जिन लोगों को काम नहीं करना, वो आपको भी काम नहीं करने देंगे. हाँ मैं अरविंद केजरीवाल की ही बात कर रहा हूँ.
9 दिन तक किसी के घर में घुसकर धरने देने वाला आदमी आपको पूरी दुनिया में कहीं नहीं मिलेगा. ये जो लक्षण है वो एनारकिस्ट के ही लक्षण है, अराजकतावादियों के लक्षण है और अब जान ही गए हो कि सेक्युलरवादी का नकाब पहन के घूमने वाले मार्क्सवादी, साम्यवादी, लेफ्टिस्ट या लाल लंगूर जो भी कहलाए सब एनारकिस्ट होते ही हैं और वो ऐसी अराजकता को सक्रिय समर्थन भी देंगे.
मुख्यमंत्री खुद के उपराज्यपाल के निवासस्थान में घुसकर नौ नौ दिन तक वहीं पर पड़े रहते हैं, हटने का नाम न ले, ऊपर से खुद की टीम तक को बुला ले, ऐसा भारत में कभी देखने को नहीं मिला.
ऐसी गंदी नौटंकी के लिये उन्हें अपने पद से इस्तीफा देना पड़े ऐसा शर्मनाक माहौल मीडिया को उनके लिए खड़ा करना चाहिए, यही मीडिया का काम है. पर यहाँ तो केजरीवाल जैसे ही कुछ वामपंथी पत्रकार जा जाकर केजरीवाल का इंटरव्यू लेकर आते हैं, जैसे केजरीवाल ने कोई बहादुरी का काम किया हो.
लोकतंत्र की बातें करने वाले और मोदी को लोकशाही का पाठ पढ़ाने वाले ही लोकतंत्र का मज़ाक बनाने लगे हैं. वो खुद अगर लोकशाही में विश्वास करते तो लोकशाही में सर्जित संविधानिक सत्ता का वो आदर करते. पर उसके बदले वो तो सुप्रीम कोर्ट से लेकर लेफ्टिनेन्ट गर्वनर पद तक के लोकतंत्र के हर स्तंभ का वो मज़ाक बना चुके हैं, उपहास और दुरुपयोग कर चुके हैं.
नौ दिन के धरने के बाद IAS अफसरों के साथ एक दिन की मीटिंग हुई न हुई कि ये आदमी खुद के डायबिटीज़ के उपचार के लिए दस दिन के लिए भाग गया.
मुद्दे की बात यह है कि उन्हें काम ही नहीं करना है… नाच न जाने आंगन टेढ़ा…
थोड़ा पीछे जाकर ये जानते हैं कि ये मुद्दा कहाँ से शुरू हुआ. दिल्ली के मुख्यमंत्री बनते ही केजरीवाल ने आनन फानन में निर्णय लेना शुरू किया. बहुत निर्णय अमल में लाये जाए ऐसे थे ही नहीं, ये केजरीवाल भी जानते थे. पर चुनाव प्रचार के वक्त जो वचन दिए थे तो कुछ तो कर के दिखाना था.
कॉलेज में पढ़ता हुआ आपका बच्चा अपने दोस्तों को प्रॉमिस कर दे कि आप मुझे कॉलेज के चुनाव में जितवाकर GS. बनाओ तो में कॉलेज के सभी छात्रों को फाइवस्टार में पार्टी दूंगा. वो जीत कर आपके पास आकर कहे कि पापा मुझे कॉलेज के 500 लोगों को फाइवस्टार में पार्टी देनी है, मैंने प्रॉमिस किया है.
पापाजी क्या कहेंगे? गधे, पैसे पेड़ पर उगते हैं क्या? किसने कहा था ऐसे वचन देने को?
बिल्कुल यही बात दिल्ली की ब्यूरोक्रेसी ने उद्दंड केजरीवाल से कही. केजरीवाल और उनके साथियों के आड़े सीधे धंधों की फाइल क्लियर होना बंद हो गयी. स्वाभाविक तौर पर ऐसे उटपटांग निर्णयों की फाइल पर अफसरों ने साइन करना बंद कर दिया. क्योंकि अगर फाइल क्लियर करते रहे तो भविष्य में ये ब्यूरोक्रेट्स ही फंस सकते हैं. क्योंकि उनमें से कोई निर्णय घपले समान हुआ तो और अदालत में इसकी पुष्टि हुई तो जेल में भी उन्हें ही जाना पड़ेगा ना कि केजरीवाल और उनकी टोली को.
