यह मैं पूरी जिम्मेदारी से कह रहा हूं कि रफाल अब तक का सर्वश्रेष्ठ रक्षा सौदा है।
15 साल के अभ्यास के बाद मैं दावा कर सकता हूं कि रक्षा मामलों के बारे में मैं थोड़ा बहुत जानता हूं। पर राहुल गांधी या उनकी पार्टी के बारे में कोई दावा नहीं कर सकता।
संसद में उन्होंने इस बारे में जो सरासर झूठ बोला, वह भी कोई पहली बार नहीं है। काफी समय से वे बोल रहे हैं और नवंबर, 2017 में भी मैंने ब्योरेवार जवाब दिया था।
आज मेकिंग इंडिया ने फिर उस आलेख को टैग करते हुए पोस्ट किया है।
पर सच को भी उसी तरह दोहराने की जरूरत है जिस तरह एक पूरी पार्टी और उनका Eco System झूठ को दोहरा रहा है।
कांग्रेस अध्यक्ष जी को बिंदुवार जवाब…
हमारी सरकार ने रफाल की डील 523 करोड़ रुपए प्रति विमान की दर से की थी।
…डील कब साइन की थी सर आपने? कितना झूठ बोलेंगे?
….डील खाली विमान की होने वाली थी जो आपसे हुई नहीं। फिर जानते हैं आप, कि फ्लाई अवे कंडीशन में विमान खरीदने का मतलब क्या होता है? ये होता है कि विमान पूरे हथियार, मिसाइल, गोला बारूद, सेंसर, राडार और इसके अलावा हजारों अन्य सब सिस्टम से लैस होता है। यानी जैसे ही आपके यहां पहुंचा, आप उसे बमबारी के लिए भेज सकते हैं।
मोदी जी ने विमान के निर्माण का सौदा एचएएल से छीन कर अपने पूंजीपति दोस्त को दे दिया।
….जय हो आपकी। सौदा एचएएल से तब छीना जाता जब विमान भारत में बनता। अब 36 विमान ही खरीदे जाने हैं तो फिर उसे भारत में बनाना असंभव है। कीमत मंगल ग्रह तक पहुंच जाती। अब ऑफ़सेट नीति के तहत उन्हें सौदे की राशि का कुछ हिस्सा भारत में निवेश करना था। इसके लिए उन्होंने अनिल अंबानी से सौदा किया।
….एचएएल से सौदा मोदी सरकार ने नहीं छीना। जब विमान भारत में बनाने की बात चल रही थी तब भी रफाल की टीम ने एचएएल के प्लांट का दौरा किया था और प्लांट की स्थिति देखकर चिंता जताई थी। उसके बावजूद सरकारी एचएएल का तुर्रा यह था कि विमान यहीं बनेगा और इसकी क्वालिटी की गारंटी दस्सो (रफाल की निर्माता कंपनी) को लेनी होगी। मामला यहीं बिगड़ा सर जी।
एचएएल से सौदा छीनकर मोदी ने बंगलुरु के युवाओं का रोजगार छीन लिया।
…विमान वैसे भी नाशिक के पास किसी प्लांट में बनने वाला था। बंगलुरु प्लांट में तेजस बन रहा है। आपका ज्ञान वंदनीय है।
फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रों ने मुझे बताया था कि सौदे के ब्योरे सार्वजनिक करने में कोई समस्या नहीं।
….हुई न गज़ब की बात। अगर गोपनीयता का समझौता न हो तो कोई देश खरीदे गए हथियारों के सारे ब्योरे या किसी और देश को सौंप दे। फिर उस हथियार निर्माता कंपनी की दुकान बंद हो जाएगी क्योंकि सबको पता हो गया कि उसके क्या क्या फीचर्स हैं। यह एक अनिवार्य समझौता है, बस आप नहीं जानते। मैक्रों ने इसका खंडन कर आपके मुंह पर क्या मारा? आपसे तो काफी युवा हैं मैक्रों। लेकिन परिपक्व नेता हैं।
जवाब क्यों नहीं दे रही सरकार?
