कारगिल विजय दिवस और 533 हुतात्माओं का बलिदान

भारत और पाकिस्तान के बीच 8 मई से लेकर 26 जुलाई 1999 तक, जम्मू-कश्मीर के बेहद ऊंचाई वाले क्षेत्र द्रास-कारगिल क्षेत्र में युद्ध हुआ था, जिसे आज हम कारगिल युद्ध के नाम से जानते है।

इस युद्ध की शुरुआत मुजाहिदीन के वेश में पाकिस्तान की सेना की नॉर्थन लाइट इन्फेंट्री के कारगिल में नियंत्रण रेखा को पार करने से हुई।

पाकिस्तानी सेना का लक्ष्य भारत मे 11 किलोमीटर घुस कर कब्ज़ा करना था, ताकि भारत से कश्मीर की घाटी को जोड़ने वाले रास्ते को बंद करके घाटी को अलग किया जा सके।

इस तरह पाकिस्तान की सेना का भारत के क्षेत्र में घुस कर कब्ज़ा करके बैठ जाना जहां भारतीय खुफिया सेवाओं की बहुत बड़ी विफलता थी।

इसके प्रतिउत्तर में, राजनैतिक निर्णय लिये जाने के बाद भारतीय सेना का 8 मई से ‘ऑपरेशन विजय’ और 26 मई से भारतीय वायुसेना का ‘ऑपरेशन सफेद सागर’ बेहद सफल रहा और भारत विजयी हुआ।

भारतीय सेना को शुरू में, इन पाकिस्तानी घुसपैठियों के विरुद्ध कार्यवाही करने में काफी कठिनाई हुई, क्योंकि शत्रु उनसे ऊंची चोटियों पर बैठे थे, लेकिन बाद में वायुसेना की मदद मिलने पर, भारतीय सेनाओं ने पाकिस्तान की सेना को पूरी तरह ध्वस्त कर दिया और पूरा क्षेत्र घुसपैठियों से खाली करवा लिया गया।

कारगिल के इस दुर्गम क्षेत्र में, पाकिस्तानी सेना को ऊँचाई पर होने का भौगोलिक लाभ था और इस कारण से भारतीय सेना के वीर उनके सीधे निशाने पर थे। वहीं भारतीय सेना का हर ऑपरेशन एक आत्मघाती ऑपरेशन था और इस कारण से भारतीय सेना को जहां अपने 533 रण बांकुरों को खोना पड़ा था, वहीं पाकिस्तान के लगभग 4000 सैनिक मार डाले गये थे।

आज 19 वर्ष बाद हम जिस मज़बूती से कश्मीर की घाटी में बैठे हुये, सीमा पार पाकिस्तान की हर चाल को उसकी मात में बदल दे रहे हैं, वह इन 533 हुतात्माओं के बलिदान का ही परिणाम है।

कल 26 जुलाई को, ‘कारगिल विजय दिवस’ है और इस अवसर पर प्रत्येक भारतीय से यह विनम्र आग्रह है कि वह जहां भी है, वह वहां ही इन 533 हुतात्माओं की याद में एक दीपक या मोमबत्ती अवश्य जलाएं।

इसी क्रम में लखनऊ में रहने वाले मित्रों से विशेष आग्रह है कि कल 26 जुलाई 2018, शाम 7 बजे ‘कारगिल विजय दिवस’ के अवसर पर, अपने कीमती वक्त में से कुछ मिनट अवश्य निकालें और परमवीर चक्र विजेता कैप्टन मनोज कुमार पांडेय चौराहा, गोमतीनगर पर पहुंचे। वहां अपने हाथों से दीपक/मोमबत्ती जलाकर कारगिल युद्ध में बलिदान हुये 533 हुतात्माओं को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करें।

यहां मैं यह अवश्य कहना चाहूंगा कि हमारी आज जिस रूप में भी स्वतंत्रता है और जो कश्मीर की घाटी भारत के ही अधीन है वो इन 533 हुतात्माओं के रक्त से सिंचित है।

हमें निर्णय यह लेना है कि राष्ट्र सर्वोपरि है या अहिंसा, सत्य और न्याय?

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