वामपंथ कई सरों वाला साँप है. हर किसी को, किसी ना किसी मुँह से डंस ही लेता है.
और अक्सर आपको पता भी नहीं चलता कि आपकी कौन सी बात वामपंथी प्रचार का हिस्सा बन जाती है. यह प्रोटियन करैक्टर ही उसकी सबसे बड़ी ताकत है.
वामपंथी स्ट्रेटेजी का मूल स्वर है सामाजिक संघर्ष, किसी ना किसी बहाने से.
अब अमीर और गरीब वाली बात नहीं रही, अब जो जिस तरह फँसे, उसे फँसाओ और जिससे उलझ सके, उलझाओ.
कोई जाति के नाम पर फँसता है, कोई रंग के नाम पर. पर जो सबसे मारक अस्त्र है, वह है फेमिनिज्म.
यह दुनिया की आधी आबादी को अपने कब्जे में लेने की ताकत रखता है. और हर बलात्कार उनके लिए एक मार्केटिंग ऑपर्च्युनिटी है.
कल फेसबुक की सबसे बुद्धिमान महिला, बहन गीताली सैकिया की पोस्ट पढ़ कर मुझे यही झटका लगा. इतनी स्पष्ट सोच वाली महिला उनके झाँसे में कैसे पड़ीं?
उन्होंने बलात्कार के लिए दोष दिया पुरुषवादी मानसिकता को, लैंगिक भेदभाव को, पैट्रीआर्कियल सोसाइटी को… ये फेमिनाज़ी शब्द उनके शब्दकोश में कैसे घुसे?
मैं एक पिता हूँ. मेरा परिवार पितृसत्तात्मक है. मेरे घर में दो स्त्रियाँ हैं, मेरी पत्नी और मेरी बेटी. दोनों में से किसी ने इस पितृसत्ता पर कोई शिकायत नहीं की है.
मेरा परिवार मेरी जिम्मेदारी है. इस जिम्मेदारी को निभाने के लिए मुझे musculanity, पौरुष की आवश्यकता है. चाहे उनकी आवश्यकताएं पूरी करने के लिए, चाहे उनकी सुरक्षा के लिए…
अपौरुषेय व्यक्ति ना तो पिता होगा, ना पति. किसी भी पत्नी, पुत्री, बहन को अपौरुषेय पुरुष अपने जीवन में नहीं चाहिए. किसी काम के नहीं हैं.
पैट्रिआर्की और मस्कुलैनिटी स्त्री को सुरक्षा देने के आवश्यक तत्व हैं, आपने उन्हें ही अपराध का, बलात्कार का कारण बता दिया…
यह तो अपराध को खत्म करने के लिए गन कंट्रोल जैसा है. हथियार लोगों से छीन लिए जाते हैं, पर अपराधी तो हथियार रखता ही है, आप उसके सामने निरस्त्र हो जाते हो.
जो लोग बलात्कार के बहाने से पितृसत्ता को चुनौती दे रहे हैं, वे सिर्फ आपको निरस्त्र और असुरक्षित कर रहे हैं.
वे डाकुओं के गिरोह के वे डाकू हैं जो हिंसा के लिए हथियारों को दोषी ठहरा कर आपसे आपके हथियार ले लेते हैं, आपको निरस्त्र करते हैं. क्योंकि उन्हें स्त्रियाँ सहज सुलभ, बाजार में उपलब्ध चाहिए.
उन्हें पुरुष के पौरुष से उतनी ही समस्या है जितनी स्त्री की शुचिता से… दोनों समाज को तोड़ने के उनके उद्देश्य में बाधक होते हैं.