इस संघर्ष में एक बार केजरीवाल के साथ मीटिंग के लिए आने वाले एक IAS अफसर को केजरीवाल के ही साथियों ने मार मार कर अधमरा कर दिया. मुख्यमंत्री तमाशबीन बनकर देखते रहते हैं. बीच बचाव की तो बात ही छोड़ दो. पुलिस फरियाद होती है. केजरीवाल के साथी गिरफ्तार होते हैं, कोर्ट में करवाई होती है.
IAS अफसरों को बदनाम करने के लिए केजरीवाल ने कहा कि उन्होंने हमारे खिलाफ हड़ताल की है. हमारा कोई काम नहीं हो रहा. इस बात को पुरजोर पब्लिसिटी मिली. IAS अफसरों ने कहा कि कोई हड़ताल नहीं की है, सिर्फ गैरकानूनी फाइलों को अटकाया हुआ है. बाकी बिजनस सामान्य तरीके से हो रहा है.
इस बात को मीडिया ने ज़्यादा पब्लिसिटी नहीं दी क्योंकि देते तो केजरीवाल और गैंग की माफियागिरी की पोल खुल जाती.
केजरीवाल को खुद के इलाज के लिए 10 नहीं 100 दिन की छुटटी लेनी हो तो ले, पर IAS अफसरों के साथ शुरू की हुई चर्चा अटकाकर 10 दिन का आराम किस लिए? उनके पास डेप्युटी CM मनीष सिसोदिया है. उसे खुद के स्थान पर रखकर थोड़ा घूम फिर आएं.
पर सबसे बड़ी समस्या ये है कि इस आदमी को काम करना ही नहीं है. काम करने की कोई नीयत ही नही है. मेरे साथ अन्याय हो रहा है, बार-बार ऐसे नाटक करके पब्लिसिटी बटोरते रहना है और जो लोग काम करते हैं उनको काम करने नहीं देना है.
हमारे आसपास ऐसे अनेक वामपंथी, सेकुलरिये हैं जिन्हें काम नहीं करना और दूसरों को काम करने नहीं देना हैं. खुद तो निकम्मे बैठे हैं, किसी न किसी संस्था से या NGO से मिलकर बड़ा पैकेज, सम्मान, मान-धन लेते रहते हैं. दूसरे 50 छोटे-मोटे रैकेट चलाकर बिना मेहनत के पैसे कमाते रहते हैं, इसलिए घर चलाने की चिंता नहीं होती.
यहाँ महीने के अंत तक दो सिरे कैसे एक होंगे ये सोचते सोचते हमारा दिमाग हिल जाता है. ये लोग हमें काम न करने देने के लिए हमारा ध्यान भटकाने के लिए तरह तरह के हथकण्डे अपनाकर हमारे रास्ते मे अड़चने खड़ी करते रहते हैं.
व्हाट्सप जैसे निकम्मो का बाज़ार है वैसे ही फेसबुक और ट्विटर लुच्चों का बाज़ार है. इन लुच्चों को अंग्रेज़ी में ट्रोलर कहा जाता है. ये लुच्चे कहीं भी जाकर बातों में फंसाकर आपका ध्यान भटकाते हैं जिस वजह से आप अपना काम ठीक से नहीं कर पाते.
केजरीवाल लेफ्टिनेन्ट गवर्नर के घर में घुसकर सोफे पर पड़े पड़े जब धरना दे रहे थे तब एक कार्टून कहीं पर देखा था. आम्रपाली साड़ी और नाक में नथनी पहने हुए केजरीवाल मेनका नृत्य कर के पेड़ के नीचे ध्यानमग्न मोदी का ध्यान तोड़ने की कोशिश करती है, पर मोदी ध्यानमग्न है.
हमारे आसपास केजरिवालिज्म करते लुच्चों को देखकर डिस्टर्ब होने के बजाय ये मानिए कि इन लुच्चों को आप में कहीं कोई मोदी दिख रहा है और मोदी तक पहुंचने की इन लुच्चों की कोई औकात नहीं है, इसीलिए हमारे सामने मुजरा करते हुए गाते हैं – “इन्हीं लोगों ने ले लीना दुपट्टा मेरा”
– लेखक गुजरात के प्रख्यात पत्रकार और लेखक ‘सौरभ शाह’, जिन्होंने ‘एकत्रीस स्वर्ण मुद्राओं, संबंधों नुं मैनेजमेंट एवं अयोध्या थी गोधरा’ सहित 14 पुस्तकें लिखी हैं, जिनमें पांच नॉवेल भी सम्मिलित हैं.
(अनुवादक – ‘मेकिंग इंडिया’ टीम के भावेश संसारकर)
सौरभ-वाणी : PM की हत्या का षडयंत्र रचने वाले माओवादी-वामपंथी