जब भी कोई राष्ट्र परिवर्तन की अंगड़ाई लेता है तो आगे भविष्य की आहट सबसे पहले खेल कूद के मैदान से आती है।
यदि कोई राष्ट्र समृद्धि और शक्ति स्रोत की तरफ आगे बढ़ता है तो इसकी दस्तक सबसे पहले उस राष्ट्र के खिलाड़ी देते हैं।
इसी तरह जब किसी राष्ट्र के खिलाड़ी लड़खड़ाते हैं तो वह उस राष्ट्र के लड़खड़ाने का संकेत दे जाते हैं।
जब चीन 1970 के दशक में गुमनामी की दुनिया से निकल कर बाहरी दुनिया से जुड़ा था तब उसके टेबल टेनिस और बैडमिंटन के खिलाड़ियों ने सबसे पहले यह विश्व को आहट दी थी कि 1940 के दशक तक अफीमचियों का राष्ट्र विश्व में अपनी भूमिका निभाने को तैयार हो रहा है।
यही चीन, टेबल टेनिस, बैडमिंटन से आगे बढ़ते हुये जब ट्रैक फील्ड, स्विमिंग इत्यादि में विश्व में मेडल जीतने लगा तब उसने अपने होने पर मोहर लगा दी थी। इन तीन दशकों में चीन एक जकड़े हुये समाज व आर्थिक कुप्रबंधन से निकल कर समृद्ध और शक्तिशाली बन गया है।
ठीक इसके विपरीत 1990 के दशक तक पाकिस्तान जहां स्क्वेश में पीढ़ी दर पीढ़ी विश्व चैंपियन पैदा करता रहा, वही क्रिकेट व हॉकी में विश्व के महान खिलाड़ियों की लंबी फसल लहराता रहा था, वह आज घुटनों पर चलने को बाध्य है। 2000 के बाद जो वो लड़खड़ाया है तो फिर संभल नहीं पाया है।
आज यह सब इस लिये कह रहा हूँ क्योंकि पिछले कुछ वर्षों से भारत के खिलाड़ी शनैः शनैः विश्व पटल पर अपनी दस्तक देने लगे है। जहां एक तरफ क्रिकेट (हालांकि इसका विश्व मे प्रभाव सीमित है) में भारत एक लंबी टैलेंटेड फौज बना चुका है, वहीं दशकों बाद हॉकी में फिर से सर उठा रहा है।
भारत में एक तरफ बैडमिंटन के विश्वस्तरीय खिलाड़ी तैयार हो रहे हैं वही अन्य खेलों में अपने स्तर को ऊंचा करता जा रहा है। इस सब के बाद भी भारत ट्रैक फील्ड में अभी तक अपनी संभावना तलाश करने में असफल रहा है।
लेकिन कल फिनलैंड में हो रही आईएएएफ की 20 वर्ष से कम आयु वर्ग की हो रही विश्व ट्रैक फील्ड प्रतियोगिता में यह तलाश खत्म होती दिख रही है।
https://www.youtube.com/watch?v=K5fyv6swgxA
वहां भारत की हिमा दास ने 400 मीटर की लड़कियों की दौड़ में 51.46 सेकंड में पूरा करके स्वर्ण पदक प्राप्त करके एक इतिहास रचा है। यह भारत का किसी भी अंतराष्ट्रीय प्रतियोगिता में ट्रैक एंड फील्ड का पहला स्वर्ण पदक है।
हिमा दास ने भले ही यह सवर्ण पदक जीत कर भारत का मान बढ़ाया है जिसके लिये उनको ढेरों बधाई, लेकिन मेरे लिये यह भारत की विश्व पटल पर उसकी होने वाली शक्तिशाली भूमिका की दस्तक है।
हिमा दास की इस जीत ने भारत के आगे की स्वर्णिम गाथा का मार्ग प्रशस्त कर दिया है।