पाकिस्तान में कल हुये चुनाव में, जैसी कि उम्मीद थी इमरान खान की पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ बढ़त लिये हुये है।
वैसे तो अब तक इमरान खान को पाकिस्तान का नया प्रधानमंत्री बनने की घोषणा हो जानी चाहिये थी लेकिन पाकिस्तान इलेक्शन कमीशन के ‘रिज़ल्ट्स ट्रांसमिशन सिस्टम’ में तकनीकी खराबी आ जाने के कारण देर रात से ही चुनाव के परिणाम आने बन्द हो गये हैं।
वैसे उम्मीद की जाती है कि अब जब आज सारे परिणाम आ जायेंगे तब इमरान खान, बहुतायत सीटों को जीत कर पाकिस्तान के नये प्रधानमंत्री बन जायेंगे।
पाकिस्तान इलेक्शन कमीशन ने जिस तरह से तकनीकी कारणों को बता कर रिज़ल्ट्स रोके हैं, उससे यह संदेह और पूरी तरह स्पष्ट हो गया है कि पाकिस्तान की सेना व आईएसआई (इस्टैब्लिशमेंट) अपनी पसंद के प्रधानमंत्री पद के दावेदार, इमरान खान को बड़े बहुमत से प्रधानमंत्री बनवाना चाहती है।
इमरान खान को प्रधानमंत्री बनवाने के लिये पाकिस्तान के इस्टैब्लिशमेंट ने बड़ी मेहनत की है।
एक तरफ पाकिस्तान की सेना के इशारे पर वहां की सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव की जिम्मेदारी सेना के हवाले कर दी और साथ में पोलिंग बूथ के अंदर सेना के मौजूद रहने को वैधानिकता प्रदान की है, वहीं आईएसआई के आदेश पर इमरान खान के विरोधियों के मुकदमों के फैसले (कुछ फैसले तो बिना स्पष्ट सबूतों के ही दिये गये) चुनाव से पहले करवा कर, उन्हें चुनाव में खड़ा होने से रोक दिया गया और जो इमरान के समर्थन में थे उनके फैसले को चुनाव हो जाने के बाद तक रोक दिया गया है।
पाकिस्तान की इस्टैब्लिशमेंट ने यह भरपूर कोशिश की है कि इमरान खान की पार्टी पीटीआई के विरोधियों को खुल कर चुनाव में लड़ने न दिया जाये।
इस सबके बीच यह सुखद समाचार मिल रहा है कि अभी चुनाव के सारे परिणाम नहीं आये हैं लेकिन सारा पाकिस्तानी विपक्ष चुनाव में धांधली का आरोप लगा रहा है और अंतराष्ट्रीय प्रतिक्रियाएं भी आने लगी हैं। यदि यह सब पाकिस्तान में अराजक स्थिति पैदा कर देते हैं तो इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी, और यह भारत के हित में ही होगा।
यदि पिछले तीन वर्षों की पाकिस्तान की राजनीति व उसके इस्टैब्लिशमेंट की तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ को लेकर बढ़ते टकराव का अध्ययन किया जाये तो यह स्पष्ट हो जाता है कि पाकिस्तान के इस्टैब्लिशमेंट ने तभी से, पाकिस्तान के अगले चुनाव में, इस्टैब्लिशमेंट की तरफ से इमरान खान को प्रधानमंत्री बनाना तय कर लिया था।
भले ही लोगों को अब इमरान खान का पाकिस्तान के इस्टैब्लिशमेंट से जुड़ाव समझ में आ रहा है लेकिन इमरान खान की इस्टैब्लिशमेंट से नज़दीकियां 2013 से ही शुरू हो गयी थीं जब इमरान की पार्टी पीटीआई ने के-पी-के (खैबर पख्तून-ख्वां) प्रान्त में कट्टरपंथी व शरिया के अनुसार इस्लामिक स्टेट की समर्थक जमात ए इस्लामी पार्टी के साथ सरकार बनाई थी।
सिर्फ यही नहीं, इमरान खान के 2013 से ही, तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी), जिसे पाकिस्तान के इस्टैब्लिशमेंट का समर्थन है और वह उसे गुड तालिबान कहता है, से सबन्ध है।
