हर पुरुष के अंदर एक संभावित बलात्कारी होता है।
यह स्टेटमेंट बहुत कॉन्ट्रोवर्शियल है।
जिस बड़ी बिंदी गिरोह का मैं धुर विरोधी हूँ… ये जानते हुये कि उनके द्वारा ये वाक्य दुर्भावनावश प्रचारित किया गया, ये जानते हुये कि इस गिरोह का मकसद नारी सशक्तिकरण नहीं बल्कि देशद्रोही उदारवादियों की ढाल बनकर रहना है, बावजूद इस बात से असहमत नहीं हो पाता।
अपराध समाज का एक हिस्सा हैं। इन्हें प्रयासों से कम तो किया जा सकता है लेकिन 100% खत्म करना नामुमकिन है।
ये प्रतिशत कम हो, इसके समाधान का एक हिस्सा सतर्कता है। पर सतर्कता की बात जैसे ही आती है, बड़ी बिंदी गिरोह उग्र और अलोकतांत्रिक हो जाती है।
मैं सतर्कता की बात इसीलिये करता हूँ क्योंकि मैंने महसूस किया है हर पुरुष के अंदर एक संभावित बलात्कारी होता है। अधिकतर इस जानवर को काबू कर ले जाते हैं तो कुछ नहीं कर पाते।
लेकिन मंदसौर और निर्भया सिर्फ बलात्कार तक सीमित घटनाएं नहीं हैं। ये घटनाएं बलात्कार से कुछ हटकर हैं।
एक साधारण बलात्कारी अपनी क्षणिक हवस को काबू नहीं कर पाता और कई मामलों में बलात्कार के तुरंत बाद बलात्कारी को अपने अपराध का एहसास होता है और कुछ तो आत्मग्लानि से भरकर आत्महत्या तक कर लेते हैं।
मंदसौर और निर्भया… दोनों ही मामलों में पीड़िता के साथ क्रूरता की गयी, प्राइवेट पार्ट्स को जिस बेरहमी से क्षत विक्षत किया गया, ऐसी दरिंदगी को शब्द दे पाना सम्भव नहीं।
नाखून से खरोंचा गया, दांतों से काटा गया, रॉड से फाड़ दिया गया।
नहीं… ये घटनाएं बलात्कार की नहीं है।
ये पैशाचिक प्रवृत्ति का मानसिक रोग है। जिसमें अपराधी का मकसद बलात्कार नहीं बल्कि पीड़ित को दर्द की इन्तेहाँ तक पहुंचाकर उसकी चीखों को एंजॉय करना था।
उन्होंने हर सम्भव प्रयास किये जिससे पीड़ित को अधिक से अधिक दर्द दिया जा सके, उस दर्द से उभरी लाचार चीत्कार उनकी मानसिक संतुष्टि का साधन थीं। उन्हें सिर्फ अपनी हवस ही बुझानी होती तो बलात्कार करके छोड़ देते।
सवाल उठता है कि इस पैशाचिक प्रवृत्ति का स्रोत क्या है?
ऐसी मानसिकता जन्म कैसे लेती है?
कत्ल करने के सबसे क्रूर तरीके ISIS ने ईजाद किये। कत्ल ही करना हो तो बंदूक की एक गोली काफी होती है पर उससे ऑर्गेज़्म नहीं मिलता।
वो लोगों के कत्ल से पहले उनमें दहशत भरते हैं, फिर चाकू को गर्दन पर धीरे धीरे चलाते हैं, शरीर को छटपटाने का पूरा समय देते हैं। खौफ से भरी उन बेबस आंखों से उन्हें ऑर्गेज़्म मिलता है।
जैसे बकरों के झुंड के सामने एक एक बकरा हलाल किया जाता है और झुंड के बाकी बकरे अपनी बारी आने के खौफ में दुबकते रहते हैं… हलाल इस्लाम का कॉन्सेप्ट है।
मेरा स्पष्ट मानना है कि मंदसौर की बच्ची हो या निर्भया दोनों को हलाल किया गया है।
मुसलमान बच्चों की परवरिश में ये पैशाचिक प्रवृत्ति संस्कारों जैसे इंजेक्ट की जाती है। छोटे छोटे बच्चों से बकरा हलाल करवाने की प्रेक्टिस करवाई जाती है। मदरसों में इस्लामिक दरिंदगी का इतिहास गौरव गाथा की तरह रटाया जाता है।
काफ़िर शब्द का अस्तित्व ही इस मज़हब के मकसद पर सवाल उठाता है।
जिस आसमानी किताब को अल्लाह का आदेश बताकर शाश्वत सत्य की तरह स्थापित करने के प्रयास किये जाते हैं, उसकी जांच होनी चाहिये, तर्क की कसौटी पर कसा जाना चाहिये। संदिग्ध हिस्सों को बैन किया जाना चाहिये।
ब्रह्माण्ड में कुछ भी संदेह से परे नहीं।
टिप्पणी – हलाल का अर्थ होता है इस्लाम सम्मत, स्वीकार्य। हराम इसके विपरीत है। हलाल याने कत्ल या ज़िबह नहीं होता, लेकिन आम हिन्दू हलाल का अर्थ यही समझते हैं – यातना दे कर धीरे धीरे मौत देना जिसका उल्लेख ही सीधे इस्लाम की ही याद दिलाती है, उसके बाद बाकियों की।
अत: बाल की खाल न निकालें कि हलाल क्या होता है यह मुझे मालूम ही नहीं। क्या कहा जा रहा है यह सब को समझ में आ रहा है।