कुछ फ़िल्में ऐसी होती हैं, जिनको आप जितनी बार देखो उतनी ही बार उतना ही आनंद आता है. कुछ फिल्मों की कहानी के कारण, कुछ गीत संगीत के कारण तो कुछ किरदारों के कारण… उनमें से एक फिल्म है “चुपके-चुपके”. पुरानी फिल्मों के देखने के शौकीनों में से शायद ही ऐसा कोई होगा जिसने ये फिल्म बार बार न देखी हो. सबके अपने अपने कारण होते हैं, आइये पढ़ते हैं मीना रेगे क्या कहती हैं इस फिल्म के बारे में –
चुपके चुपके ऋषिकेश मुखर्जी की एक सदाबहार फिल्म. हिंदी में वार्तालाप करते समय अँग्रेज़ी शब्दों के उच्चारण को कतई उचित न समझने वाले प्यारे मोहन से जो एक बार मिला हो, वह उसे कैसे भूल सकता है.
चुपके-चुपके की जान थे धर्मेंद्र और ओम प्रकाश. प्रोफेसर परिमल त्रिपाठी (धर्मेंद्र) इस बात से परेशान हैं कि उसकी नयी नवेली बीवी सुलेखा (शर्मिला) अपने जीजाजी (ओमप्रकाश) को दुनिया का सबसे चतुर इँसान समझती है.
परिमल जीजाजी को बुद्धू बनाने का बीड़ा उठाता है और पहुंच जाता है उनके यहाँ ड्राइवर प्यारे मोहन बनकर. जीजाजी ने ना दामाद को देखा है ना उनकी तस्वीर, सो वे आ जाते हैं झाँसे में.
प्यारे मोहन उनके शुद्ध हिंदी के आग्रह को देखते हुए उनसे भी ज़्यादा शुद्ध हिंदी बोलकर उनकी बोलती बँद कर देता है.
जब सुलेखा वहां आती है तो दीदी और जीजाजी के होश यह देखकर उड़ जाते हैं कि सुलेखा और प्यारेमोहन के बीच कुछ खिचड़ी पक रही है. और एक दिन दोनों भाग जाते हैं.
तभी परिमल का दोस्त सुकुमार (अमिताभ) आ धमकता है परिमल त्रिपाठी बनकर. अब दामाद साहब को कैसे बताएं कि उनकी बीवी ड्राइवर के साथ भाग गई.
यहां जीजाजी अपनी पत्नी से कहते हैं “चलो हम भी भाग जाते हैं”. उस पर सितम यह कि सुकुमार इस साजिश मे शामिल एक अन्य मित्र पी.के श्रीवास्तव (असरानी) की साली वसुधा(जया भादुड़ी) पर लट्टू हो जाता है.
इस फिल्म में अनेक यादगार प्रसँग थे. सबसे मज़ेदार वह दृश्य था जब जीजाजी परिमल के मित्र पी.के श्रीवास्तव के साथ स्टेशन जाने को निकलते हैं तो उनकी पत्नी कहती है “कपड़े तो बदल लेते”…
जवाब में जीजाजी कहते हैं “कुछ तो पहना है, वर्ना तुम्हारी बहन ने तो मुझे पूरी दुनिया के सामने नँगा कर दिया है”.
फिल्म की कहानी ही नहीं संगीत भी बेमिसाल है और मेरा पसंदीदा गीत है… “अब के सजन सावन में…”.
– मीना रेगे
https://www.youtube.com/watch?v=yIFvBsI9FsY