नरसिम्हा राव सरकार के अंतिम वर्ष 1996 में रूस से सुखोई लड़ाकू विमान खरीदने का समझौता हुआ।
इंडियन एक्सप्रेस ने एक स्टोरी चलाई कि इस विमान का समझौता साइन होने के पहले ही लगभग 17 सौ करोड़ रुपए रूसी सरकार को दे दिया।
इंडियन एक्सप्रेस ने आशंका जतायी कि यह पैसा एक तरह से घूस के रूप में सत्ता पक्ष को वापिस मिल गया क्योंकि उन्हें चुनाव लड़ना था।
इंडियन एक्सप्रेस की स्टोरी के बाद भाजपा ने समझौते का विरोध करना शुरू कर दिया था। लेकिन एकाएक भाजपा में डील को लेकर शांति छा गई।
उस समय इंडियन एक्सप्रेस के संपादक शेखर गुप्ता के अनुसार उन्हें वाजपेयी जी ने बातचीत के लिए बुलाया और चिंता जताई कि अगर सुखोई एक अच्छा लड़ाकू विमान है तो बिना प्रमाण के घोटाले की बात करने से इस डील का भट्टा बैठ सकता है।
बीजेपी ने सुखोई को चुनाव का मुद्दा नहीं बनाया। लेकिन फिर भी वह चुनाव जीत कर अल्पमत की सरकार 13 दिन के लिए बना पाए।
उन 13 दिनों के दौरान जसवंत सिंह ने शेखर गुप्ता को बुलाया और बताया कि हमने सुखोई डील की जांच पड़ताल कर ली है और उसमें कुछ भी गड़बड़ नहीं है। अतः अब इस स्टोरी को यहीं रहने दीजिए।
उसके बाद देवगौड़ा की सरकार बन गई जिसमें मुलायम सिंह यादव रक्षा मंत्री थे। शेखर गुप्ता के अनुसार मुलायम सिंह ने गुप्ता को बताया कि उन्होंने वाजपेयी और जसवंत सिंह से डील के बारे में बात की और उन दोनों को संबंधित फाइल दिखायी।
कहानी यह है कि उस समय रूस के राष्ट्रपति येल्तसिन ने प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव से निवेदन किया था कि रूस में चुनाव होने वाला था और सुखोई की फैक्ट्री येल्तसिन की चुनाव क्षेत्र में थी।
उस फैक्ट्री में इतना भी पैसा नहीं था अपने कर्मचारियों को सैलरी दे सकें। सुखोई की डील फाइनल होने में अभी कुछ समय है। लेकिन अगर भारत कुछ पैसा एडवांस में दे दे तो उन कर्मचारियों को वेतन मिल जाएगा जिससे येल्तसिन के चुनाव जीतने की संभावना बढ़ जाएगी।
पूरी कहानी में यह समझने की आवश्यकता है कि नरसिम्हा राव ने राष्ट्रहित में एक अच्छे लड़ाकू विमान के लिए एक उचित समझौता किया।
भाजपा उस समय चुनावी लड़ाई में व्यस्त थी और उसे इस डील को लेकर संदेह था। लेकिन राष्ट्रहित में उन्होंने इसे चुनाव का मुद्दा नहीं बनाया।
और जब भाजपा को येल्तसिन की रिक्वेस्ट के बारे में पता चला तो उन्होंने इस बात की प्रशंसा की कि नरसिम्हा राव ने इस मुद्दे को सूझबूझ तरीके से निपटाया।
मुलायम सिंह यादव – जो उस समय वाजपेयी और उनके सहयोगियों से जनता के सामने हाथ भी नहीं मिलाते थे – उन्हें उस डील के बारे में फाइल दिखायी और उनसे इस मामले में विचार विमर्श किया।
इन नेताओं की दूरदर्शिता के कारण सुखोई विमान की खरीद राजनीतिक विवादों से दूर रही और यह लड़ाकू विमान राष्ट्र की वायु सेना में सम्मिलित किया गए।
अगर कुछ लोग मुझे भक्त कहते हैं, तो मुझे सहर्ष स्वीकार है यह सम्मान