विदेशों में लिए गए मेरे फोटो पर कल किसी ने कमेंट किया – भाई साहब कुछ एक्सपीरियंस बताओ – बताओ हम कहाँ खड़े हैं… तो बस ऐसे ही ख्याल आया…
हम भारतवासी हैं… हम वो हैं जो सोचते हैं वही सही मानते हैं, अगला और कोई नहीं चलेगा… हम हर चीज़ में ऊँगली घुसाते हैं और पूरी तरह से जानते एक बात भी नहीं…
हम पढ़े हुए हैं कि औरंगज़ेब इतना अच्छा था कि वो अपना खर्चा टोपी सिल कर चलाता था और टीपू सुल्तान न्यायप्रिय था उसने खूब हिन्दू को प्यार किया…
लिखो हर जगह यही… 6वीं की परीक्षा से लेकर LDC/UDC या फिर IAS के इम्तेहान में नंबर तभी मिलेंगे जब ये लिखोगे…
अगर प्रश्न किया कि उसको अगर टोपी सिल के ही खर्चा चलाना था तो अपने ही खानदान का नाश क्यों किया… किसलिए पूर्वोतर पर चढ़ाई करके लाचित बोरफूकन की सेना से लात खाने चल दिया… काहे गुरु गोविन्द सिंह के बच्चों तक को दीवार में चुनवाया…
टीपू ने मन्दिर तुड़वाए और हिन्दुओं का क़त्ल कराया तो कैसा न्यायप्रिय या हिन्दू से दोस्ती रखने वाला…
अगर ये सब उत्तर में लिख दिए तो आप फेल कर दिए जाएंगे…
अब जब उम्र के 27 – 28 या 30 वर्ष तक हर इम्तेहान में वही लिख रहा है तो वही फिट हो गया है ऊपर के माले में… अब दिमाग में दूसरा सोच नहीं चलेगा…
यही प्रोग्राम्ड, फीड किये हुए लोग IAS, LDC/UDA बनके रेल मंत्रालय से लेकर PSU के अधिकारी और बाबू बन के चला रहे रहे हैं… निखट घोड़े के जैसे एक सीध में चलने वाले…
और अचानक आप सोचो कि वो रिस्क लेकर दूसरा method या procedure अपना लेंगे!!! ये सोचने के लिए पहले अपना दिमाग तो साफ़ करो…
सुबह बच्चों को स्कूल छोड़ने जाते पेरेंट्स को देखिए… न ट्रैफिक का सेंस, न अगले किसी के बच्चे की परवाह…
रोज़ देखता हूँ एक चौराहे पर, स्कूल आने के लिए अगर ठीक 20 फ़ीट से यू-टर्न लिया जाए तो सब सही से चलेंगे… लेकिन सारे 150 मीटर उल्टा चल के आते हैं…
आड़ी तिरछी चाल, एक सेकंड को देरी बर्दाश्त नहीं, हॉर्न पे हॉर्न, मसाले की पीक पुच्च से बिना देखे… सिखा दिया अपने बच्चे को अपने ही जैसी कुत्तापंथी… उसको बता दिया कि देख मैं बकलोल की तरह गंद में रहा हूँ ऐसे ही जीना है तुझे भी गन्द मानुस की तरह…
लेकिन लोग सोच रहे हो कि सड़क पर अनुशासन आए और सफाई हो… दोगलेपन से भरा ये दिवा स्वप्न भारत में ही देखा और सपने में हिट किया जा सकता है…
सरकार ने खोली हिंदुस्तान एंटीबायोटिक, IDPL, हिंदुस्तान ज़िंक, HMT, ITI और न जाने क्या क्या…
सब के सब ऐसे फील्ड जो कभी घाटे में न जाए… लेकिन सब बंद हैं, लूटी हुई हैं… अब जब लूट लिया इनके ही बाप-दादा ने तो आज पूछ रहे कि सरकारी नौकरी कहाँ…
कोयला, बिजली, पेट्रोलियम पर लगभग अभी सरकारी नियंत्रण ही है… खोल दो इसको प्राइवेट के लिए… साल भर में इनके मैनेजर प्राइवेट सेक्टर से मुकाबला न कर पाएंगे और ताला लगा के चल देंगे…
क्यों? क्योंकि वही माइंड सेट है और इससे मार्केट में मुकाबला नहीं कर सकते… जब मुकाबले की बात आएगी PSU टांय टांय फिस्स हो जाएगी…
एक है BEL – भारत इलेक्ट्रॉनिक लिमिटेड… हज़ारों एकड़ जमीन, लाखों लोगों को नौकरी, अरबों का बजट… ये कॉपी करके कुछ resistor और capacitor के अलावा कुछ न बना पाए… उसके लिए भी इतने बड़े अमले की ज़रूरत नहीं… एक भी SMD नहीं बना पाए, यहाँ तक कि गोजर के पैरों जैसी कोई IC भी न बना पाए…
अब इनमें काम कर रहे इंजीनियर से लेकर बड़े बाबू, छोटे बाबू और प्रबंधन से बात करो… इनके बतियाए आंधी आती है… उतना बड़ा ITI, वहीं बड़ा प्लाट, घर, विद्यालय, फ्री बिजली पानी सब कुछ… अंत में चीन से सेट आयात करने के डीलर बनकर भी सफल न हो पाए… यही है यहाँ का प्रबंधन…
इनसे पिद्दू पिद्दी कम्पनी कहाँ से कहाँ चली गई… PSU थी न, उन्हीं गधों की जमात इसे चलाती थी… मार्केट बदला, मार्किट की चाल और ज़रूरत बदली और ये मर गए अपने पीछे खँडहर छोड़ के…
और बताऊँ अन्तर?