इनकी कहानी तो जानते होंगे न? संक्षेप में हम ही बता देते हैं।
कुछ चोर चोरी कर भागते-भागते ऋषि मांडव्य के कुटिया में घुस जाते हैं.. उनके पीछे राजा के सैनिक होते हैं। सैनिक जब मांडव्य के कुटिया पहुंचते है तो मांडव्य ऋषि से उन चोरों के बारे में पूछते हैं।
चूंकि उस दिन मांडव्य ऋषि का मौन व्रत रहता है तो वो कुछ नहीं बोलते हैं। बाद में उन्हीं के कुटिया से सारे चोर व लूटे हुए धन बरामद होते हैं। चोरों के साथ साथ ऋषि मांडव्य को भी राजा के दरबार में हाजिर किया जाता है। और दंड के तौर पे सभी को सूली में चढ़ाने का आदेश दिया जाता है।
तो ऋषि मांडव्य को भी ये सजा मिलती है। लेकिन बहुत प्रयास के बाद भी ऋषि मांडव्य नहीं मरते है तो सैनिकों को आश्चर्य होता है तो वे राजा को बुलाते हैं और राजा जब वहाँ पहुँचते हैं तो वे भी आश्चर्यचकित हो जाते हैं.. सारी कहानी जानते हैं फिर अपनी भूल पे ऋषि से क्षमा याचना करने लगते हैं।
उन्हें सूली से उतारने का आदेश देते हैं लेकिन सूली उनसे अलग नहीं होता है.. बहुत प्रयास किया जाता लेकिन वो अलग नहीं होता.. काट दिया जाता फिर भी उनकी ठूंठ लिए वह जीवन भर रहते है। जब वो मृत्युलोक त्याग कर यमराज के दरबार में हाज़िर होते हैं तो इस दंड के बारे में यमराज से हिसाब माँगते है कि आखिर हमने ऐसा कौन सा पाप किया था जिसका दंड हमें ये मिला?
तो यमराज बोलते हैं कि आप बचपन में एक टिड्डे को कुश उसके पिछवाड़े में घुसेड़ दिए थे। उसी की सज़ा मिली आपको। इतना सुनते ही ऋषि मांडव्य क्रोधित हो जाते हैं व यमराज से कहते हैं,”मेरे द्वारा बचपन में अनजाने में की गई गलती की इतनी बड़ी सज़ा कि मैं जीवन भर उस कष्ट को भोगता रहा ? क्या आपको इतना भी नहीं मालूम कि 12 वर्ष से कम उम्र में की गई गलती पाप की श्रेणी में नहीं आती? क्योंकि इस उम्र में उन्हें ज्ञान का बोध नहीं होता और आपने मुझे उसके लिए ये दंड निर्धारित की?
मैं आपको श्राप देता हूँ कि आप इस गलती के लिए मृत्युलोक में शुद्र के रूप में जन्म लेंगे व आपके सामने अन्याय होते हुए भी आप कुछ नहीं कर सकेंगे!!”
और उस श्राप के कारण ही यमराज दासी पुत्र विदुर बन कर जन्म लेते हैं।
ये वो कथा हो गई।
लेकिन इसका जिक्र क्यों ???
जिक्र जरूरी था। ऋषि मांडव्य के द्वारा कहे गए शब्द को देखें, 12 वर्ष से कम उम्र में किये गए अपराध पाप की श्रेणी में नहीं आते, क्योंकि उन्हें सही गलत का ज्ञान नहीं होता है। पॉइंट टू बी नोटेड।
अब आगे चलते हैं ।
एक बड़ी दिलचस्प कहानी और सुने होंगे .. ये आम जीवन की कहानी है जिसमें सराती पार्टी वालों की तरफ से बाराती वालों को ये शर्त रहती कि आपके बाराती में कोई बुजुर्ग न होगा। बाराती पक्ष को जरा खलता है.. लेकिन एक बुजुर्ग के सलाह के अनुरूप उनको छिपा के बारात में ले चलते हैं। जब बारात पहुँचती है तो खाने के ढेर सारे आटे के बोरे रहते हैं.. और सराती पक्ष वाले उन बोरों को दिखाते हुए कहते हैं कि आप लोगों को ये सारे बोरों के आटे के रोटी/पूड़ी बना के खाने है. सब के सब मने सब।
जब बोरों को देखते हैं और बाराती की संख्या तो युवा लोगों में हड़कंप मच जाता है। भाई एतना कैसे खा पाएंगे ? ई तो हद है। इतना भला कोई कैसे खा सकता है क्या ?? बुजुर्ग के कान तक ये बात आई.. तो बुजुर्ग एक युवक को सलाह देते हैं। फिर वो युवक सामने आता है और बोलता है कि “हाँ हम सभी बोरे के आटे खा जायेंगे, लेकिन एक शर्त बस इतनी है कि सभी बोरे के आटे की रोटी एक ही तवे में बननी चाहिए।” .. शर्त मान ली जाती है।
लेकिन जब तवे से एक-एक रोटी बन के निकलती है और बारातियों को खिलाने में जाती है तो बारातियों को क्या घण्टा बुझायेगा। रोटी बनाने वाले रोटी बेलते-बेलते और पकाते-पकाते परेशान और इधर बाराती फूल टू मस्त। थक कर सराती पार्टी हार मान लेते हैं।..
