जब मैं वामपंथियों के बारे में लिखता हूँ तो एक बाधा आती है।
यह नहीं समझा पाता हूँ कि वामपंथी ऐसे हैं क्यों?
क्यों वामपंथी राजनीति संघर्ष और तकरार की राजनीति है?
समाज में बखेड़ा खड़ा करने में उनका क्या लाभ है?
यह शुरू हुआ था अमीर और गरीब के संघर्ष से, मजदूर और उद्योगों के, कृषकों और जमींदारों के संघर्ष से। वह आज समाज में अनेक रूपों में फैल गया है… नस्लों, जातियों, लिंग और यौन व्यवहार की प्राथमिकताओं का संघर्ष…
हर रूप में, सामाजिक संरचना की आखिरी तह तक चला गया है। इन्होंने सिर्फ उद्योग और व्यवसाय को ही नहीं बर्बाद किया है, राष्ट्र, सभ्यता, समाज और सभ्यता की मूल इकाई, परिवार तक को नष्ट करने में अनवरत लगे हैं।
इन्होंने असीम विषाद और कष्ट की विरासत जमा की है… गरीबी, भुखमरी, युद्ध… करोड़ों को अनाथ किया है, और इन अनाथों में पश्चिमी सभ्यता में टूटते परिवारों से अनाथ हुए बच्चों को भी गिन लीजिए क्योंकि जो पश्चिम का वर्तमान है वही भारत के लिए भविष्य में होगा अगर हम नहीं चेते।
पर कोई क्यों यह विनाश-गाथा रचना चाहेगा?
क्यों समाज में अनावश्यक संघर्ष खड़ा करना चाहेगा?
क्यों कोई वामपंथी बनना चाहेगा?
इससे इन्हें मिलना क्या है?
तो अधिक स्पष्ट बोलूँगा, सत्ता पहला नियम है, “संघर्ष से सत्ता आती है”।
इससे भी आगे जाएँ – “सत्ता सिर्फ संघर्ष से ही आती है”। राजनीतिक शक्ति के निर्माण का और कोई तरीका है ही नहीं।
राजनीतिक सत्ता के निर्माण के दो ही रास्ते हैं – संघर्ष का निर्माण, या फिर संघर्षों का नियंत्रण।
सभी महान राजनीतिक सत्ताएँ संघर्षों से जन्मी हैं। इसके उदाहरण इतने अधिक हैं कि मैं उनकी गिनती कराने के फेरे में नहीं ही पड़ूँगा।
किंतु संघर्षों के नियंत्रण से सत्ता और शक्ति की स्थापना के कुछ कम उदाहरण हैं।
चाणक्य के काल में मौर्य साम्राज्य की शक्ति यूनानियों के साथ संघर्ष से नहीं पनपी, बल्कि भारतीय राज्यों के आपसी संघर्ष को नियंत्रित करने से उत्पन्न हुई।
गैरीबाल्डी ने इटली में और बिस्मार्क ने जर्मनी में आंतरिक संघर्षों को नियंत्रित करके नए महान राष्ट्रों की स्थापना की।
ज्यादा नया और मेरा मनपसंद उदाहरण है, 60 के दशक में ली कुआन यू ने सिंगापुर के विभाजित और संघर्षरत समाज के आंतरिक संघर्षों को नियंत्रित करके एक शक्तिशाली राष्ट्र निर्मित किया।
किंतु यह रचनात्मक और श्रमसाध्य काम है। और वामपंथी श्रम के लिए नहीं जाने जाते, रचनात्मकता के लिए तो बिल्कुल नहीं। वे चालाकी और कुटिलता के लिए जाने जाते हैं।
उन्होंने समाज के अंदर इतनी सफलता से इतने सारे संघर्ष खड़े कर लिए हैं, और उससे उनकी असीमित शक्ति प्रवाहित होती है।
वे निर्धारित करते हैं, किसे प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति बनना चाहिए और किसे नहीं, उन्हें पद पर रह कर क्या करना चाहिए और क्या नहीं, आप अपने ड्रॉइंग रूम में बैठ कर क्या कह सकते हैं और क्या नहीं कह सकते…
और तो और, अपनी खोपड़ी के अंदर आप क्या सोचेंगे और क्या नहीं, ये भी वही निर्धारित करते हैं। पूरे विश्व पर वामपंथियों की इतनी असीमित शक्ति है, वह भी बिना सत्ता में बैठे।
और यह शुद्ध शक्ति है, बिना सत्ता की सत्ता… बिना किसी ज़िम्मेदारी के सत्ता। यह किसे प्यारी नहीं लगेगी? कौन नहीं चाहेगा इतनी सत्ता? जरा सा कष्ट और विषाद, कुछ लाख या करोड़ लोगों का जीवन आखिर चीज़ क्या है इसके सामने?
विषैला वामपंथ : खेल और मैदान उनका, नियम भी उनके, आप खेले और हारे