संयुक्त सचिव पद पर DoPT द्वारा लैटरल एंट्री की अधिसूचना जारी होने के बाद से बहस जारी है कि ये फ़ैसला कितना सही अथवा कितना ग़लत है, ये कितना देशहित में हैं?
वहीं दूसरी तरफ़ इस फ़ैसले की नीयत पर भी सवाल उठ रहे हैं. इस फ़ैसले के पक्ष व विपक्ष में तरह तरह के तर्क आ रहे हैं.
हालाँकि मैं न केवल इस फ़ैसले के पूर्णरूपेण पक्ष में हूँ, बल्कि पिछले दो वर्षों के दौरान केंद्र सरकार के पोर्टल पर CPSUs को नौकरशाही के विकल्प के तौर पर इस्तेमाल किए जाने व लैटरल एंट्री शुरू किए जाने पर अनेक बार लिख चुका हूँ, जिसका उत्तर देते हुए सरकारी कार्यालय ने उसे विचारार्थ बताया.
हालाँकि लैटरल एंट्री पहले भी प्रस्तावित होता रहा है, लेकिन संभवत: इसके विरोध में तर्क दिए जाने व नौकरशाही लॉबी के दबाव में ये कभी हो न सका!
किंतु ये एक सुखद संयोग ही है कि हाल में CPSE Conclave करके PM मोदी ने लैटरल एंट्री को प्रस्तावित करते हुए ख़ुद ही CPSUs को सरकारी कामकाज के टारगेट दिए – जैसे स्मार्ट सिटी, गंगा सफ़ाई, वेस्ट मैनेजमेंट, MSME सेक्टर का विकास, मेक इन इंडिया, इंडस्ट्री से जुड़ी सेवाओं के माध्यम से पड़ोसी देशों में प्रभुत्व स्थापित करना, आदि आदि.
मालूम हो कि ये सारे वो काम हैं जिसे सकुशल सम्पन्न करना तो दूर, जिसकी ढंग की शुरूवात करने में भी मंत्रालय, राज्य व लोकल बॉडी की नौकरशाही विफल रही है.
जबकि सरकार ने PSUs को जितने टारगेट दिए उनमें से सभी तय समय में पूरे हुए. फिर चाहे वो देश भर में शौचालय निर्माण का कार्य हो, हर गाँव में बिजली पहुँचाने का कार्य हो या फिर विद्युत उत्पादन बढ़ाते हुए 24 घंटे बिजली के लक्ष्य की ओर आगे बढ़ने का कार्य हो.
इन सारे कार्यों में अभूतपूर्व प्रगति हुई. साथ ही PPP मॉडल के अंतर्गत निजी क्षेत्रों ने भी कई अन्य लक्ष्यों को हासिल करने में बहुत योगदान दिया.
यही कारण है कि पूरी की पूरी नौकरशाही पर एक बहुत बड़ा प्रश्नचिह्न खड़ा हो गया और तब जाकर सरकार ने PSUs व अन्य निजी क्षेत्रों से विशेषज्ञों को नौकरशाही के विकल्प के रूप में देखना शुरू किया और PSUs को न केवल वो लक्ष्य दिए जिन्हें वो नौकरशाही के माध्यम से प्राप्त करना चाहती थी, बल्कि सीधा सीधा PSUs ऑफ़िसर के लिए लैटरल एंट्री के माध्यम से नौकरशाही में प्रवेश के दरवाज़े खोल दिए.
अब सरकार द्वारा उठाया गया ये क़दम कितना सही है या कितन ग़लत, इसका निर्धारण अपने विवेकानुसर आप स्वयं कीजिए.
किंतु एक स्वाभाविक प्रश्न उठता है कि औरों से ज़्यादा कठिन परीक्षा पास करके सरकारी तंत्र में प्रवेश करने के बावजूद नौकरशाही लक्ष्यों को प्राप्त करने व किसी कार्य को सफलता पूर्वक सम्पन्न करने में विफल क्यों होती रही है?
जबकि उसी पोलिटिकल रिजीम में अन्य प्रतिष्ठान जैसे DMRC, ISRO, IOCL, ONGC, NTPC, Power Grid आदि कठिन लक्ष्यों को हासिल कर नए नए कीर्तिमान बना रहे हैं! कहाँ कमी हैं?
जारी…