लेकिन सराती पार्टी इसके बाद जरूर बोलते हैं कि “बिना बुजुर्ग की सहायता बगैर ये आइडिया आपलोगों को आ ही नहीं सकता।.. हमने तो मना किया था बुजुर्ग को लाने को लेकिन आपने फिर भी लाया। वो जरूर कहीं छुपे होंगे क्योंकि ये बिना बुजुर्ग के संभव नहीं।”
एक किशोर+युवा (12 से 24 तक) जब बहुत ज्यादा उछल कूद करता है तो अपनी खीझ उतारने के लिए क्या बोलते हैं??
“सारहे बप्पा के कमैया में जेतना उछलना है उछल लो.. जब कन्धेली पड़ेगा न तो दाल और चावल का भाव पता चलेगा.. उछल लो बेटा उछल लो बाप के कमाई में!”
और सही में जब कंधे पर गृहस्थी का कन्धेली का बोझ पड़ता है न तब सच्चे में आटे चावल दाल के रेट भाव मालूम पड़ने लगते हैं।
24-36 वर्ष.. ये वो समय होता जब आप एक नई पीढ़ी का सृजन कर रहे होते हैं और जिम्मेदारी का अहसास भी होता जाता है।
36-48 वर्ष .. धन संचय की इच्छा का प्रबल होना .. क्योंकि आपके बच्चे बड़े हो रहे हैं.. उनके भविष्य में ज्यादा परेशानी न हो उसके लिए कुछ धन का संचय किया जाय।
48-60 वर्ष .. ये समय आपके पास जीवन का निचोड़ होता है.. उतार चढ़ाव भले बुरे सब का अनुभव.. आप एक सलाहकार का काम करते अपने से छोटों के लिए। मतलब अब आपके पास ज्ञान की कुंजी है जिसे आपने अपने अनुभव से सीखा है और उसे नई पीढ़ी को ट्रांसफर भी करना है।
60-72 वर्ष .. ये वर्ष केवल और केवल ईश्वर में विलीन होने का समय होता.. परब्रह्म में विलीन होने का। याने फाइनल स्टेज!!.. विज़डम और इनलाइटेन का स्टेज!!
72 के आगे विलय ही हो जाना।
ये एक आम जीवन चक्र है। सात चक्र।
आपके अंदर भी सात चक्र .. शून्य से ब्रह्म तक का सफर.. याने काले से पारदर्शी तक का सफर।
सात में से तीन माता को ज्यादा इम्पोर्टेंस दिया गया .. काली याने आरंभ.. लक्ष्मी याने पोषण धनार्जन.. सरस्वती याने ज्ञान की प्राप्ति।
लेकिन इन सब के बीच में और चार माता। और सबके अपने-अपने महत्व।
इनमें जो एक माता है उनका जिक्र करना अनिवार्य है और उन्हीं को ले के ये सीरीज़ चल रही है.. माता ‘कुमारी’ या वल्ली या पच्चीअम्मा या कार्तिकेयनी! .. याने भगवान मुरुगन, कुमारन, कार्तिकेय की पत्नी। .. जैसा कि पहले ही बता चुके कि मुरुगन कृषि के देवता हैं.. जंगल को जला कर उसे कृषि भूमि में परिवर्तित करते हैं और उसमें शकरकंद और विभिन्न प्रकार के मिलेट्स उपजाते हैं। देवी वल्ली उन्हीं को रिप्रेजेंट करती हैं। कृषि याने हरियाली का प्रतीक याने हरा रंग। माता कुमारी आपको हर जगह हरे रंग में ही दिखाई देगी.. हरा वस्त्र से ले के हरा रंग तक।
सात कलर की जो बात हो रही उसमें से हरा रंग माता वल्ली को ही दिया गया। और एज ग्रुप में देखे तो इन्हें 24-36 दिया गया है। याने उर्वरा जीवन का प्रतीक। और इन्हें सात ग्रह में से वीनस या शुक्र को दिया गया है।
सप्त-कन्नी, सप्त-कणिका, सप्त-कन्नीयर, सप्त-मातृ, सप्त-मातृका याने सप्त-माता।
और ये माता हुई ..
