एक न्यूज़ चैनल से कई फेक न्यूज़ संपादकों को निकाला गया है। इस चैनल के बारे में माना जाता रहा है कि यह मोदी सरकार के खिलाफ एजेंडा रखता है।
कुछ अरमानों के साथ यहां पर पहले अभिसार शर्मा दाखिल हुए, फिर पीछे पीछे ‘आजतक’ से खदेड़े गए पुण्य प्रसून बाजपेई की भी मारक एंट्री होती है और पूरे चैनल का लब्बोलुआब बदलने की कवायद शुरू होती है।
बहरहाल बाजपेई हाथ मलते हुए अपने एजेंडे को मास्टर स्ट्रोक का नाम देकर ठीक रात नौ बजे प्रगट होते हैं।
शुरूआत के एक महीने उनका प्रोग्राम टीआरपी कबाड़ने में सफल हो जाता है, लेकिन दूसरे महीने से उनके प्रोग्राम की टीआरपी फुस्स हो जाती है।
जो काम ये महाशय ‘आजतक’ में 20 मिनट के दौरान करते थे, वही काम ‘एबीपी’ में एक घंटे के दौरान करते हैं। इस दौरान कई फर्जी आंकडों को ग्राफिक्स के जरिए समझाने की नाकाम कोशिश करते हैं।
इसी दौरान प्रधानमंत्री ने अपनी योजनाओं के लाभार्थियों से सीधा संवाद करना शुरू किया जिसका नागरिकों में बड़ा ही सकारात्मक असर पड़ रहा था।
तो पुप्र बाजपेई ने निर्लज्ज तरीके से झूठ का सहारा लेकर प्रधानमंत्री के सरकारी कार्यक्रम को झूठे आंकड़ों के जरिये मलिन करने की कोशिश की, जिसका विपरीत असर न सिर्फ चैनल की साख पर पड़ा बल्कि शाम 7 से दस बजे रात्रि तक के कार्यक्रमों से विज्ञापनदाताओं ने दूरी बना ली।
मेरी अपुष्ट जानकारी के अनुसार बीते एक माह के दौरान चैनल को करीब 150 करोड़ का घाटा हुआ, लेकिन 7 से दस बजे के दोनों प्रेस्टीट्यूट सुधरने का नाम नहीं लेते दिखे।
अंतत: चैनल प्रबंधन इन्हें किक आउट करने का निर्णय करता है, जिसका विरोध इनके इमिडीएट बॉस करते हैं।
इसी बीच चैनल को केंद्र सरकार से ढेरो नोटिस मिलते हैं जिसमें दोनों पत्रकारों द्वारा प्रस्तुत आंकड़ों को सत्यापित करने को कहा जाता है। अंतत्वोगत्वा इनके बॉस से भी प्रबंधन द्वारा इस्तीफा ले लिया जाता है।
बहरहाल अब थोड़ा पीछे चलते हैं और पुप्र बाजपेई के इतिहास पर एक नजर डालते हैं-
– 2004 में एनडीटीवी से निकलने को मजबूर किए गए क्योंकि वहां पर लोगों से बदसलूकी करते थे और खुद को भगवान समझते थे।
– फिर 2007 में सहारा चैनल में कैमरे पर लालू यादव से निजी बातचीत करते पकड़े गए थे। लालू यादव ने कहा था कि कहां इन चोरों के यहां आ गए, तो पुप्र बाजपेई ने जवाब दिया कि सुधारने आए हैं।
– सहारा में ज्वाइनिंग 25 लाख प्रति महीने में की थी, जिससे होमलोन वगैरह चुकाया था।
– गुजरात में शिक्षा मंत्री के बारे में फेक वीडियो का पैकेज बनाया था।
– सरकारी बैंकों के डूबे कर्जों पर वो लगातार झूठ फैलाते रहे हैं। जब मोदी सरकार बैंकों से उनके एनपीए डिक्लेयर करवा रही थी तो पुण्य प्रसून यह झूठ फैला रहे थे कि मोदी सरकार में बैंकों में लूट चल रही है। मतलब – फेक न्यूज़।
– आजतक में कैमरे पर पुप्र बाजपेई अरविंद केजरीवाल के साथ सेटिंग करते पकड़े गए जिसके फलस्वरूप इन्हें व्यंगात्मक रूप से ‘क्रांतिकारी’ पत्रकार के नाम से पुकारा जाने लगा।
– माना जाता है कि पुप्र बाजपेई के कार्यक्रमों में डेटा कांग्रेस दफ्तर से प्रोवाइड किया जाता रहा है। जिसकी तस्दीक इनके उठाये मुद्दों और ‘पीडियों’ के ट्वीट्स की समानता से हो जाती है।
– हाल ही में एबीपी न्यूज़ पर उन्होंने प्रधानमंत्री के एक कार्यक्रम को लेकर झूठ फैलाया कि महिला किसान की आमदनी दोगुनी नहीं हुई। जिसका उस महिला किसान ने खुद सामने आकर खण्डन किया।
उनके इस झूठ की पोल खुल गई। जिस पर सूचना और प्रसारण मंत्री को ट्वीट करके विरोध जताना पड़ा, इसके बावजूद बड़ी बेशर्मी से इस मामले में कोई माफी भी नहीं मांगी थी।
खैर इनको रोजी रोटी का संकट तो नही रहनेवाला। द वायर, क्विंट, नेशनल हेराल्ड हैं ही। और कोई नहीं तो राजनीतिक आकाओं की तनख्वाह पर कंगाल NDTV से चिपक लेंगे, वैसे भी चुनावी वर्ष में आलोचना लिखनेवालों की भारी डिमांड रहती है।
वैसे भी ये रास्ता कहाँ जाता था आप भली भांति जानते ही हैं।
* एंकर अगर प्रोड्यूसर का इंतज़ाम कर ले तो कुछ खास मामलों में उसे अपने विषय चुनने मिल जाता है यानी वो टाइम स्लॉट ही खरीद लेता है।
* उपरोक्त आंकड़े कम करके ही दर्शाये हैं।
* पूरा प्रयास किया है कि तथ्यात्मक रूप से गलती न हो, फिर भी अगर कोई चूक निकलती है तो वो हमारी विचारधारा और सरकार के खिलाफ इनके द्वारा फैलाये गये ज़हर के सामने तो नगण्य ही है।
अभिव्यक्ति की आज़ादी सिर्फ आपकी संपत्ति नही, सबसे पहले यह आम आदमी का अधिकार है।
जय हिंद… वन्दे मातरम…
पावरफुल इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की पावर के गर्भपात के अपराधी हैं तमाम संपादक