जब मोदीजी अचानक पाकिस्तान चले गये थे तब काँग्रेस का कहना था…”प्रधानमंत्री ने पाकिस्तान ‘जाने’ से पहले देश को विश्वास में नहीं लिया।”
तो क्या कांग्रेस ने पाकिस्तान ‘बनाने’ से पहले देश को विश्वास में लिया था? सिर्फ 8-10 लोगों ने देश के बँटवारे को मंजूरी दे दी।
क्या किसी ने भी किसी भी राज्य के चुने हुए प्रधानमंत्री (तब मुख्यमंत्री को प्रधानमंत्री बोलते थे) या सासंद या विधायक से राय ली थी? क्या देश की जनता की राय ली गयी थी?
उस पर तुर्रा यह है कि कांग्रेस की वजह से ही देश को आज़ादी (खंडित) मिली।
चार साल बाद भी प्रधानमंत्री मोदी के लिये लोगों का लगाव देखकर कांग्रेस को समझ नहीं आ रहा है कि हर मुद्दे या हर बात पर क्या प्रतिक्रिया दें।
कभी सर्जिकल स्ट्राइक के सबूत माँगना, तो कभी सर्जिकल स्ट्राइक के वीडियो को ही फर्जी बताना।
कभी पाकिस्तान से मदद माँगना, तो कभी चायना की एम्बेसी में जाकर अपने ही देश को नीचा दिखाना।
कभी राम मंदिर केस में पर त्वरित सुनवाई का विरोध करना, तो कभी शरीया अदालत का समर्थन करना।
कभी भारत को महिलाओं के लिये सबसे असुरक्षित देश बताने वाली रिपोर्ट का समर्थन करना, तो कभी निर्भया के बलात्कारियों की फाँसी की सज़ा का विरोध करना।
कभी वेमुला जैसे गैर दलित को दलित बताकर छाती कूटना, तो कभी दलित राष्ट्रपति का विरोध।
कभी सेना को बलात्कारी बताने वालों के साथ गलबहियाँ करना, तो कभी मोदी सरकार का श्रेय कम करने की नीयत से सर्जिकल स्ट्राइक का श्रेय सेना को देना।
कभी महिलाओं की अस्मिता के नाम पर कठुआ का मुद्दा बनाना, तो कभी करोड़ों लाखों महिलाओं की जिंदगी नर्क बनाने वाले तीन तलाक का समर्थन करना।
ऐसे ही लगभग 100 मुद्दे और होंगे जहाँ काँग्रेस का दोगलापन साफ साफ नज़र आता है, लेकिन इनकी ये खासियत है कि ये पब्लिक को आला दर्जे का बेवकूफ समझते है… जिसे ना कुछ दिखाई देता है और ना कुछ याद रहता।
इस दोगलेपन की तह में जाएंगे तो आपको सिर्फ दो ही चीजें नज़र आयेंगी –
1. भ्रष्टाचार रहित मोदी सरकार और हर मोर्चे पर सरकार की सफलता।
2. नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता में रत्ती भर भी कमी ना आना।
अनिल कुंबले के सामने जो हाल इंग्लैंड के बल्लेबाजों का होता था वही हाल कांग्रेस का मोदी के सामने होता है। गुगली है भैया… अपने स्टंम्प बचाओ।
जब 8वीं फेल और ग्रेस से 12वीं पास लोग शिक्षा पर बोलें, तो समझिए माजरा क्या है!