ब्राह्मी(Brahmi), माहेश्वरी(Maheshwari), कौमारी/कुमारी(Kowmaari), वैष्णवी(Vaishnavi), वाराही(Vaaraahi), इंद्राणी(Indraani), और चामुंडी(Chaamundi)।
दक्षिण भारत में इनके अलग-अलग समर्पित मंदिर हैं और कहीं-कहीं साथ मे भी मंदिर हैं।
इन सातों को सात ग्रह से सम्बंध किया जाता। और ग्रहों के अनुरूप सप्ताह के नाम।
उत्तर भारत में भी सेम चीज देख सकते हैं।
अपनी जो सात बहने थी वो थी ..
सोम्बरी, मुंगली, बुदनी, गुरुबारी, सुकरी, सुनी और राईमत।
सेम टू सेम आज का हिंदी सप्ताह।
इन्हीं के नाम से सात ग्रह.. बल्कि अपनी और एक बहन थी जो सबसे बड़ी याने मारांग दइ.. इस प्रकार आठ ग्रह हुए। (मॉडर्न साइंस भी).
बेबिलोनियन, असीरियन, आकडियन, सुमेरियन सभ्यता को देखे तो यहां भी सात देवी हुई।
नन्ना(Nanna), निन्हरसग (Ninhursag), एंलील(Enlil), अन(An), इनकी(Enki), इनन्ना(Inanna) और Utu(उतु).
यहूदी, हलेलुइया और जोल्हेलुइया मने अब्राहमिक रिलिजनों की बात करे तो यहाँ भी सात परी/परा (परी या परा इसलिए कि इनके जेंडर ही पता न चलते, फिर भी इन्हें पुरुष ही माना गया, जबकि बहुत जगह स्त्री के रूप में भी दिखाई दिए।) .. ये थे..
माइकल(Michael), गैब्रिएल(Gabriel), राफेल(Raphael), उरिएल(Uriel), सेलफिएल(Selaphiel, रगुएल या जेगुडीएल( Raguel or Jegudiel), और बरचिएल(Barachiel).
इनके नाम को सप्ताह के नाम में भी बाँटा गया है।
चित्र में देख सकते।
माया सभ्यता में भी chalan Balan के सात एंजेल्स और एजेस की बात होती है।
दक्षिण भारत में सात देवियों को सात अलग-अलग रंगों में दिखाया जाता है। चित्र संलग्न।
शरीर के अंदर ‘सात चक्र’ के भी अलग-अलग रंग जो कि सात देवियों को ही समर्पित है।
‘सात’ का चक्कर बाकी आप गूगल भी कर सकते हैं। क्यों इस सात के पीछे ही भागते हैं।
मार्शल आर्ट्स लाइक कराटे, कुंगफू आदि में जो बेल्ट्स मिलते हैं उनके कलर मालूम है? उनके कलर ऐसे क्यों होते हैं ??
मार्शल आर्ट शुरू होता है व्हाइट से और खत्म होता है ब्लैक पर।
अपन मने(आध्यत्म टेप से) शुरू होते ब्लैक से और खत्म होते व्हाइट और ट्रांसपेरेंसी याने पारदर्शी से याने ‘निर्वाण’!
मने कि जस्ट रिवर्स बोले तो उल्टा।
सात माता के अलग-अलग कलर को फिर से कराटे बेल्ट सिस्टम को देखते हुए पढ़िए।
ब्लैक बेल्ट याने काली मां। टकराने का नहीं रे बाबा।
ट्रांसपरेंसी याने पारदर्शी को छोड़ दे तो छः कलर बचते हैं। और ये छः कलर तीन-तीन कलर में सब-डिवाइड होते हैं। याने छः तिया अठारह … 18.
सबरीमाला में भगवान अय्यपा का एक मंदिर है, 18 सीढ़ियों वाली। बहुत रहस्य का विषय है। 18 नम्बर के पीछे कई तर्क दिए जा चुके हैं अब तक। आप स्वयं भी गूगल कर के देख सकते हैं।
इन 18 सीढ़ियों को चढ़ने के लिए एक अर्हता होना भी अनिवार्य है। इसे भी गूगल में पढ़ सकते हैं।