सौदा बहुत महंगा हुआ। कतई नहीं। लेकिन इस बारे में जवाब सार्वजनिक करने में कई अड़चनें हैं। पहली बात तो यह कि बच्चा-बच्चा जानता है कि रफाल विमान ज़रूरत पड़ने पर परमाणु हमले के लिए खरीदे गए हैं। लेकिन इस बात को सार्वजनिक रूप से स्वीकार नहीं किया जा सकता। खुद फ्रांस के कानून इसमें आड़े आ जाएंगे क्योंकि यह परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) का उल्लंघन होगा। दुनिया भर में फ्रांस की फजीहत हो जाएगी।
दूसरे, विमान को परमाणु हमले के लायक बनाने के अपने खर्च हैं। परमाणु हमले के समय इलेक्ट्रो मैग्नेटिक तरंगों से विमान की सुरक्षा के लिए पूरे विमान के एक-एक इंच को किसी खास चीज से ढंकना होता है।
फिर राहुल गांधी या उनकी पार्टी ने इस बारे में कभी किसी प्राइवेट ब्रीफिंग की मांग की हो तो कांग्रेसी बताएं। वे कहते हैं कि सारे दस्तावेज संसद में रखे जाएं। कभी ऐसा हुआ है इससे पहले?
आखिर में, यह अब तक का सर्वश्रेष्ठ रक्षा सौदा क्यों है?
भारत ने रफाल के इंजन बनाने वाली कंपनी स्नेक्मा के साथ एक सौदा किया है जिसकी कीमत पूरी डील में सम्मिलित है, अलग से नहीं है। कागज पर यह डील सिर्फ 840 मिलियन डालर की है। इसके तहत स्नेक्मा दशकों से लटके कावेरी इंजन को ऑपरेशनल यानी काम करने लायक बना देगी।
यह डील सबसे महत्त्वपूर्ण क्यों है? इसलिए कि किसी विमान का इंजन उसकी कुल कीमत के एक चौथाई के बराबर होता है। इसलिए जेट इंजन टेक्नोलॉजी अभी भी उन चीजों में से है जिस पर गिनती के देशों का कब्जा है। कोई यह तकनीक साझा नहीं करता।
हमने रूस से 1200 से ज्यादा लड़ाकू विमान खरीदे हैं लेकिन जेट इंजन की तकनीक साझा करने के नाम पर वह हमेशा बहरा हो जाता है। स्नेक्मा के साथ इस सौदे के बाद भविष्य में स्वदेशी लड़ाकू विमान तेजस में कुछेक स्वदेशी इंजन लगने के आसार प्रबल हैं।
लेकिन आंख मारने वाले अध्यक्ष को इसमें स्कैम दिखता है। वैसे तो इनके चैनल एनडीटीवी के रक्षा संवाददाता का भी कहना है कि रफाल स्कैम इसलिए लग रहा है क्योंकि सरकार इस बारे में सवालों के बिंदुवार जवाब नहीं दे रही।
बहुत से भाजपा समर्थक रक्षा विशेषज्ञ भी नाराज हैं। जो चीजें इस लेख में लिखी हैं, वही निर्मला सीतारमण एक संवाददाता सम्मेलन में क्यों नहीं कह सकतीं? इतनी बड़ा लेख लिखा और क्या कहीं गोपनीयता का हनन हुआ है? जय हो सरकार की।
और अंत में…
मोदी जी ने चीन के राष्ट्रपति को बुलाया। उसी समय चीनी सेना भारत में घुस आई। फिर मोदी जी चीन गए और बिना एजंडे के जिनपिंग से बात की।
…क्या पी के सोए थे इतने साल? 2014 के बाद सीधे 18 में जगे। इस बीच क्या-क्या नहीं हुआ। कहते हैं कि आप परिवार के अलावा कुछ नहीं जानते। तो क्या ये भी नहीं जानते कि पूरी बैठक उसी तर्ज पर थी जिस तरह 1987 में आपके दिवंगत पिता और देंग के बीच हुई थी।
तो सबसे पुरानी पार्टी के अध्यक्ष ने मानों शपथ ले रखी है कि संसद में खड़े होकर झूठ के अलावा कुछ नहीं बोलूंगा। विशेषाधिकार हनन नोटिस जरूरी था।