2013 में जब अमेरिकी सेना ने तहरीक-ए-तालिबान के कमांडर वली उर रहमान को मार डाला था, तब इमरान खान ने वली उर रहमान को शांति का दूत बताया था। यही नहीं, इमरान खान शुरू से ही पाकिस्तान में इस टीटीपी का कार्यालय खुलवाने का समर्थन करते रहे हैं।
अभी हाल में इस पाकिस्तानी तालिबान को लेकर इमरान खान ने जो तीन चीज़ की हैं वो यह स्पष्ट कर दे रहा है कि इमरान खान का नया पाकिस्तान, तहरीक-ए-तालिबान जैसे कट्टर इस्लामियों के साये में ही पनपेगा।
इसका संकेत इस बात से मिलता है कि इमरान खान, तालिबान की न्याय-व्यवस्था का सार्वजनिक रूप से समर्थन कर चुके हैं। सिर्फ यही नहीं, चुनाव से पहले उनकी ‘के पी के’ की सरकार ने ‘समी उल हक’ के मदरसों को 55 करोड़ रुपये का अनुदान दिया है। यह वही समी उल हक है जिसे ‘फादर ऑफ तालिबान’ कहा जाता है।
इमरान खान सिर्फ यही तक नहीं रुके, बल्कि चुनाव से पहले इन्होंने मौलाना फजलुर्रहमान से हाथ मिला लिये थे, जो कि अमेरिका की टेरर लिस्ट में आतंकवादी के रूप में शामिल है।
अब पाकिस्तान के इस्टैब्लिशमेंट को इससे बेहतर कौन सा प्रधानमंत्री मिल सकता था जो न सिर्फ इस्लामिक राज्य की अवधारणा को स्वीकारता हो बल्कि पाकिस्तान के नॉन स्टेट एक्टर्स को भी समर्थन देता हो?
पाकिस्तान के इस्टैब्लिशमेंट को इमरान खान में एक पैकेज डील मिला है जिसका करिश्माई व्यक्तित्व जहां बदलाव के आकांक्षी पाकिस्तान के वर्ग व महिलाओं को आकर्षित करता है, वहीं इस्लाम के कट्टरपंथियों को नये कट्टरपंथी इस्लामिक पाकिस्तान का सपना भी देता है।
इमरान खान भारत के लिये बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि पाकिस्तान का इस्लामिक कट्टरवाद में और धंसना भारत के हित में है। भारत के लिये, वर्तमान में बनते हुये नये वैश्विक समीकरण व सामरिक गठबंधन के परिदृश्य में यह अति आवश्यक है कि पाकिस्तान का नया प्रधानमंत्री, इस्लामिक कट्टरवाद का समर्थक हो, नॉन स्टेट प्लेयर्स को राजनीति की मुख्यधारा में लाने का समर्थक हो, पाकिस्तान की इस्टैब्लिशमेंट की भारत विरोधी ‘नेशन सिक्योरिटी स्टेट’ नीति को मानता हो, कश्मीर को लेकर भारत विरोधी भावनाओं को उभारने वाला हो।
भारत के दीर्घकालीन हित के लिये जहां इमरान खान में यह सब खूबियां हैं, वही उनका ‘केजरीवाल’ होना भी फायदेमंद है। इमरान खान राजनीतिज्ञ नहीं है और न ही उनकी कभी कोई स्पष्ट विचारधारा रही है। वह कभी भी किसी एक बात पर नहीं टिके हैं, उन्होंने अपनी महत्वाकांक्षा के लिये चरण दर चरण समझौते किये हैं। आर्थिक रूप से बर्बाद पाकिस्तान के इस नये प्रधानमंत्री इमरान खान को पहले दिन से ही परीक्षा देनी होगी और भारत उन्हें हनीमून का आनंद नहीं लेने देगा।
यहां एक बात महत्वपूर्ण है कि जब दुनिया आगे बढ़ती है, वहीं इमरान खान पीछे बढ़ते हैं। 20वीं शताब्दी के एक प्रगतिशील मॉडर्न मुसलमान से शुरुआत करने वाले इमरान खान, 21वीं शताब्दी के दूसरे दशक में 1400 साल पहले का कट्टर रूढ़िवादी मुसलमान बन चुके हैं। इसको बहुत अच्छी तरह से उनकी तीन शादियों से समझा जा सकता है। उनकी तीनों बीवियां उनकी प्रगतिशीलता से रूढ़िवादिता की कहानी कहती है।
यदि पूरे मामले को यदि एक वाक्य में कहना हो तो इससे समझ लीजिये कि पाकिस्तान की इस्टैब्लिशमेंट ने पाकिस्तान पर अपना वर्चस्व बनाये रखने के लिये एक बंदर के हाथ उस्तरा पकड़ा दिया है, और अब देखना यह बाकी रह गया है कि वह गाल काटता है या गला!