हैं… इनका MRI और CT स्कैन होगा, ECG तो तुरंत करना पड़ेगा… 48 घंटे का मिनिमम ऑब्ज़र्वेशन ज़रूरी है।”
उम्रदराज़ और नौजवान दोनों की घिग्घी बंध गई… उम्रदराज़ बोले “मुझे बैंडेज और फर्स्ट एड चाहिए बस…”
डाक्टर बोला… बाबूजी आपकी हालत सीरियस है… किसी भी वक्त आप कोमा में जा सकते हैं… पैरालिटिक हो सकते हैं…”
बुढ़ऊ ने आपा खो दिया… सारे मशीनों के तार नोंच कर निकाल दिए… गनीमत रही इस बीच कई बार कहने पर फर्स्टएड और मरहम पट्टी हो गई…
तब तक उम्रदराज़ का बेटा भी आ गया… मरहम पट्टी का बिल हुआ रूपए 875/-… उम्रदराज अपने बेटे के साथ उड़न छू हो गए… नौजवान भी रूपए 875/- भुगतान के बाद गायब हो गया।
वापसी में, मैं जब अस्पताल की इमरजेंसी से बाहर आ रहा था तो देखा कि एक दूसरे तीमारदार उसी जूनियर डाक्टर से कह रहे थे… “आप हमारे मरीज़ को फौरन रिलीव कर दें… बताईये… स्पाइनल कॉर्ड की MRI होनी थी… ब्रेन की कर दी…”
जूनियर डाक्टर मरीज़ के तीमारदार के सामने घिघियाता हुआ… टेक्नीशियन का दोष बता रहा था।
हमारा मरीज़ भाग्यशाली था… जो समय रहते इस अस्पताल से जान बचाकर निकल भागा था।
सिर्फ राष्ट्रविरोधी ताक़तों को ही होता है राष्ट्रवादी ताक़तों से भय